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कैसे मशीनें बदल रहीं हैं इन आदिवासी महिलाओं की ज़िंदगी

सौर ऊर्जा से चलने वाली धागा कातने की मशीनों को अपनाने से कताई करने वालों और बुनकरों की कमाई कई गुना बढ़ गई है। इसका सबसे ज़्यादा करीब 70 फीसदी फायदा आदिवासी महिलाओं को हुआ है।
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कुनी देहुरी 19 साल से अधिक समय से रेशम धागा कातने और बुनाई का काम रहीं हैं। उनका दिन कोकून से धागे निकालने और उनकी मदद से कपड़ा बुनने में बीतता है और यही उनकी कमाई का ज़रिया है।

चार साल पहले, उनकी किस्मत तब बदल गई जब उन्होंने सौर ऊर्जा से चलने वाली पोर्टेबल रीलिंग मशीन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि ओडिशा में उनके आदिवासी गाँव भागामुंडा में बिजली न रहने पर भी अब उनके काम पर कोई असर नहीं पड़ता है और उनकी कमाई सात गुना तक बढ़ गई है यानी 1,200 रुपये प्रति माह से 8,000 रुपये तक।

कुनी की तरह रेशम के धागे कातने वाली कई ग्रामीण महिलाओं ने पोर्टेबल रीलिंग मशीनों को अपनाया है, जो सौर ऊर्जा पर चलती हैं। इससे अब तेजी से काम कर पाती हैं, जिससे उनकी कमाई भी बढ़ी है।

दिल्ली स्थित सामाजिक उद्यम रेशम सूत्र इन महिलाओं को सौर ऊर्जा आधारित पोर्टेबल रीलिंग मशीनें उपलब्ध करा रहा है। ‘उन्नति’ नाम की यह मशीन कॉम्पैक्ट है और इसकी कीमत 35,000 रुपये है।

संगठन अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के समुदायों को 90 प्रतिशत सब्सिडी पर मशीनें उपलब्ध कराता है। इसके लगभग 70 प्रतिशत लाभार्थी आदिवासी महिलाएँ हैं। रेशम सूत्र 16 राज्यों के 350 गाँवों में काम कर रहा है, जिनमें से 20 गाँव ओडिशा में हैं, इनमें केंदुझार जिले का कुनी का गाँव भी शामिल है।

सौर ऊर्जा से चलने वाली पोर्टेबल रीलिंग मशीन अपनाने से पहले, 35 वर्षीय कुनी के पास रखे रेशम के कोकून कई बार सड़ जाते थे।। वह उसी दिन रेशम के सुनहरे कोकून को उबालने के लिए घंटों मेहनत करती थी ताकि उन्हें टसर रेशम की गाँठों में बदलने से पहले उनका रंग फीका न पड़ जाए।

लेकिन, कई बार ऐसा भी होता था जब हफ्तों तक बिजली नहीं होती थी और कुनी की बिजली से चलने वाली रेशम रीलिंग मशीन वहीं बेकार पड़ी रहती थी।

बिजली न होने का मतलब कुनी को नुकसान उठाना पड़ता था। वह आठ घंटे में 350 ग्राम रेशम के धागे कात सकती हैं, लेकिन औसत, कड़ी मेहनत के बाद वह कभी भी प्रति माह 1,200 रुपये से अधिक नहीं कमा पाती थी।

कुनी ने याद करते हुए कहा, “कई बार कोकून से समय पर धागे नहीं कात पाते थे, उनकी गुणवत्ता खराब हो जाने से व्यापारी कहते कि ये रेशम नहीं है।” उन्होंने आगे कहा, “लेकिन अब, मैं एक महीने में 8,000 रुपये तक कमा लेती हूँ।”

रेशम सूत्र ने स्थायी नवाचारों के माध्यम से ग्रामीण कारीगर समुदायों को आर्थिक आज़ादी देने के लिए रेशम रीलर को 40-वाट क्षमता वाली सौर फोटोवोल्टिक प्रणाली प्रदान की है।

कुनी की रीलिंग मशीनों को चलाने के लिए 15 वाट की ज़रूरत होती है और बाकी बिजली दूसरे कामों में इस्तेमाल की जा सकती है। इसकी मदद से अब वो दिन ढलने के बाद भी काम कर पाती हैं, जिससे उनके काम के घंटे बढ़ जाते हैं। वह कभी-कभी सुबह 6.30 बजे से रात 10.30 बजे तक काम करती हैं।

अब तो कुनी नियमित रूप से दूसरी महिलाओं को इन नई पोर्टेबल मशीनों पर काम करने का प्रशिक्षण भी देता है।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैंने लगभग 500 महिलाओं को इन मशीनों पर काम करने और नई तकनीक अपनाने के लिए ट‍्रेनिंग दी है।”

रेबती देहुरी उनमें से एक हैं। पहले वह दो अन्य महिलाओं के साथ चरखा चलाकर सामूहिक रूप से मुश्किल से महीने में 5,000 रुपये कमाती थीं। उनका हिस्सा लगभग 1,800 रुपये हुआ करता था।

कुनी से ट्रेनिंग के बाद रेबती ने धागा कातना सीख लिया है और सौर मशीन के कारण वह लंबे समय तक काम कर पाती हैं, जिससे उन्हें महीने का लगभग आठ हजार रुपए तक मिल जाता है।

30 वर्षीय रेबती पिछले सात साल से रेशम की रीलिंग कर रही थी, लेकिन 2022 में ही उन्होंने कुनी से छह महीने की ट्रेनिंग ली। इससे उनकी आय तो बढ़ी ही आत्मविश्वास भी बढ़ा है। रेबती ने गर्व से कहा, “अपनी बचत से, मैंने अपने लिए एक सोने की नथ खरीदी।”

रेबती की सहकर्मी मधुमती देहुरी 2014 से काम कर रहीं हैं। कुनी के प्रशिक्षण केंद्र में शामिल होना उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। बढ़ी हुई आय से उन्होंने अपने घर का पहला पंखा खरीदा, उनका गाँव बागामुंडा में प्रशिक्षण केंद्र से 22 किलोमीटर दूर हुंडातांगिरी गाँव है

“मेरे गाँव में लोग गर्मी से बचने के लिए अपनी झोपड़ियों के बाहर, सड़क के किनारे बैठते हैं। बिजली आती-जाती रहती है और कई लोगों के घर में पंखा नहीं है, ”मधुमती ने गाँव कनेक्शन को बताया। उन्होंने कहा, “मैंने अपने घर में पंखा चलाने के लिए सोलर सिस्टम लगवाया है।” यह सब उनकी बढ़ी हुई आय के कारण संभव हुआ है।

मधुमती अब और कमाई होने पर सिलाई मशीन खरीदना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि वह प्रति माह 8,000 रुपये कमा रही हैं, जबकि पहले यह महज 1,500 रुपये थी।

परंपरागत रूप से ग्रामीण महिलाएँ कोकून से धागा बनाने के लिए पीढ़ियों से चली आ रही ‘थाई रीलिंग’ यानी जाँघ पर रखकर धागा बनाने की पद्धति का इस्तेमाल कर रही थीं, और इस प्रक्रिया में, उनकी पूरी त्वचा पर कट लग जाते थे और पीठ दर्द और जोड़ों के दर्द से हमेशा परेशान रहती थीं।

हालाँकि कुनी इस पारंपरिक तकनीक से हटकर बिजली से चलने वाली रेशम रीलिंग मशीन पर काम करती थीं। लेकिन वो बहुत भारी मशीन थी, जिसे चलाने के लिए कम से कम तीन महिलाओं की ज़रूरत होती थी।

रेशम सूत्र की ‘उन्नति’ मशीन कॉम्पैक्ट और उपयोगकर्ता के अनुकूल है। ओडिशा में मशीन की 35,000 रुपये की लागत का एक बड़ा हिस्सा राज्य सरकार के कपड़ा निदेशालय द्वारा गरीब आदिवासी महिलाओं को सब्सिडी के रूप में दिया जाता है। उन्नति को अपनी आजीविका का हिस्सा बनाने के लिए कुनी को केवल 3,500 रुपये देने पड़े।

“हमारे लाभार्थियों में से सत्तर प्रतिशत आदिवासी महिलाएँ हैं जिनके पास वन उपज के अलावा कमाई का कोई ज़रिया नहीं था। इसके मिलने से उनकी उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार होता है, जिससे उन्हें अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने जैसे निर्णय लेने में मदद मिलती है, ”रेशम सूत्र के सीईओ कुणाल वैद्य ने गाँव कनेक्शन को बताया।

सतत आजीविका के लिए विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों नामक एक रिपोर्ट में कहा गया है, “विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा संचालित ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियाँ जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देते हुए भारत के 60 मिलियन से अधिक सूक्ष्म उद्यमों में से कई की आय और लचीलेपन को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं।” यह रिपोर्ट हाल ही में नई दिल्ली स्थित ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) द्वारा जारी की गई थी।

अध्ययन के अनुसार, विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा आजीविका प्रौद्योगिकियों ने पहले ही भारत भर में 566,000 से ज़्यादा आजीविकाओं को प्रभावित किया है, जिनमें से 14,000 रेशम रीलिंग मशीनों के लिए जिम्मेदार हैं।

अपने पावरिंग लाइवलीहुड्स कार्यक्रम के तहत, सीईईडब्ल्यू छोटे सौर रेफ्रिजरेटर, सौर ऊर्जा से संचालित छोटे बागवानी प्रोसेसर, सौर ऊर्जा से संचालित रेशम रीलिंग मशीन, सौर ऊर्जा से संचालित कोल्ड स्टोरेज, सौर ड्रायर बढ़ावा दे रहा है।

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