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ताइक्वांडो चैंपियन है सड़क किनारे चाय दुकान चलाने वाले की बेटी

ताइक्वांडो की ट्रेनिंग के लिए कोई कोच न होने के बावजूद, उत्तर प्रदेश के कानपुर की पूजा चौहान राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीत रही हैं और आगे बढ़ना चाहती हैं, लेकिन उनके सामने परिवार की आर्थिक स्थिति रोड़ा बन रही है।
#taekwondo

कानपुर, उत्तर प्रदेश। पूजा चौहान को इस साल जून में उत्तर प्रदेश के कानपुर में आयोजित राज्य स्तरीय ताइक्वांडो प्रतियोगिता आज भी अच्छे से याद है, जिसमें उन्होंने सिल्वर मेडल जीता था।

एक चाय की दुकान चलाने वाले की 13 साल की बेटी पूजा यूपी की राजधानी लखनऊ से लगभग 100 किलोमीटर दूर, कानपुर में प्राचीन आनंदेश्वर मंदिर के मुख्य द्वार के ठीक बाहर, बाँस और तिरपाल से बने एक घर में रहती हैं।

लेकिन गरीबी और संघर्ष भी पूजा के सपने में रोड़ा नहीं बन पाए। जागते सोते हर समय पूजा बस एक ही सपना देखती हैं, उन्हें एक एथलीट बनना है। पूजा जूनियर हायर सेकेंडरी स्कूल में इस बार आठवीं कक्षा में हैं।

तिरपाल से बने घर के ठीक बाहर पूजा के पिता सतीश कुमार चौहान, एक चाय की दुकान चलाते हैं, जो परिवार की कमाई का एकमात्र ज़रिया है। अपनी खराब आर्थिक स्थिति के बावजूद 48 वर्षीय पिता अपनी बेटी को उसके सपने को साकार करने में मदद करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं।

 पूजा अब तक उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और दिल्ली जैसे कई राज्यों में ताइक्वांडो प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी हैं

 पूजा अब तक उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और दिल्ली जैसे कई राज्यों में ताइक्वांडो प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी हैं

“सुबह से शाम तक जो 100-200 रुपए की दुकानदारी हो जाती है, उसी से बच्चों का पेट पाल रहा हूँ, उसी से घर चलाता हूँ और उनकी पढ़ाई करा पा रहा हूँ। कई बार जब कोई त्यौहार होता है तो एक दिन में 600-700 रुपए की कमाई हो जाती है, बाकी दिन तो ऐसे ही चलता है, “सतीश ने गाँव कनेक्शन से बताया।”

नौ साल पहले 2014 में उनकी चाय की दुकान पर ही पूजा ने पहली बार ताइक्वांडो चैंपियन की सफेद पोशाक पहनने का सपना देखा था। जबकि चार साल की पूजा को तब पता भी नहीं था कि ये खेल क्या होता है।”

“मैं लगभग चार साल का थी जब मेरे पिता चाय की दुकान पर काम करते थे और मैं बाहर बैठी रहती थी। हर सुबह सफेद कपड़े पहने बच्चों का एक झुंड वहाँ से गुजरता था, ”पूजा ने गाँव कनेक्शन को बताया। उत्सुकतावश पूजा ने अपने पिता से पूछा कि बच्चे कहाँ जा रहे हैं। उसे पता चला कि वे एथलीट थे जो अपने खेल के लिए पास के ग्रीन पार्क में जा रहे थे।

वह 2014 की बात है और तब से पूजा ने एक खिलाड़ी बनने का सपना भी संजो रखा है।

“2014 में मैं ग्रीन पार्क में ताइक्वांडो क्लास में शामिल हुई और अगले साल 2015 में मैंने सर्कल स्तर की ताइक्वांडो प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। अगले ही साल 2016 में मैंने उसी में गोल्ड मेडल जीता, ”पूजा ने कहा।

तब से वह उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और दिल्ली जैसे कई राज्यों में ताइक्वांडो प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी हैं।

पूजा के पास उन्हें सिखाने के लिए कोई कोच नहीं है, लेकिन ये भी उन्हें अपने घर के पास एक छोटे से पार्क में प्रैक्टिस करने से नहीं रोक पाया है। इस साल जून में उन्होंने राज्य स्तरीय चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता है।

पूजा के परिवार के लिए ये ख़ुशी और गर्व का पल था। लेकिन उनके लिए एक अच्छा कोच ढूंढने और पौष्टिक खाना खिलाने के लिए पैसे की कमी के कारण आगे के खेलों में शामिल न कर पाने की चिंता लगातार बनी रहती है।

पूजा के पिता इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि उनकी बेटी को अपने खेल में अच्छा करने के लिए उच्च कैलोरी वाले पौष्टिक आहार की ज़रूरत है।

पूजा ने कहा, “मेरी डाइट में दूध, चिकन, अंडा और फल होना चाहिए।” लेकिन पाँच लोगों के परिवार का खर्च उठाने के बाद उसके पिता को पूजा को कई प्रतियोगिताओं में भेजने के लिए किसी और से पैसे भी उधार लेने पड़ते हैं।

तिरपाल से बने घर के ठीक बाहर पूजा के पिता सतीश कुमार चौहान, एक चाय की दुकान चलाते हैं, जो परिवार की कमाई का एकमात्र ज़रिया है। 

तिरपाल से बने घर के ठीक बाहर पूजा के पिता सतीश कुमार चौहान, एक चाय की दुकान चलाते हैं, जो परिवार की कमाई का एकमात्र ज़रिया है। 

पूजा के बड़े भाई आकाश भी एक अच्छे क्रिकेटर थे। 24 वर्षीय आकाश ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं देश के लिए क्रिकेट खेलना चाहता था, लेकिन हम इसका खर्च नहीं उठा सकते थे।” उन्होंने 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी और अपने पिता की चाय की दुकान में मदद करने लगे।

तमाम चुनौतियों और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के बाद भी पूजा मेडल जीत रहीं हैं।

2016 में, उन्होंने कानपुर मंडल स्तरीय ताइक्वांडो प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता।

2017 में उसने जीत दोहराई।

2017 में जयपुर में आयोजित राष्ट्रीय ताइक्वांडो प्रतियोगिता में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता।

2018 में उन्होंने जयपुर में राष्ट्रीय ताइक्वांडो चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता।

2019 में तेलंगाना में नेशनल चैलेंज सब जूनियर ताइक्वांडो प्रतियोगिता में भी शामिल हुई।

2019 में उन्होंने दिल्ली में थर्ड आर्यन कप नेशनल ताइक्वांडो प्रतियोगिता में सिल्वर जीता।

ग्रीन पार्क में पूजा के पूर्व कोच सुशांत गुप्ता पूजा के धैर्य और दृढ़ संकल्प की तारीफ करते हैं। “मुझे विश्वास है कि थोड़ी सी आर्थिक मदद से पूजा बहुत आगे जा सकती है। मैंने उसका फोकस और कड़ी मेहनत देखी है। वो अक्सर मुझसे कहती है वह मैरी कॉम की तरह ही देश का नाम रोशन करना चाहती है, ”सुशांत गुप्ता ने गाँव कनेक्शन को बताया।

तमाम चुनौतियों और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के बाद भी पूजा मेडल जीत रहीं हैं।

तमाम चुनौतियों और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के बाद भी पूजा मेडल जीत रहीं हैं।

जब पूजा ने मेडल जीते तो उनके पिता ने कई अधिकारियों से संपर्क किया और कुछ मदद मांगी। लेकिन निराशा ही हाथ आई, उन्होंने निराश होकर कहा, “मैंने निगम अधिकारियों, खेल मंत्रालय, मुख्यमंत्री कार्यालय और खुद प्रधानमंत्री को लिखा, लेकिन हमें किसी से कोई जवाब नहीं मिला।”

इस बीच सतीश चौहान को इस बात का भी डर है कहीं तिरपाल और बाँस से बना उनका ये आशियाना न ढह जाए।

“बारिश में तो हम पूरी रात जागते रहते हैं। हम आभारी हैं कि मंदिर के ट्रस्टियों ने हमें यहाँ पर रहने दिया है, लेकिन मेरे पास अपने परिवार के सिर पर छत देने का कोई साधन नहीं है, ”सतीश ने कहा।

“मैं अपनी बेटी के सपनों को पूरा करना चाहता हूँ, लेकिन…, “इतना कहते-कहते ही चुप हो गए।

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