तलाक़, तलाक़, तलाक़ : अभी भी एकतरफा

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तलाक़, तलाक़, तलाक़ : अभी भी एकतरफागाँव कनेक्शन

गोंडा। नजमा (45 वर्ष) के निकाह के समय तो उससे तीन बार कुबूल है पूछा गया था लेकिन जब पति ने गुस्से में तीन बार तलाक़ बोला तो उसकी मर्ज़ी नहीं शामिल थी फिर भी इस्लामिक कानून ने इस तलाक पर अपनी मोहर लगा दी।

गोंडा जिले से लगभग 45 किमी दूर उत्तर दिशा मे नेवतियान गाँव की रहने वाली नजमा के तलाक़ को 15 साल हो गए हैं। नजमा बताती हैं, "मेरे शौहर की परचून की दुकान थी, छुटपुट लड़ाई तो हर घर में होती है लेकिन एक दिन बात ज्यादा बढ़ने पर उन्होंने तीन बार तलाक़ बोला, हालांकि वो उस समय गुस्से में थे उसके बाद से हम अलग रहने लगे। मैं सिलाई करती हूं

और अपने भाइयों के घर में रहती हूं।"

हिन्दू हो या मुस्लिम समुदाय तलाक को लेकर भारत में आज भी महिलाओं की राय को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती। पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित कई इस्लामी देशों में ट्रिपल तलाक प्रतिबंधित है लेकिन भारत में अभी भी हालात अलग हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ अभी भी ट्रिपल तलाक की अनुमति देता है।

मुस्लिम महिलाओं के हक और अधिकार के लिए काम करने वाली मुम्बई की गैर सरकारी संस्था 'भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन' ने 4500 महिलाओं पर सर्वे कराया जो विभिन्न आय समूहों तथा व्यवसाय (गृहिणी भी) से जुड़ी है। 'तलाक़, तलाक़, तलाक़' को  88.3 फीसदी मुस्लिम महिलाओं ने गलत और अपने हक़ के खिलाफ बताया।

लखनऊ के गुदना मदरसे के आलिम मोहम्मद आरिफ़ इस्लाम में तलाक के बारे में पूछने पर बताते हैं, "अगर शौहर ने अपनी बीबी को तीन बार तलाक़, तलाक़, तलाक़ बोल दिया तो इस तलाक़ को कोई नहीं बदल सकता। इस्लाम में तलाक़ देने का हक़ केवल पुरुष को है, महिला को नहीं है। अगर महिला अपने पति से परेशान है तो वो काजी के पास इसकी शिकायत कर सकती है।" वो आगे बताते हैं, "अगर पति तलाक़ देता है तो उसे पत्नी के तीन महीने 13 दिन का खर्च और अगर बच्चा है तो उसका खर्च देना पड़ेगा। इसके साथ ही उसे मेहर शादी में लड़की को मिलने वाला दहेज वापस करना होगा। अगर पत्नी गर्भवती है तो जब तक बच्चा नहीं हो जाता पूरी देखभाल पति की जिम्मेदारी होगी।"

गोंडा के दुर्जनपुर गाँव की रहने वाली शिवानी यादव (30 वर्ष) के पति ने उन्हें तलाक दे दिया है। इस तलाक़ में शिवानी की मर्ज़ी शामिल नहीं थी। वो बताती हैं, "मेरे पति शराब पीकर मार-पीट करते थे पर मैं बर्दाश्त करती रही पर जब वो किसी और महिला से शादी करना चाहते थे तब मुझे न चाहकर भी उन्हें तलाक़ देना पड़ा। अभी प्रक्रिया चल रही है, कोर्ट में लगभग छह महीने हो गए हैं।" 

तलाक की लंबी प्रक्रिया के चलते भारत में तलाक़ कानूनी तौर पर कम और आपसी सहमति से पति पत्नी अलग रहने लगते हैं। यही कारण है की भारत में तलाक़ की दर अन्य देशों के मुताबिक कम है। भारत में तलाक़ की स्थिति के बारे में शोध व आंकड़े जुटाने के लिए काम कर रही संस्था इनडी डिवोर्स के मुताबिक भारत में तलाक की दर बाकी देशों की तुलना में अभी भी बहुत कम है। यहां पर तलाक़ की दर 1.1 फीसदी है। (100 शादियों पर सिर्फ एक तलाक़ की है)

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तलाक़ की प्रक्रिया को आसान बनाने वाले विधेयक को मंज़ूरी दे दी थी लेकिन फिर भी ये प्रक्रिया आसान नही हो पायी। 

कैबिनेट ने सहमति से तलाक़ लेने में दी जाने वाली समझौता अवधि को खत्म करने वाला प्रावधान रद्द कर दिया है, इस मुद्दे को अदालत पर छोड़ दिया गया है, वर्तमान कानून में ये अवधि छह से 18 महीने की होती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता न होने की वजह से महिलाएं कानूनन तलाक़ नहीं लेती और आपसी सहमति (छुटा-छुटी) से अलग हो जाती हैं ऐसे में महिलाओं को उनका पूरा हक़ नही मिल पाता। एनसीआरबी की वर्ष 2011 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 269 लोगों ने तलाक़ के कारण आत्महत्या की। विशेषज्ञों के अनुसार, तलाक़ की वजह से महिलाओं में तनाव की समस्या पैदा होती है और इसका असर लंबे समय तक रहता है। 

गोंडा जिले के करनलगंज ब्लाक के धमसडा गाँव के रहने वाली शकुन्तला पाण्डेय (50 वर्ष) के पति ने बिना तलाक़ के दूसरी शादी कर ली थी। वो बताती हैं, ''महीने का कोई खर्च नही देते थे, हां, रहने की जगह दे दी थी घर से थोड़ी दूर पर एक मड़िया रखवा कर। शकुन्तला का आज तक कानूनी तौर पर कोई तलाक़ नहीं हुआ।"

हाइकोर्ट के अधिवक्ता नीरज कुमार बताते हैं, "विवाह कानून (संशोधन) विधेयक 2010 पत्नी को पति की जायदाद में हिस्से का भी हक देता है, ये हिस्सा कितना होगा, इसे अदालत तय करती है।"

वो आगे बताते हैं, "विवाह कानून संसोधन 2010 के मुताबिक तलाक के बाद महिला को मुआवजा मिलना निर्धारित है। हिंदू मैरिज एक्ट धारा 24 के तहत महिला गुजारा भत्ता मांग सकती है। लेकिन आपसी समझौता करके अलग होने पर ये हक महिलाओं को नहीं मिल पाते।"

 

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