तो ऐसे खत्म हो सकता है अरहर का संकट

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तो ऐसे खत्म हो सकता है अरहर का संकटगाँव कनेक्शन

सिद्धार्थनगर। पूरा देश दाल के संकट से जूझ रहा है। दाल का कम उत्पादन एक राष्ट्रीय समस्या बन गयी है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से अरहर की खेती में किसानों की घटती रुचि ने आम लोगों की थाली से दाल गायब कर दी है। ऐसे में ज़िले के उसका विकास खण्ड में अरहर की खेती में हो रहा सफल प्रयोग एक माडल बन सकता है।

सिद्धार्थनगर जनपद दलहनी फसलों में खासकर अरहर की खेती के लिए पहले काफी प्रसिद्ध था। लेकिन घटते उत्पादन कीटों के प्रकोप व लम्बे फसल चक्र के कारण किसान इससे दूर हो गए। परिणाम वर्तमान संकट के रूप मे हमारे सामने है। इस समस्या से निजात पाने के लिये गैर सरकारी संगठनों ने प्रयास शुरू कर दिया है। जनपद के उसका विकास खण्ड में एक दर्जन ग्राम पंचायतों में अरहर की सघनीकरण विधि से खेती कराई जा रही है। इस विधि से अरहर के एक पेड़ से एक किलो तक दाल प्राप्त की जा सकती है। एक एकड़ मे 20 कुन्तल तक उपज प्राप्त होती है।

गौरा ग्राम निवासी किसान जियारत अली (48) बताते हैं, "जब हमसे दो बाई एक मीटर के जमीन पर बीज डालने के लिए कहा गया तो मन में घबराहट हुई मगर रोपाई के बाद अब पौधे की वृद्धि देखकर भरपूर फसल की उम्मीद है।" परियोजना के समन्वयक प्रदीप कुमार सिंह के अनुसार, ''पहले अरहर की नर्सरी डालने से अच्छी पौध तैयार होती है। 35 दिन की नर्सरी को पंक्तिबद्ध तरीके से खेत मे रोपा जाता है। दो मीटर की दूरी के बीच में मूंगफली व मक्का जैसी फसलों से सहफसली खेती और अधिक लाभदायक सिद्ध हो सकती है।" परियोजना में तकनीकि सहयोग कर रहे पानी संस्था के समन्वयक ज्ञान प्रकाश ने बताया, "पानी संस्थान सिद्वार्थनगर में अरहर की खेती को लाभकारी बनाकर पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है। इसका प्रयोग सफल साबित हो रहा है।"

 

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