टीकाकरण टीम की लापरवाही से ख़त्म नहीं हो रही बीमारी

दिति बाजपेईदिति बाजपेई   30 March 2016 5:30 AM GMT

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लखनऊ/मेरठ। इसके नियत्रंण के लिए भारत सरकार वैक्सीन उपलब्ध कराती है। वैक्सीन को रखने के लिए कोल्ड चेन, लॉजस्टिक इत्यादि व्यवस्थाओं और टीकाकरण के प्रचार-प्रसार के लिए उत्तर प्रदेश सरकार बजट देती है। इसके लिए यूपी सरकार हर साल साढ़े सात करोड़ रुपए खर्च करती है। टीकाकरण करने को टीम बनाई जाती है, जिसमें एक डॉक्टर, दो पशुधन प्रसार अधिकारी, दो चतुर्थ श्रेणी होते हैं। टीम दिनभर में 400 टीका लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया जाता है।

अन्य राज्यों में इस अभियान के बारे में गया प्रसाद बताते हैं, “पंजाब हरियाणा और हिमाचल ऐसे राज्य हैं, जहां इस कोल्ड चेन ने पूरा काम किया है, परन्तु उत्तर प्रदेश में ये कोल्ड चैन टूटती दिख रही है यहां के जि़म्मेदार डॉक्टर स्वयं तो इस कार्यक्रम में फील्ड में जाते नहीं, और अपने टेक्नीशियन और दूसरे अकुशल कर्मचारियों को भेजकर टीकाकरण करवाते हैं जो अपना काम जि़म्मेदारी से नहीं निभाते,”

वो आगे कहते हैं, “मेरे सामने ऐसे भी मामले आते रहे हैं कि जो टीम फील्ड में जाकर टीकाकरण करती है वो इसके बदले पशुपालकों से पैसे भी वसूलते हैं साथ ही वैक्सीन को मानक के अनुरूप नहीं रख पाते, जिससे वो खराब हो जाता है वो फिर भी लगते रहते है इस का क्या फायदा?''

“पशुओं में टीकाकरण करने के लिए सबसे मुख्य समस्या स्टॉफ की आती है। स्टाफ को प्रशासन द्वारा सौंपे गए (चीनी का सत्यापन, राशन दुकानों का सत्यापन, लोहिया का सत्यापन) में लगा दिया जाता है, जिससे वह पूरा समय नहीं दे पाते है और टीकाकरण में देरी हो जाती है। स्टाफ की कमी के कारण अभियान में पशु मित्रों, डेयरी किसानों को लगाते है, जिनके माध्यम से टीकाकरण को पूरा किया जाता है। विभागीय कर्मचारी न होने के कारण उनको मानदेय के रूप में प्रति पशु एक रुपया दिया जाता है। दूसरी समस्या यह भी है कि जिले में बिजली न होने से वैक्सीन का तापमान उतना व्यवस्थित नहीं रह पाता है।” डॉ वीके सिंह बताते हैं।

रिपोर्टर - दिति/सुनील तनेजा

 

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