किसानों की मांग : कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग कानून में बटाईदारी के लिए हों नियम

Divendra SinghDivendra Singh   1 Feb 2017 6:20 PM GMT

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किसानों की मांग : कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग कानून में बटाईदारी के लिए हों नियमदेश में बड़े पैमाने पर बटाई में खेती होती है, जिसमें जमीन किसी और की और खेती कोई और करता है। 

लखनऊ। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट 2017 जारी करते हुए इस बात की घोषणा की कि सरकार जल्द ही 'कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग' यानि 'अनुबंध के तहत खेती' करने को कानून बनाकर व्यवस्थित करने पर विचार कर रही है। किसानों का मानना है कि इससे उनके खेती को सुधारने में मदद मिलेगी। और ये मांग भी की कि सरकार को नियम बनाते समय बटाईदार किसानों को ध्यान में रखना होगा।

ज्यादातर किसान छोटी जोत के ही हैं उन्हें इस तरह की व्यवस्था से फायदा मिलेगा क्योंकि उसकी फसल बिकने के समय दाम घटने का डर नहीं बचेगा,
राकेश दुबे, किसान, बहराएं गांव, फैजाबाद, यूपी

"ज्यादातर किसान छोटी जोत के ही हैं उन्हें इस तरह की व्यवस्था से फायदा मिलेगा क्योंकि उसकी फसल बिकने के समय दाम घटने का डर नहीं बचेगा," फैजाबाद के बहराएं गाँव के किसान राकेश दुबे (45 वर्ष) ने कहा।

किसी फसल की खेती अनुबंध के तहत करने का चलन भारत में बहुत लंबे समय से रहा है। नब्बे के दशक में आर्थिक उदारीकरण के बाद खेती से जुड़ी बड़ी कंपनियां भी किसानों के सीधे संपर्क में आईं और गन्ने, आलू, कॉफी जैसी नकदी फसलों की खेती के लिए अनुबंध के तहत शुरू की। इनमें से ज्यादातर अनुबंध फसल तैयार होने के बाद एक नियत दाम पर किसान से खरीदे जाने के बारे में होते थे।

नब्बे के दशक के बाद अलगे लगभग तीन दशकों तक कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग ने जोर पकड़ा। सीधे कंपनियों से अनुबंध करके खेती करने लगे। लेकिन इसी सब के बीच किसान के हित बड़ी कंपनियों द्वारा मारे जाने की चर्चा उठने लगी। इसका एक कारण ये भी था कि इस व्यवस्था को देश में कभी कानून के रूप में नहीं ढाला गया था। अरुण जेटली ने इसी दिशा में कदम बढ़ाने की घोषणा बजट भाषण में की। एक तरफ किसान खुश हैं कि नियम बनने से कोई बड़ी कंपनी उन्हे ढग नहीं पाएगी, वहीं दूसरी ओर उनकी चिंता ठेका खेती या बटाई खेती को लेकर भी है।

बटाई व्यवस्था कानूनी नहीं है जिससे बहुत सी सरकारी योजनाएं उन्हें नहीं मिल पातीं। जो किसान बटाई पर खेती करते हैं, उनमें अनिश्चिता बनी रहती है कि अगली बार मालिक खेत देगा की नहीं। इस पर एक निश्चित नियम बने जो कानून में (कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग के कानून) शामिल हो।
केपी सिंह, प्रगतिशील किसान बिठौरा, सीतापुर

सीतापुर जिले के बिठौरा गाँव के किसान केपी सिंह कहते हैं, "जो किसान बटाई पर खेती करते हैं, उनमें अनिश्चिता बनी रहती है कि अगली बार मालिक खेत देगा की नहीं। इस पर एक निश्चित नियम बने जो कानुन में (कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग के कानून) शामिल हो,"। वे आगे कहते हैं, "बटाई पर खेती करने वाले किसानों की संख्या बहुत है। बटाई व्यस्था कानूनी नहीं है जिससे बहुत सी सरकारी योजनाएं उन्हें नहीं मिल पातीं।"

"या तो बटाई किसान को कॉन्ट्रैक्ट पीरियड में किसान माना जाए या तो उन्हें लाभांश मिलना तय हो," किसान राकेश दुबे ने कहा।

अरुण जेटली ने कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग कानून का ज़िक्र बजट भाषण में किसान की आय पांच साल में दुगना करने की प्रतिबद्धता को दोहराने के साथ की। कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग कानून देश की कृषि को मजबूत बनाने के लिए जरूरी आधारभूत विभिन्न ज़रूरतों में से एक है।

देश में होने वाली कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को अब किसान से एक नियत मूल्य पर फसल खरीदने की शर्त से आगे बढ़ना होगा। यदि यह व्यवस्था इस तरह से भी की जाए कि कंपनियां किसानों की लागत, कृषि तकनीक और उन्नत बीज उपलब्ध करवाने में सहायता करें तो इससे कए किसान की खेती को लेकर समझ का भी विकास होगा।

विरोध में भी हैं कई किसान

हालांकि कुछ किसान ऐसे भी हैं जो अभी भी इस व्यवस्था के समर्थन में नहीं हैं। बरेली जिले के करनपुर गाँव के जबरपाल सिंह (40 वर्ष) कहते हैं, "कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग के नियम से किसानों को लाभ नहीं मिलने वाला है। ऐसे तो किसान खत्म हो जाएगा, ऐसा न हो कि बड़ी कंपनियों को खेती करने के लिए खेत दे दिए जाएं। तब तो किसान मजदूर हो जाएगा"।

अंबेडकरनगर जिले के सरांवा गाँव के किसान संजय पांडेय कहते हैं, "कांन्ट्रैक्ट फार्मिंग खेती को बढ़ावा देने के बजाय छोटी जोत वाले किसानों को संघ या समिति बनाकर खेती करवाएं तो लागत भी कम आयेगी और गाँव मे भाई चारे का माहौल भी बनेगा, जिसकी नितान्त आवश्यकता है"।

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