नोटबंदी से यूपी चुनाव में और बढ़ेगा धन का दुरुपयोग: इलेक्शन वॉच

Rishi MishraRishi Mishra   26 Dec 2016 7:47 PM GMT

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नोटबंदी से  यूपी चुनाव में और बढ़ेगा धन का दुरुपयोग: इलेक्शन वॉचसंजय सिंह, मुख्य संयोजक, (यूपी इलेक्शन वॉच)

लखनऊ। नोटबंदी से चुनाव के दौरान धन का दुरुपयोग रुकने पर शक है। चुनाव को लेकर विभिन्न मुद्दों पर सर्वे कर के अपनी राय रखने वाली संस्था इलेक्शन वॉच का दावा है कि संभावित प्रत्याशियों ने सारे रास्ते निकाल लिये हैं। बैंकों के दलालों से मिल कर कैश जुटाया गया है। जिसको चुनाव में खपाया जाएगा।

पुराने नोटों से शराब और साड़ियां जुटा ली गई हैं। अब आगे कम खर्च हो इसके लिए अमीर लोगों से कैश में चंदा लेने की जगह उनसे संसाधन जुटाने के लिए धमकाया जा रहा है। जिससे आगामी चुनाव में अपराध के बढ़ने की भी आशंका है। इलेक्शन वॉच ने 10 मंडलों में 3000 लोगों पर ये सर्वे किया, जिनमें से 300 लोग आगामी चुनाव के प्रत्याशी हैं। इन प्रत्याशियों में 69 फीसदी ने माना कि नोटबंदी से चुनाव का खर्च घटने की जगह 10 से 30 फीसदी तक बढ़ेगा।

भ्रष्टाचार पर निर्णायक प्रहार बताए जाने वाले विमुद्रीकरण/नोटबंदी के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुानवों में होने वाला खर्च घटने के बजाए और बढ़ेगा। नोटबंदी चुनावों में कालेधन का प्रवाह नही रोक सकेगी। विमुद्रीकरण के फैसले के बाद चुनावों में कालाधन खपाने वालों ने इसके नए-नए तरीके खोज लिए हैं। एडीआर सर्वे के मुताबिक विमुद्रीकरण के बाद भी उत्तर प्रदेश के इस बार के विधानसभा चुनावों में बीते सालों के मुकाबले 10 से 30 फीसदी ज्यादा धन खर्च होगा। सर्वे में संभावित प्रत्याशियों व पार्टी पदाधिकारियों में से 69 फीसदी ने कहा कि विमुद्रीकरण का चुनाव प्रचार पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा।

जबकि 65 फीसदी ने माना कि इससे वोटरों की खरीद फरोख्त पर कोई असर नही पड़ेगा।ज्यादातर संभावित प्रत्याशियों 70 फीसदी ने कहा कि वो चुनाव जीतने के लिए पुराने तरीकों का ही सहारा लेंगे। हालांकि नोटबंदी के चलते सर्वे में शामिल 80 फीसदी सामान्य लोगों ने माना है कि इसकी वजह से चुनाव प्रचार में काफी कठिनाई होगी। चुनाव सामाग्री का कारोबार करने वाले 70 फीसदी व्यापारियों का मानना है कि इसके चलते उनके ग्राहक कम हुए हैं। कैशलेस व्यवस्था लागू किए जाने और नंबर एक में भुगतान पर जोर के चलते 60 फीसदी ने माना है कि इससे उनके व्यापार पर कोई असर नही होगा जबकि 30 फीसदी का कहना है कि थोड़ा बहुत असर होगा।

कुछ इस तरह से किया सर्वे

विमुद्रीकरण के बाद उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के खर्च के पैटर्न और संभावित तरीकों पर चुनाव सुधार के लिए काम कर रही संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिर्फाम (एडीआऱ) यूपी इलेक्शन वॉच ने बीते दिनों प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों की विभिन्न सीटों पर सर्वे कराया। एडीआर उत्तर प्रदेश के मुख्य संयोजक संजय सिंह ने बताया कि “प्रदेश के 10 मंडलों झांसी, बांदा, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, बनारस, गोरखपुर, इलाहाबाद, आगरा और बरेली की 30 विधानसभा सीटों पर एडीआर की रिसर्च टीम के सदस्यों ने संभावित प्रत्याशियों, पार्टी पदाधिकारियों और चुनाव में काम करने वाले कारोबारियों व कार्यकर्त्ताओं से सवाल पूंछे और पहले तैयार प्रश्नावली भरवायी। 30 विधानसभा क्षेत्रों में 3000 लोगों से बातचीत की गई है। इनमें से 300 लोग चुनाव के उम्मीदवार और दलों के पदाधिकारी थे। जिन्होंने सच्चाई खुल कर मानी। कहा कि हमारा खर्च घटाने की जगह नोटबंदी ने बढ़ा दिया है।”

हम इसकी शिकायत चुनाव आयोग से करेंगे। इस अधयनन को हम चुनाव आयोग के साथ साझा करेंगे। चुनाव आचार संहिता लागू होने के दौरान उम्मीद करेंगे आयोग इन सारे बिंदुओं पर भी नजर बनाए रखे।
संजय सिंह, मुख्य संयोजक, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिर्फाम (एडीआऱ) यूपी इलेक्शन वॉच

पुराने नोटों से हो गई बड़ी खरीददारी

सर्वे के दौरान यह सामने आया कि बड़ी तादाद में चुनावी पैसा जनधन खातों में जमा कराया गया था। संभावित प्रत्याशियों व पार्टियों ने नोटबंदी के साथ ही तमाम कालाधन चुनाव के लिए खर्च के रुप में एडवांस में दे डाला है। संभावित प्रत्याशियों व राजनैतिक दलों की और गाड़िया, कीमती सामान, साड़ियों और मोबाइल आदि की खरीद भी हो चुकी है। सर्वे में यह भी सामने आया कि विमुद्रीकरण के कारण नए किस्म के दलाल पैदा हो गए हैं जो चुनावों के काला धन खपाने में लगे है। साथ ही सर्वे से यह भी पात चला कि चुनावों के दौरान मीडिया पर भी अघोषित रुप से खर्च किया जाएगा जिसमें एक बड़ी हिस्सेदारी सोशल मीडिया की भी होगी।

संजय सिंह के मुताबिक “रैंडम तरीके से किए गए इस सर्वे में विधानसभाओं का चयन पूरे प्रदेश को कवर करने के हिसाब से किया गया है। प्रत्येक जिले में कम से कम लक्ष्य समूह (टारगेट ग्रुप) के सात लोगों से बातचीत की गयी है। लक्ष्य समूह (टारगेट ग्रुप) दो प्रकार के थे। पहला प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव से जुड़ा हुआ जैसे प्रत्याशी, पार्टियों के जिलाध्यक्ष या विधानसभा अध्यक्ष जबिक दूसरा अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हुआ ग्रुप जैसे साउंड सिस्टम, टेंट व शामियाना हाउस, बैनर होर्डिंग कारोबारी, इवेंट या चुनाव मैनेजमेंट से जुड़े व्यापारी आदि। इसके अतिरक्त सर्वे के दौरान शिक्षाविदों, चुनाव सुधार पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्त्ताओं आदि से भी रायशुमारी की गयी है। सर्वे के दौरान लक्ष्य समूहों (टारगेट ग्रुप) के लोगों से व्यक्तिगत तौर पर मिला गया या फिर उनसे फोन के जरिए सवाल पूंछे गए हैं।“

धार्मिक आयोजनों में भी प्रभावित करने का खेल

इस सर्वे में सामने आया है कि धार्मिक आयोजनों के जरिये भी वोटरों को लुभाने की कोशिशें की जा रही हैं। कई जगह मद भागवत कथाएं और मिलाद हो रहे हैं। कहीं क्रिकेट की प्रतियोगिताओं का आयोजन हो रहा है। जिसमें जम कर खर्च किया जा रहा है। यहां बड़ी संख्या में लोगों को भोजन और उपहारों से नवाजा जा रहा है।

     

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