सरकार के लिए पूर्वांचल की सीटें अहम, 2012 में 106 सीटें देकर पू्र्वांचल ने ही अखिलेश के लिए बनाया था मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का रास्ता

Ashwani NigamAshwani Nigam   22 Feb 2017 2:10 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
सरकार के लिए पूर्वांचल की सीटें अहम, 2012 में 106 सीटें देकर पू्र्वांचल ने ही अखिलेश  के लिए बनाया था मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का रास्तापूर्वांचल का चुनाव

गोरखपुर/लखनऊ। प्रदेश को सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री देने वाले पूर्वांचल में एक बार फिर सभी पार्टियों की निगाहें हैं। बाकी बचे चार चरणों के चुनाव में अधिकतर सीटें पूर्वांचल की हैं। यहां के कुल 28 जिलों में से 170 विधानसभा सीटें सभी दलों के लिए काफी मायने रखती हैं।

उत्तर प्रदेश विधानसभा के तीन चरण में 403 में से 204 सीटों पर चुनाव संपन्न हो चुका है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में कहावत है कि जिसने पूर्वांचल जीता उसने लखनऊ की कुर्सी पर कब्जा जमाया। इसी को देखते हुए कांग्रेस-सपा गठबंधन से लेकर बीजेपी और बीसपी समेत सभी पार्टियां पूर्वांचल का किला फतह करने के लिए जोर लगा रही हैं। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल में 106 सीटें जीतकर सपा ने लखनऊ की गद्दी पर पहुंचने का रास्ता साफ किया था।

लेकिन इस बार सपा की राह में बसपा और बीजेपी ने जोरदार घेरबंदी कर दी है। चौथे चरण में 23 फरवरी को पूर्वांचल की इलाहाबाद, कौशाम्बी और प्रतापगढ़ जिले में मतदान होगा, वहीं पांचवें चरण में 17 फरवरी को यहां के 9 जिलों में मतदान होगा। छठे और सांतवें चरण मे पूर्वांचल की सभी 89 सीटों पर चुनाव होगा।

पूर्वांचल की सबसे बड़ी समस्या यहां की चीनी और काटन मिलों के बंद होने एवं परंपरागत और छोटे उद्योगों के दम तोड़ने कि वजह से रोजगार के लिए लोगों का दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में पलयान करना है। लेकिन किसी भी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया।’’
मनोज सिंह, पूर्वांचल की राजनीति को पिछले कई दशक से देख रहे वरिष्ठ पत्रकार

उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों से यहां की राजनीति में माफियाओं का बोलबाला हो गया है। उत्तर प्रदेश में कभी मुद्दों पर संघर्ष के लिए पहचाने जाने वाले इस क्षेत्र के नए नेता के रूप में बाहुबलियों का उदय हुआ है जिनका काम ठेकेदारी और रंगदारी है। जो राजनीतिक पार्टियों के संरक्षण में फल-फूल रहे हैं। वैचारिक राजनीति और देश को युवा तुर्क प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और वीपी सिंह देने वाले इस क्षेत्र में अब राजनीति की पहचान फायर ब्रांड हिन्दू नेता गोरखपुर से बीजेपी सांसद महंत आदित्य नाथ और माफिया की छवि रखने वाले मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, धनंजय सिंह और उनके जैसे दूसरे लोग हैं। जो सांसद और विधायक बनते रहते हैं।

पूर्व सीएम वीर बहादुर को याद करती है जनता

गोरखपुर जिले की खजनी तहसील के हरनही गाँव के रहने वाले वीर बहादुर सिंह 24 सितंबर 1985 से लेकर 24 जून 1988 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने पूर्वांचल के विकास के लिए कई काम किए जिसके कारण उनके यहां पूर्वांचल का विकास पुरुष भी कहा जाता था। हालांकि उनके असमायिक निधन से यहां के लोगों को धक्का लगा।

गोरखपुर समेत पूर्वांचल के सभी जिलों में लोगों के पास बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। वीर बहादुर सिंह ने यहां के विकास के लिए कई योजनाएं चलाई लेकिन उनके जाने के बाद किसी ने इस क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया।वीर बहादुर सिंह गोरखपुर से सटे पनियरा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करते थे।
गामा सिंह, वीर बहादुर सिंह के गांव के निवासी

आज शाम से थमेगा प्रचार

12 जनपदों की 53 सीटों के लिये थमेगा चुनाव प्रचार

23 फरवरी को होगा रायबरेली, प्रतापगढ़, कौशाम्बी, इलाहाबाद, जालौन, झांसी, ललितपुर, महोबा, बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट और फतेहपुर जिलों की 53 सीटों पर मतदान।80 उम्मीदवार चौथे चरण में

विकास के पैमाने पर पिछड़ा पूर्वांचल

उत्तर प्रदेश की राजनीति में सबसे ज्यादा प्रभाव डालने के बाद भी विकास के पैमाने पर पूर्वांचल प्रदेश का सबसे पिछड़ा क्षेत्र है। पिछले कई दशक से जातीय समीकरण और संपद्रायिक धुव्रीकरण का कार्ड पूर्वांचल में खेलकर सत्ता में आने वाली पार्टियों ने यहां के लिए कोई काम नहीं किया। यही कारण है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी से लेकर कानून-व्यवस्था के मामले में प्रदेश के बाकी हिस्सों से यह काफी पिछड़ा है।

          

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.