चुनाव में मजबूती से ताल ठोंक रहे पूर्व छात्रनेता

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चुनाव में मजबूती से ताल ठोंक रहे पूर्व छात्रनेताये पूर्व छात्र नेता हैं मैदान में।

अश्वनी कुमार निगम

लखनऊ। राजनीति की पहली पाठशाला कहे जाने वाले विश्वविद्यालय और डिग्री कालेजों की छात्र राजनीति में भले ही एक दशक से सन्नाटा पसरा हो लेकिन यूपी चुनाव में पूर्व छात्र नेता मजबूती के साथ मैदान में डटे दिख रहे हैं।

छात्रसंघ चुनावों में सुधार के लिए लिंगदोह समिति की सिफारिशें लागू होने के बाद प्रदेश के अधिकतर विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव नहीं हो रहे हैं और छात्रसंघ भवनों में ताला लटका है। साल 2001-12 में लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे शैलेश कुमार सिंह ‘’शैलू ‘’ बलरामपुर की गैसड़ी विधानसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार हैं। उनका कहना है, ‘’छात्र राजनीति से निकले लोगों ने देश की राजनीति में बेहतर मुकाम हासिल किया है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से छात्र राजनीति का खत्म करने की साजिश हुई है। लेकिन इसके बाद भी छात्र नेता अपने संघर्षों की बदौलत जगह बना रहे हैं।’’

विधानसभा चुनाव में सपा, बीजेपी और कांग्रेस ने कई छात्र नेताओं को चुनाव लड़ने का मौका दिया है। आजादी के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्रसंघ की पहली महिला अध्यक्ष बनने वाली ऋचा सिंह सपा के टिकट पर इलाहाबाद पश्चिमी सीट से चुनाव मैदान में हैं। उनका कहना, ‘’छात्र राजनीति ने वैचारिक स्तर पर देश-दुनिया के मुद्दों करीब से समझने का मौका दिया। इलाहाबाद विशविद्यालय ने देश को कई बेहतर राजनेता दिया है। जनता के लिए बेहतर काम कर सकूं इसलिए जनता के बीच आई हूं।’’

उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूर्वांचल के छात्र नेताओं का दबदबा रहा है। ऐसे में यहां की आधा दर्जन सीटों पर पूर्व छात्रनेता मैदान में हैं। इसमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ की अध्यक्ष रही ऋचा सिंह इलाहाबाद पश्चिम, गोरखपुर विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे शीतल पांडेय गोरखपुर जिले की सहजनवां सीट, इसी विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रहे श्रीकांत मिश्र कुशीनगर जिले की तमकुही राज, किसान पीजी कालेज बस्ती छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे महेन्द्र नाथ यादव को बस्ती सदर से सपा से चुनाव मैदान में हैं।

लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के उपाध्यक्ष रहे पवन पांडेय अखिलेश सरकार में मंत्री होने के साथ ही अयोध्या सीट से दोबारा किस्मत आजमा रहे है वहीं लखनऊ विश्वविद्यालय के नेता शैलेन्द्र भदौरिया समाजवादी छात्रसभा से राजनीति करके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की कोर टीम में शामिल हैं।

लिंगदोह समिति की सिफारिशों के बाद कमजोर पड़ी छात्र राजनीति

देशभर के विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव में बढ़ रही अराजकता, पैसे का खेल अपराधीकरण और बाहुबल से चिंतित सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएमएस लिंगदोह के नेतृत्व में साल 2006 में एक समिति बनाई गई। इस समिति ने छात्रसंघ चुनाव के लिए जो सिफारिशें की उसे साल 2007 में देशभर के सभी विश्वविद्यालयों में लागू किया गया। इस समिति की सिफरिशों के अनुसार चुनाव लड़ने वाले छात्र नेताओं की उम्र सीमा को निर्धारित किया गया। जिससें यूजी के लिए 22, पीजी के लिए 25 और शोध छात्र के लिए 28 वर्ष उम्र निर्धारित किया गया। इसके अलावा प्रत्याशियों के लिए कक्षा में 75 प्रतिशत उपस्थिति, चुनाव प्रचार में एक प्रत्याशी को अधिकतम पांच हजार रुपए खर्च ओर मुद्रित पोस्टर, पम्फलेट पर पूरी तरह रोग लगाने जैसी सिफारिशें शामिल थी। विभिन्न छात्र संगठन लिंगदोह समिति के सिफारिशों के विरोध में आ गए। जिसके बाद देश में कुछ डीयू, जेएनयू और कुछ गिनेचुने कालेजों में ही छात्रसंघ चुनाव हो रहे हैं। लिंगदोह समिति की सिफारिश लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ राजनीति पर असर पड़ा। स्थिति यह है कि छात्र नेताओं की नई पौध यहां अब तैयार नहीं हो रही है।

  

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