जिन्दगी दिहाड़ी करते गुजर गयी लेकिन ये मजदूर नहीं हैं

मजदूरों के लिए बहुत सी सरकारी योजनाएं हैं लेकिन देश में एक बड़ी तादात में मजदूर इन योजनाओं के लाभ से वंचित हैं, मजदूर नहीं जानते कि वो सरकारी मानकों के अनुसार मजदूर हैं भी या नहीं।

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   22 May 2018 10:42 AM GMT

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जिन्दगी दिहाड़ी करते गुजर गयी लेकिन ये मजदूर नहीं हैं

लखनऊ।हर साल बजट का एक बड़ा हिस्सा मजदूरों के कल्याण के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार खर्च करती हैं, लेकिन आज भी देश के मजदूरों का एक बड़ा तबका सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित है।देश के लाखों मेहनतकश लोग आज भी सरकारी मानकों मजदूर नहीं हैं।प्रश्न ये हैं की ये दिहाड़ी मजदूर अगर मजदूर नहीं है, तो क्या हैं।

लखनऊ जनपद के इंजीनियरिंग कॉलेज चौराहे पर लगने वाली लेबरमंडी में जिला सीतापुर के सतनापुर से काम की तलाश में आये 40 वर्षीय सुरेश से जब गाँव कनेक्शन प्रतिनिधि ने श्रमिक पंजीकरण व् सरकारी योजनाओ के बारे में पूछा तो सुरेश ने बताया," करीब 15 साल से दिहाड़ी मजदूर हूं, लेकिन मुझे इसकी जानकारी आज आपके माध्यम से हुई है"।अड्डे पर मौजूद बहुत से मजदूरों को पंजीकरण और योजनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।इन मजदूरों को ये तक नहीं पता की ये मजदूर की श्रेणी में आते भी हैं की नहीं।

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इन मजदूरों को लाभ आखिर कैसे मिलें...
उत्तर प्रदेश के जनपद सीतापुर के हरिनगर निवादा गाँव के मजदूर मुकेश के पास सवा दो बीघा जमींन थी, खेती में काम न होनें पर मुकेश शहर मजदूरी के लिए जाता था। फरवरी 2018 में मुकेश काम की तलाश में लखनऊ आया था। लेबर अड्डे से उसे गुडंबा जानकीपुरम क्षेत्र में एक निर्माणाधीन मकान में मजदूरी मिल गयी, मकान के तीसरी मंजिल पर शटरिंग बांधते समय मुकेश तीसरी मंजिल से नीचे गिर गया और उसकी मौत हो गई। मुकेश के छोटे भाई होली ने बताया, घटना की पूरी जानकारी उसे नहीं हो पाई, क्योकि भाई की लाश सीधे मेडिकल कॉलेज से मिली। घटना की सूचना देने वाले मिस्त्री और मकान मालिक ने उसे यही बताया।
होली ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया ," वो लोग भले लोग थे। हमारे पास पैसे नहीं थे। उन लोगों ने भाई की लाश को घर तक भिजवाया और अंतिम संस्कार के पैसे दिए थे।" यह घटना महज एक बानगी है जाने मुकेश जैसे कितने मजदूर दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं और परिवार सड़क पर आ जाता है। और पंजीकृत मजदूर या मजदूर की श्रेणी में न होने के कारण ऐसे मजदूरों सरकारी सहायता भी नहीं मिल पाती।
विभिन्न योजनाओं में श्रमिकों को दिए 903 करोड़ रुपए
उत्तर प्रदेश भवन एवं अन्य सन्निनिर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के सहायक श्रमायुक्त योगेश चन्द्र बताते हैं," बोर्ड में उन मजदूरों का पंजीकरण होता है जो निर्माण कार्य के किसी भी क्षेत्र से जुड़े हैं इनमे
-बिल्डिंग का कार्य
-कारपेंटर का कार्य
-कुआँ खोदने वाले
-रोलर चलाने वाले
-छप्पर छाने वाले
-राजमिस्त्री
-प्लम्बर
-लोहार
-मोजेक पॉलिश
-सड़क निर्माण, मिक्सर चलाने वाले
-पुताई
-इलेक्ट्रिक काम
-हथौड़ा चलाने का कार्य
-सुरंग कार्य
-टाइल्स लगाने का काम
-कुआँ से गाद(तलछट) निकालने का काम करने वाले
-चट्टान तोड़ने का काम
-स्प्रे या मिक्सिंग कार्य
-मार्बल और स्टोन कार्य
-निर्माण स्थल पर चौकीदारी का काम
-सभी प्रकार के पत्थर काटने तोड़ने व् फिनिशिंग का कार्य
-निर्माण अधिष्ठान में लिपिक या लेखाकार का काम करने वाले
-स्वीमिंग पूल, सड़क का निर्माण भवन निर्माण के अधीन कोई कार्य
-बाढ़ प्रबंधन व इसी प्रकार के अन्य कार्यो से सम्बंधित कार्य
-ठन्डे एवं गरम मशीन की स्थापना और मरम्मत कार्य
-अग्निशमन प्रणाली की स्थापना और एवं मरम्मत कार्य
-खिड़की ग्रिल एवं दरवाजों की गढ़ाई और स्थापना का काम
-रसोई में उपयोग हेतु माड्यूलर किचन की बनाने वाले
-सामुदायिक पार्क या फुटपाथ का निर्माण
-ईट भट्ठों पर ईटा निर्माण का कार्य
-मिटटी बालू व् मौरंग के खनन का काम
-सुरक्षा द्वार एवं अन्य उपकरणों की स्थापना
-लिफ्ट एवं स्वचालित सीढ़ी की स्थापना का कार्य
-सीमेंट,कंक्रीट,ईटा आदि ढ़ोने का कार्य
-चूना बनाने का कार्य करने वाले लोग
-श्रमिक की श्रेणी में आते हैं,जो श्रमिक इन क्षेत्रो में काम कर रहे है,उनका श्रमिक पंजीकरण हो सकता हैं।
योगेश आगे बताते है,"असंगठित क्षेत्र में निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों के पंजीकरण के लिए डीएलसी द्वारा लेबर अड्डो ,ब्लाक ,पंचायत तथा तहसील दिवस पर कैंप का आयोजन कर पंजीकरण कराया जाता हैं। उत्तर प्रदेश में मार्च 2018 तक 42 लाख 80 हजार सात सौ चवालीस श्रमिक पंजीकृत किये गये हैं। इनमे से 15 लाख पात्र श्रमिको को 9 अरब,तीन करोड़ 84 लाख 4 हजार रुपए ,17 सरकारी योजनाओ के माध्यम से दिए गये हैं।
ये न किसान हैं न मजदूर ...
लखनऊ जनपद के ग्राम दुघरा के 65 वर्षीय बाबूलाल बताते है,"चालीस साल तक दूसरे गाँव के लोगो की जमींन बटाई लेकर किसानी करते रहें अब शरीर में काम करने का दम नही बचा ,पूरी जिन्दगी मेहनत करने के बाद अब बच्चो के रहमोकरम पर हूँ,हमे न तो कभी किसान होने का कोई सरकारी फायदा मिला न ही कभी मजदूर होनें का फायदा मिला।


"उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के खदरा निवासी रिक्शा चालक करम हुसैन बताते हैं ," जब 50 पैसे में खदरा से चारबाग तक दुइ सवारी जाती थी, तब से रिक्शा चला रहे है
,उम्र पूछने पर बताते है बस दो चार साल बचीं होगी उम्र का क्या"। ये पूछने पर की रिक्शा क्यों चलाते हो तो बीड़ी बुझाते हुए बताते है ," लगभग 48 साल से यही कर रंहै है, अक्षर ज्ञान है नही और बुड्ढों को कोई नौकरी नही देता ,पूंजी है नही, जिंदा रहना है तो काम करना है।ऊपर वाले का रहम है, दो वक्त की रोटी मिल जाती है। सरकारी मदद के बारें में पूछने पर बताते हैं आज तक कभी किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है, हम कहीं लिखा -पढ़ी में मजदूर नहीं हैं।
मध्य प्रदेश में शुरू की गयी है "असंगठित क्षेत्र मजदूर कल्याण योजना "
मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने इस बार असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए "असंगठित क्षेत्र मजदूर कल्याण योजना" की शुरुआत की है। इस कई अन्य श्रेणियो के मजदूर भी "श्रमिक "के तौर पर शामिल किये गए हैं।
- ग्रामीण मजदूर
-खेतिहर असंगठित क्षेत्र के मजदूर
-गृह कर्मी
-स्ट्रीट हाकर
-मछली पकड़ने वाले
-पत्थर तोड़ने वाले
-गोदाम में काम करने वालों
-हथकरघा मजदूर
-परिवहन
-बिजली के सामान का काम करने वाले
-डाइंग-प्रिंटिंग
-लकड़ी का सामान
-चमड़े का सामान
-जूते बनाने वाले
-मिलों में काम करने वालें
-पोहा मिलों में काम करने वाले
-लकड़ी का काम करने वालें
-सिलाई ,बुनाई ,कढ़ाई करने वालें
-ऑटो रिक्शा चालक भी शामिल किये गये है। साथ ही मई में मजदूर दिवस पर सभी ग्रामो और वार्डो में पंजीकृत मजदूरों की सूची आम सभा में सार्वजनिक की गयी हैं।
पटरी दुकानदार और रिक्शा चालक संघ उत्तर प्रदेश के महामंत्री अनुपम शुक्ल बताते है, " सड़क किनारे जूता पालिश करने वाले ,रिक्शा वाले, स्ट्रीट वेंडर, फेरी,टेम्पो वाले , इन्हें किसी योजना का फायदा नहीं मिलता और न ही काम की कोई गारंटी है। उल्टे जब तब लोग इनका शोषण ही करते रहते हैं,सरकार ही बताये की आखिर ये लोग मजदूर नही है तो क्या हैं।


    

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