महराष्ट्र और एमपी की राह पर यूपी के किसान, 58.2 प्रतिशत किसान परिवार कर्ज़ में डूबे
Ashwani Nigam 2 Jun 2017 8:44 PM GMT

लखनऊ। अपनी फसल का उचित मूल्य नहीं मिलने और घाटे का सौदा बनती खेती को लेकर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के किसानों ने 10 दिन को आंदोलन छेड़ा है। गुरुवार से शुरू हुए किसानों की इस हड़ताल का शुक्रवार को दोनों राज्यों पर भारी असर देखने को मिला। दूध और सब्जियों के लिए यहां के प्रमुख शहरों में लोगों को लाले पड़ गए। अपनी फसलों का सही दाम नहीं मिलने दिनों-दिन कर्ज में डूबे उत्तर प्रदेश के किसानों ने आंदोलन करने का फैसला किया है।
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भारतीय किसान यूनियन के मुख्य प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बताया '' सरकार ने कृषि आयात को बढ़ावा देने के फैसले से किसानों को उनकी उपज का दाम नहीं मिल रहा है। स्थति यह है कि किसान की लागत नहीं निकल पा रही है। ऐसे में किसान के पास सड़क पर उतरने के अलावा कोई चारा नहीं है। '' उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में किसानों की स्थिति दयनीय है। कर्जमाफी की घोषणा के बाद जहां अभी तक यह आदेश फाइलों में ही घूम रहा है वहीं किसान अपनी मेहनत से पैदा किए अनाज और फल-सब्जियों को औने-पौने दामों पर बेचने पर मजबूर है।
इलाहाबाद जिले के बारा तहसील के चितौरी गाँव को सब्जियां को हब कहा जाता है। इस गाँव में 80 प्रतिशत सब्जियां होती हैं। पूरे साल यहां हर प्रकार की सब्जियां उगाई जाती हैं। बैंगन, टमाटर, मिर्च, गोभी, कद्दू, लौकी, नेनुआ, सेम, मटर, टमाटर, चुकंदर, मूली, गाजर और गोभी होती है, लेकिन अब यहां के किसान सब्जियों से मुंह मोड़ रहे हैं। सब्जियों का उचित दाम नहीं मिलने से यहां के किसानों की लागत नहीं निकल पा रही है। इस गाँव के किसान कुलदीप सिंह ने बताया '' सब्जियों की बंपर पैदावार के बाद दाम नहीं मिल रहे हैं। स्थिति खेती के लिए जो कर्ज लिया था वह भी चुका नहीं पा रहे हैं। ''
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उत्तर प्रदेश में 58.2 प्रतिशत किसान परिवार कर्ज में डूबे हैं। यूपी में 27,984 रुपए प्रति एक किसान परिवार पर कर्ज है। किसानों पर कर्ज के मामले में यूपी देश के टॉप 5 राज्यों में शामिल है। जिसको उत्तर प्रदेश में हर साल हजारों की संख्या में किसान खेती-किसानी छोड़कर दूसरा काम कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश देश का ऐसा राज्य है जहां पर इस साल गेहूं से लेकर आलू की रिकार्ड पैदावार हुई है। इसके अलावा सब्जियों के उत्पादन में यह पश्चिम बंगाल के बाद इसका दूसरा नंबर है, लेकिन इसके बाद यहां के किसान बदहाल हैं।
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कृषि नीति के विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं, “ घरेलू उत्पादकों को नजरअंदाज करके सरकार बाहर से खाद्य पदार्थ का आयात कर रही है। जिसका सीधा असर किसानों पर पड़ रह है और किसान अपनी उपज लेकर भटक रहे हैं।” उन्होंने कहा कि सरकार सीधे तौर पर खेती की आउटसोर्सिंग की तरफ बढ़ रही है। यह देश के कृषि के लिए घातक है।
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