जहां पिछले साल सबसे ज्यादा हुईं डेंगू से मौतें, वहां इस महिला ने उठाया जिंदगियों को बचाने का बीड़ा

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जहां पिछले साल सबसे ज्यादा हुईं डेंगू से मौतें, वहां इस महिला ने उठाया  जिंदगियों को बचाने का बीड़ामहंत देव्यागिरि के साथ ममता त्रिपाठी (फोटो साभार : गांव कनेक्शन)

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के क्षेत्र फैजुल्लागंज में पिछले साल डेंगू ने 65 लोगों की जिंदगी छीन ली। जब सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली तो अपने क्षेत्र को महामारी से बचाने के लिए फैजुल्लागंज निवासी ममता त्रिपाठी (28वर्ष) ने पुरजोर कोशिश की। वह बाल एवं महिला कल्याण संगठन के माध्यम से क्षेत्र की साफ-सफाई का काम कर रही हैं।

ममता ने बताया कि फैजुल्लागंज के चारों वार्डों में गंदगी जलभराव और साफ पानी की समस्या है। अबकी बार जुलाई माह से ही महिला एवं बाल संगठन द्वारा ‘डेंगू के खिलाफ जंग’ का महाअभियान शुरू किया है। इस अभियान के तहत ममता संगठन के लोगों के साथ मिलकर साफ सफाई अभियान के तहत मोहल्ले में जाकर संगठन के सदस्यों के साथ साफ-सफाई कर रही है। साथ ही एंटी लार्वा और ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव करा रही हैं।

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ममता ने बताया कि पिछले साल सितंबर से डेंगू का प्रकोप कुछ इस कदर बढ़ा की हर घंटे कोई न कोई बुरी खबर मिल रही थी। डेंगू ने बच्चे, बूढ़े, जवान किसी को नहीं बख्शा। हर किसी के मन में महामारी के लिए डर बैठ गया था। हरदिन होती मौत पर लोगों कर घर जाकर सांत्वना देने के अलावा मेरे पास कुछ नहीं था। डेंगू की चपेट में आए गरीब परिवार इलाज के लिए अनाज, जेवर, मकान तक बेचने को तैयार थे। कई महिलाएं मुझसे भी उधार लेने आईं लेकिन साधारण परिवार से होने के कारण मेरी स्थिति ऐसे नहीं थी कि मैं किसी की आर्थिक मदद कर पाती।

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अपनों को खो चुके भी जुड़ रहे मुहिम से

इस मुहिम से ममता के साथ डेंगू से अपनों को खो चुके परिवार व स्थानीय नागरिक भी मदद के लिए आगे आ रहे हैं। फैजुल्लागंज के ऋषभ जायसवाल कहते हैं कि पिछले वर्ष डेंगू के कारण पिताजी की मौत हो गई। ममता जी डेंगू के प्रति जागरुकता फैलाने और इसके प्रकोप को कम करने के लिए अच्छा काम कर रही हैं इसलिए मैं उनसे जुड़ा।

इसी तरह 32 वर्षीय गुड़िया ने बताया कि उनके पति ओम प्रकाश गुप्ता लोहार का काम करते थे। 18 सितंबर की रात काम से लौटे तो तेज बुखार आया। रात में दवाई भी ली लेकिन दूसरे दिन तबीयत ज्यादा खराब हो गई। जांच कराया तो पता चला की प्लेटलेट्स कम है। उसी रात में इलाज के अभाव में उनकी मौत हो गई। ओमप्रकाश अपने पीछे चार बेटियों को छोड़ गए। गुड़िया कहती हैं कि अब जैसे-तैसे जिंदगी काटने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। हां, ममता जी जो काम कर रही है उसमें सभी को भागीदारी निभानी चाहिए।

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ममता ने चंदा जमाकर जुटाए साधन

ममता ने बताया कि अभियान में स्थानीय लोगों ने मदद के साथ चंदा भी दिया अब तक 7300 रुपए जमा हुए है जिसमें 4800 रुपए की एंटी लार्वा छिड़काव वाली मशीन ,1200 रुपए की दवाई और 600 रुपए का एक कुंतल ब्लीचिंग पाउडर ख़रीदा है। 700 रुपए बच गए है अब हम लोग फॉगिंग मशीन के लिए पैसे इकट्ठे कर रहे हैं।

       

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