सरकार नहीं दिखा रही दम, चित होते जा रहे देशी अखाड़े

आजादी के बाद देश की लोकतान्त्रिक सरकार ने अखाड़ो की उपेक्षा की और नतीजतन देशी दांव -पेच सिखाने वाले देश के अधिकतर "अखाड़े" ख़त्म होनें कगार पर पहुच गए हैं।

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   25 May 2018 12:08 PM GMT

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सरकार नहीं दिखा रही दम, चित होते जा रहे देशी अखाड़े

लखनऊ।" रामायण सीरियल में सुग्रीव और बाली का मल्लयुद्ध, महाभारत या श्रीकृष्णा सीरियल में जरासंध और भीम के बीच की कुश्ती तो देखी होगी अगर नहीं देखी तो सुल्तान" मूवी में पहलवान का रोल कर रहे सिने अभिनेता सलमान खान के देशी दांव-पेंच जरुर देखे होंगे।लेकिन कभी देश के जिन अखाड़ो में कुश्ती ,मल्लयुद्ध के दांव ,पेंच सिखाये जाते थे उनकी रौनक अब ख़त्म होती जा रहीं हैं। सरकारी प्रोत्साहन ,और अखाड़ो के आधुनिक न हो पाने के कारण अब देशी अखाड़े खत्म होनें की कगार पर हैं।

नाग पंचमी और दशहरा में आज भी होती हैं दंगल

आज भी उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य हिस्सों में नागपंचमी और दशहरा पर्व पर गांवो और कस्बो में कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता हैं। लखनऊ जनपद के गाजीपुर गाँव के निवासी आलोक यादव बताते है कि हर साल उनके गाँव में दंगल प्रतियोगिता होती हैं जिनमे पहलवानों को बुलाया जाता हैं और गाँव के लड़के भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेते है,लेकिन गाँव में जो अखाड़ा था वो बंद हो गया हैं।

राजाओं के समय में अखाड़ो को मिलती थी राजकीय मदद

देश में अखाड़ो और मल्लयुद्ध की परम्परा समृद्ध और युगों पुरानी हैं भारतीय धर्मग्रंथो से आल्हा -उदल काल तक की काव्य रचनाओ में मल्लयुद्ध और उस समय के पहलवानों की वीरता के बारे में वर्णन मिलता हैं तो मुग़ल काल और देश में राजे -रजवाडो के शासन तक अखाड़ो को राजकीय संरक्षण मिलने का उल्लेख हैं।

देश के पटियाला ,मैसूर ,कोल्हापुर इंदौर ,अजमेर ,बडौदा ,भरतपुर ,जयपुर ,बनारस वर्धमान के अखाड़े उस दौर में देश दुनिया में मशहूर थे। उस दौर में पहलवानों को हर तरह की सुविधाएँ दी जाती थी और इन अखाड़ो के नामी पहलवान कुश्ती के दंगलो में भाग लिया करते थें और कुश्ती का प्रचार करते थे।

लखनऊ के खलीफा का नाम तो सुना होगा या भूल गयें

गाँव कनेक्शन ने जब अखाड़ो पर पड़ताल की तो पता चला की कभी उत्तर प्रदेश के कानपुर ,इलाहाबाद, लखनऊ ,बनारस गाजीपुर ,गोरखपुर के अखाड़े प्रसिद्ध हुआ करते थे,अखाड़े की तलाश में जब गाँव कनेक्शन प्रतिनिधि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के कैसरबाग पहुचें तो मालूम हुआ की कैसरबाग मंडी में एक अखाड़ा हैं। कैसरबाग चौराहे से दाई तरफ एक करीब 25 फीट की एक सुरंग पर करने के बाद कैसरबाग मंडी मिली और उसी मंडी में पूछने पर अखाड़े का पता चला।खटिक समाज का ये अखाड़ा 1940 के दशक का हैं,लेकिन इसमें अब कुश्ती सिर्फ नागपंचमी और दशहरा में होती है बाकि दिन ये बंद रहता हैं।

कई बार सरकार को पत्र लिखा , नेताओं से कहा किसी ने ध्यान नहीं दिया


पड़ताल के दौरान लखनऊ के अमीनाबाद स्थित रामखेलावन पहलवान के अखाड़े पहुचकर बतौर पत्रकार परिचय देने पर अखाड़े के उस्ताद (खलीफा )रामखेलावन से मुलाक़ात हुई ,खलीफा ने बताया की अखाड़ा छुटका पहलवान का हैं लेकिन लोग अब इसे मेरे नाम से कहते है । ये अखाड़ा अंग्रेजो के समय का हैं और इस अखाड़े से प्रदेश स्तर के कई पहलवान हुए हैं।उस्ताद ने बताया की इस समय ये अखाड़ा लखनऊ में एक नम्बर पर हैं ,लोगो की संख्या पहले की अपेक्षा काफी कम हुई हैं लेकिन आज भी यहाँ लोग सुबह शाम वर्जिश और अभ्यास करने आते हैं।

रामखेलावन आगे बताते हैं कि यहाँ पिछली कुश्ती के आयोजन में उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा,विधि एवं न्याय मंत्री ब्रजेश पाठक ,रमापति शास्त्री ,पंकज सिंह भी यहाँ पिछली कुश्ती में आये थे, उन्हें भी अखाड़ो के लिए सरकारी मदद करने का अनुरोध किया हैं इसके पहले भी सपा,बसपा सरकार में भी अखाड़ो के लिए सरकारी सरंक्षण और विकसित करने के लिए पत्र दिया लेकिन शासन के अधिकारियो ने जवाब दिया किया की शहरी क्षेत्र में अखाड़े की मद में किसी तरह की सरकारी मदद का प्रावधान नहीं हैं।

बुजुर्ग पहलवान रामखेलावन अब ज्यादा कहीं आते जाते नही लेकिन कुश्ती के क्षेत्र में कहा क्या हो रहा है इसकी जानकारी जरुर रखते हैं पचास से नब्बे के दशक के पहलवानों के नाम गिनाते हैं, दारा सिंह (रुस्तम -ए -हिन्द )पंजाब ,मारुती थाने महाराष्ट्र,चम्पम मुतिनाले महाराष्ट्र,मंगला राय बनारस, बरम देव पहलवान गोरखपुर ,रामनारायण पहलवान गोरखपुर, जनार्दन पहलवान गोरखपुर, पन्ना लाल पहलवान ,सुखदेव पहलवान आजम गढ , बाबा हरिशंकर पहलवान अयोध्या, महादेव पहलवान लखनऊ, जगन्नाथ पहलवान लखनऊ, का नाम बताते है देश के बड़े पहलवानों में शुमार "गामा पहलवान "के बारे में बताते हैं की गामा देश की शान थे लेकिन बंटवारे के समय "गामा "पाकिस्तान चले गये तब से हम उन्हें भारतीय पहलवान नहीं मानते।

असली दंगल ... अखाड़े में पुरुषों को पटखनी देती हैं ये लड़किया

सरकार मेडल लाने वाले पहलवानों का सम्मान करती है पर अखाड़ों का नहीं

रामखेलावन पहलवान के साथी 72 वर्षीय मुन्ना पहलवान बताते हैं, " आज भी देश में कुश्ती के प्रति लोगो की दीवानगी कम नहीं है, हमारे देश के पहलवानों ने कुश्ती की विश्व चैम्पियनशिप जीती हैं इस समय सतपाल पहलवान का दामाद सुशील कुमार बड़े पहलवानों में गिना जाता है,उसने देश को कई पदक भी दिलाएं हैं । लेकिन दिक्कत ये है की जब कोई पहलवान देश स्तर पर या विदेश में जाकर कुश्ती जीतता हैं तो सरकार इनाम की बौछार कर देती है ।लेकिन जिन अखाड़ों ने देश को नामी -गिरामी पहलवान दिए उनके लिए सरकार ने आज तक कोई योजना बनाए की जरुरत नहीं समझी ।

मुन्ना पहलवान आगे बताते है की विदेशो में आजकल रेसलिंग चल रही है वहा की सरकार ने अपने खेल को न केवल बचाया बल्कि उसे पुरे दुनिया में प्रचारित भी किया ,हमें भी अपनी विरासत को बचाना चाहिए।

मिटटी में पहलवानों को लड़ते देखा होगा , जानिये कैसे बनती हैं अखाड़े की माटी

आगे उस्ताद रामखेलावन बताते हैं की आमिर खान की दंगल मूवी मैंने देखी जिसमे आमिर अपनी बेटियों के लिए खुद अखाड़ा बनाते है लेकिन वास्तव में अखाड़े की मिटटी ऐसे नहीं बनती अखाड़े की मिटटी को पहले छाना जाता है और पानी का छिडकाव करके मिटटी को नर्म किया जाता है फिर मिटटी में मट्ठा ,नीम की पत्ती और हल्दी पाउडर मिक्स करके छिड़काव किया जाता हैं ताकि पहलवानों को किसी प्रकार का संक्रमण न हो।साथ ही रामखेलावन अखाड़े में मौजूद कसरत का लकड़ी के मुद्गर ,वजन ,डम्बल और गदा दिखाते हैं।

देशी कुश्ती के दांव आज भी बेजोड़ हैं ...

बुजुर्ग मुन्ना पहलवान बताते हैं की कुश्ती का स्वरूप बदल चूका है लेकिन अगर हमारे पुराने दांव पेच और लड़ने की कलां के साथ आधुनिकता का मिलाप हो जाये तो ये खेल के लिए बहुत अच्छा होता आज भी धोबी पछाड़ ,कमरढांक घिस्सा ,मुल्तानी दांव ,बगलीदीप,,पुट्ठी दांव ,गहेली दांव लुकान दांव आज भी बेजोड़ हैं।

अखिल भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह बताते हैं, " देश को सबसे ज्यादा अंतररास्ट्रीय पहलवान दिल्ली के "गुरु हनुमान" अखाड़े से मिले हैं। कुश्ती का खेल मिटटी के अखाड़ो से अब गद्दे पर आ गया हैं।अखाड़ो को संरक्षण मिलना चाहिए था ,मिटटी में होने वाली कुश्ती की परम्परा दुनिया से खत्म न हो इसके अंतररास्ट्रीय स्तर पर ट्रेडिशनल रेसलिंग के लिए डब्ल्यूडब्ल्यूई के संस्थापक जेस मैकमाहोंन ने इसे बचाने के बारे में अंतररास्ट्रीय कुश्ती महासंघ में बात रखी थी लेकिन अभी इस दिशा में कुछ शुरू नहीं हुआ हैं।






    

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