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बलिया, यूपी: “वो बेहोश हुईं और फिर कभी होश में नहीं आईं, डॉक्टरों ने कहा, वो मर गईं हैं”

पिछले हफ्ते, उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िला अस्पताल से कई लोगों के मरने की ख़बर आई है। इसकी जाँच चल रही है। जिले में भयंकर गर्मी पड़ रही है। गाँव कनेक्शन ने कुछ ऐसे परिवारों से मुलाकात की, जो अपने बीमार परिवार के सदस्यों को अस्पताल लेकर आए थे, लेकिन उन्हें बचा न सके। सरकार ने मौतों और लू के बीच किसी भी संबंध से इनकार किया है।
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बलिया (उत्तर प्रदेश)

सुनील सिंह पूरी तरह से टूट चुके हैं। उत्तर प्रदेश के बलिया के नफरेपुर गाँव के रहने वाले सुनील ने अपनी शादी के वक्त पत्नी से वादा किया था कि वह अपनी सास की देखभाल अपनी माँ की तरह करेंगे। उनकी पत्नी उषा सिंह का कोई भाई नहीं है, इसलिए उनकी माँ उन्हीं के साथ रहा करती थीं ।

लेकिन दर-दर भटकने के बावज़ूद, वह उसे बचा नहीं सके। सुनील की सास झाझो देवी राज्य की राजधानी लखनऊ से लगभग 270 किलोमीटर दूर बलिया के ज़िला अस्पताल में भर्ती थीं। पिछले हफ्ते 16 जून को उन्होंने अंतिम साँस ली। उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत का एक बड़ा हिस्सा भीषण गर्मी की चपेट में है। इसी ज़िले का एक अस्पताल पिछले सप्ताह हुई मौतों के कारण ख़बरों में बना हुआ है।

52 साल के सुनील के मुताबिक, उनकी सास को ऐसी कोई बीमारी नहीं थी। लक्षणों के सामने आने से पहले उन्हें 24 घंटे तक तेज़ बुखार, उल्टी और घबराहट थी।

सुनील ने गाँव कनेक्शन को बताया, “15 जून को हम उसे पहले रसड़ा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, जहाँ से उसे ज़िला अस्पताल रेफर कर दिया गया।”

उन्होंने कहा, “अस्पताल का आपातकालीन वार्ड भट्टी की तरह तप रहा था। वहाँ काफी ज़्यादा भीड़ थी। और मैं अपनी सास की हालत को लेकर परेशान था। डॉक्टरों ने मुझे बताया कि वह लू की चपेट में आ गई हैं।” सुनील ने थोड़ी देर रुकने के बाद कहा, “अगली सुबह, 16 जून को, हमसे कहा गया कि वह अब नहीं रही।”

झाझो देवी उन 68 लोगों में से हैं, जिनकी बलिया के ज़िला अस्पताल में तीन से चार दिनों के भीतर कथित तौर पर जान चली गई। परिवार इसके लिए गर्मी को ज़िम्मेदार मानता हैं। मृतक झाझो देवी की 35 साल की बेटी सीमा सिंह ने कहा। “ वह ठीक थी। उन्हें कोई बीमारी नहीं थी। वह केवल गठिया के कारण थोड़ा लंगड़ा कर चलती थी। हमने कभी नहीं सोचा था कि तपती गर्मी उन्हें हमसे दूर ले जाएगी।”

हालाँकि, अधिकारियों का कहना है कि बढ़ती मौतों के लिए लू की स्थिति को ज़िम्मेदार ठहराना गलत है। इन मौतों का सही कारण जानने के लिए पहले से ही जाँच चल रही है।

शुरुआत में, बलिया ज़िले के तत्कालीन मुख्य चिकित्सा अधीक्षक दिवाकर सिंह ने इन मौतों का कारण लू बताया था। लेकिन 17 जून को उन्हें पद से हटा दिया गया। उसके तुरंत बाद, जिला मजिस्ट्रेट ने उल्लेख किया कि मौतें क्षेत्र में गर्मी की वजह से नहीं बल्कि कई अन्य कारणों से हुई हैं।

जिला मजिस्ट्रेट रवींद्र कुमार ने 19 जून को प्रेस को बताया, “ऐसी कई रिपोर्टें हैं जिनमें उल्लेख किया गया है कि बलिया में लू की वजह से लोगों की मौत हुई है। इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। बिना ठोस सबूत के बयान जारी करने की वजह से ही मुख्य चिकित्सा अधीक्षक को उनके पद से हटा दिया गया है।”

जब गाँव कनेक्शन ने 21 जून को ज़िला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक एसके यादव से मुलाकात की, तो उन्होंने आश्वासन दिया, “अस्पताल को ठंडा बनाए रखने के लिए बिजली के सभी उपकरण… मसलन एसी, पंखे, डेजर्ट कूलर, काम कर रहे हैं। मरीजों को किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं है।”

लेकिन बलिया के टिकादेवरी गाँव में किराना दुकान के मालिक, 42 साल के जोगिंदर नाथ के लिए इन आश्वासनों का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने 16 जून को उसी दिन अपनी माँ को खो दिया था, जिस दिन सुनील सिंह ने अपनी सास को खोया था। नाथ की 60 साल की राजमुनि देवी की भी ज़िला अस्पताल बलिया में मौत हो गई थी।

नाथ ने गाँव कनेक्शन को बताया, “उसे बुखार था। मैं उसे रसड़ा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) ले गया, लेकिन उन्होंने उसे ज़िला अस्पताल रेफर कर दिया।” वह आगे कहते हैं, “मैंने उसे अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन अगली शाम लगभग 4 बजे वह बेहोश हो गई और फिर कभी होश में नहीं आई। डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया और मैं ये सुनकर सन्न रह गया था।”

नाथ का दुख यहीं खत्म नहीं होता है। उन्होंने शिकायत की कि उन्हें अपनी माँ के शव को घर तक लाने के लिए एम्बुलेंस पाने के लिए घंटों इंतज़ार करना पड़ा।

दो बच्चों के पिता ने भर्राई आवाज़ में कहा, “मुझे बताया गया कि सभी एम्बुलेंस व्यस्त हैं और मरीजों को लाने के लिए गई हैं। उन्होंने मुझे चार घंटे तक इंतज़ार करने के लिए कहा, लेकिन मैं अपनी माँ को वहाँ ऐसे पड़े रहने नहीं दे सकता था। मैंने एक निजी एम्बुलेंस किराए पर ली और उन्हें घर ले आया।” यह कहते ही नाथ रो पड़े। 

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