अस्थि कलश बैंक के माध्यम से गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का चला रहे हैं अभियान

Rajeev ShuklaRajeev Shukla   12 Jan 2018 12:01 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
अस्थि कलश बैंक के माध्यम से गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का चला रहे हैं अभियानमनोज सेंगर

कानपुर। जहां एक ओर लोग अंतिम संस्कार के बाद अस्थियों को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं, वहीं पर अस्थि कलश बैंक के माध्यम से मनोज सेंगर लोगों को अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने से रोक रहे हैं।

कानपुर के युग दधीचि देहदान संस्थान ने एक नई पहल की है संस्था द्वारा कानपुर नगर में एक अस्थि कलश बैंक की स्थापना की गई है, इसमें अंतिम संस्कार के बाद राख और अतिथियों का कलश जमा कर दिया जाता है और इसके अधिकतम सीमा छह महीने होती है। इस अवधि में परिजनों को फैसला लेना होता है कि क्या वह मरने वाले की अस्थियों का विसर्जन भूमि में करेंगे इसके पश्चात यदि वह इसके लिए नहीं राजी होते हैं तो उनको हरिद्वार या गंगासागर की तेज धारा में अस्थि विसर्जन के लिए प्रेरित कर दिया जाता है।

ये भी पढ़ें- गंगा को बचाने के लिए ओडियन और आबूनालों पर लगेंगे एसटीपी, एनजीटी का फैसला

साल 2014 में इस अस्थि कलश बैंक की स्थापना करने वाले मनोज सेंगर किसी पहचान के मोहताज नहीं है कानपुर नगर में देह दान संस्थान के माध्यम से उनकी अपनी एक पहचान है। इस संस्था के माध्यम से वह देह दान के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं और गाँव कनेक्शन द्वारा 2016 में सम्मानित भी किया जा चुके हैं।

देखिए वीडियो:

लगभग 10 साल पहले कानपुर के मेडिकल कॉलेज में शवों की किल्लत के कारण छात्रों को पढ़ाई मैं दिक्कत होती थी इस जानकारी के बाद मनोज सिंह सेंगर ने सबसे पहले अपना और अपनी पत्नी का देह दान किया। यहीं से युग दधीचि अभियान की प्रारंभ हुआ देह दान अभियान के उपरांत जब मनोज जी ने अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियों के उपयोग के बजाय विद्युत शवदाह का इस्तेमाल करने के लिए लोगों को समझाना शुरू किया। शुरुआत में अनेक लोगों ने परंपराओं और रीति रिवाजों को लेकर समझाना शुरु किया कि हिंदू धर्म की मान्यताओं के आधार पर मोक्ष परंपरागत तरीके से शवदाह करने के उपरांत ही प्राप्त होता है। आज भी मनोज इस लड़ाई को लड़ रहे हैं इसी कार्य में एक नई समस्या सामने आई जो कि दाह संस्कार के बाद अवशेष और राख का विसर्जन था लगभग तीन साल पहले उन्होंने अस्थि कलश बैंक की स्थापना कर दी।

ये भी पढ़ें- पीएम मोदी के क्षेत्र में गंगा सफाई तेज, ‘नमामि गंगे’ को सफल बनाने में जुटे मंत्री

मनोज सेंगर बताते हैं, "हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार दाह संस्कार की राख और अस्थियों को घर में रखना प्रतिबंधित होता है। इसलिए अस्थि कलश को किसी पीपल के पेड़ पर लटका दिया जाता है लेकिन वर्तमान समय में पेड़ों की भी संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती चली जा रही है और कानपुर के पॉश इलाके जैसे स्वरूप नगर आर्य नगर इत्यादि जगहों पर तो पेड़ आपको ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे ऐसे में लोगों के सामने एक बड़ी समस्या आती थी कि वह अपने मृत परिजनों का अस्थि कलश कहां रखें।"

ये भी पढ़ें- नमामि गंगे परियोजनाः गंदगी फैलाने वाले 150 उद्योगों पर लगेगा ताला

मनोज आगे बताते हैं, "इस अस्थिकलश बैंक के उपयोग करने की केवल एक ही शर्त है कि आपको अपने परिजनों की अस्थियों का भूमि विसर्जन करना होगा। ऐसे में यदि मृतक परिजनों की अस्थि के भूमि विसर्जन में भी कोई बुराई नहीं है क्योंकि आज के समय में गंगा नदी को प्रदूषित होने से बचाने के लिए भारत सरकार भी नमामि गंगे परियोजना चला रही है ऐसे में यह पहल नदी को प्रदूषित होने से रोकने में कारगर साबित होगी।

लगभग तीन वर्ष पहले खोले गए इस अस्थि कलश बैंक का उपयोग अब तक 3000 से ज्यादा लोग कर चुके हैं मनोज जी का अगला लक्ष्य उत्तर प्रदेश के 10 जिलों में इस अस्थि कलश बैंक की स्थापना का है।

मनोज के इस मिशन में उनकी सहयोगी उनकी पत्नी माधवी सिंगर हैं माधवी बताती हैं, "कई बार ऐसा भी होता है कि लोग छह महीने की अवधि पूर्ण हो जाने के बाद भी अपने परिजनों का अस्थि कलश लेने नहीं आते हैं तब हम अपनी जेब खर्च से ऐसी अस्थियों का पूरे विधि विधान से करवा देते हैं।"

कानपुर मे अनेक समस्याओं का सामना करने के उपरांत अब इस मिशन के लिए कानपुर का संत समाज और गंगाप्रेमी भी उनका साथ दे रहे हैं। कानपुर नगर के बाद अब इस मिशन को गंगा के किनारे के शहरों फर्रुखाबाद कन्नौज फतेहपुर इलाहाबाद वाराणसी इत्यादि में स्थापित किया जाएगा इसके अलावा गोमती नदी के संरक्षण के लिए लखनऊ में और यमुना नदी के संरक्षण के लिए इटावा में भी इस बैंक की स्थापना की जाएगी।

      

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.