दूसरे राज्यों से अच्छी नस्ल के पशुओं की खरीद यूपी पशुपालकों को पड़ रही महंगी 

Diti BajpaiDiti Bajpai   4 May 2017 2:01 PM GMT

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दूसरे राज्यों से अच्छी नस्ल के पशुओं की खरीद यूपी पशुपालकों को पड़ रही महंगी यूपी में बढ़ रही गाय-भैंसों की मांग।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। प्रदेश के पशुपालक अच्छे दूध उत्पादन के लिए साहीवाल, मुर्रा, एचएफ और जर्सी नस्ल के पशुओं में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इससे प्रदेश में गाय-भैंसों की मांग तेजी से बढ़ रही है, लेकिन दूसरे राज्यों से अच्छी नस्ल के पशुओं को लाना पशुपालकों के लिए महंगा पड़ रहा है।

बाराबंकी जिले के रूपेश सिंह यादव (58 वर्षीय) ने तीन साल पहले कामधेनु योजना में डेयरी की शुरुआत की थी। रूपेश बताते हैं, “हर दिन बाहर से पशु लाना बहुत महंगा हो गया है। तीन साल पहले जो एचएफ गाय 80 हज़ार रुपए की लाए थे, अब वह डेढ़ लाख में मिल रही है।” रुपेश ने आगे बताया कि दूसरे राज्यों से मवेशी लाने पर कई बार चेकिंग होती है। घर तक पशु लाने में बहुत पैसा खर्च हो जाता है।

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नेशनल डेयरी डेवलेपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) के मुताबिक देश में 39 गायों और 13 भैंसों की देसी प्रजातियां मौजूद हैं। भारत अभी सालाना 16 करोड़ (साल 2015-16) लीटर दूध का उत्पादन कर रहा है। इसमें 51 प्रतिशत उत्पादन भैंसों से, 20 प्रतिशत देसी प्रजाति की गायों से और 25 प्रतिशत विदेशी प्रजाति की गायों से आता है। लखनऊ के पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ वी के सिंह बताते हैं, “दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा जो योजनाएं शुरू की गईं हैं उनमें जो भी पशु आने हैं वो अलग राज्यों से ही आने हैं तो जितने पशुपालक योजना लेते हैं वो ज्यादातर पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से गाय-भैंस खरीदते हैं। मांग बढ़ रही तो पशुओं की कीमत भी बढ़ेगी। साथ ही उनको लाने में भी पशुपालकों का खर्चा होता है।”

एनडीडीबी के ‘राष्ट्रीय डेयरी प्लान’ में बताए गए अनुमानों के हिसाब से साल 2020 तक देश को 20 करोड़ लीटर दूध की पड़ सकती है। देश का 25 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन संकर प्रजातियों (विदेशी) के पशुओं से होता है, जर्सी और हॉलेस्टाइन फीशियन जैसी गायों से। पंजाब के जालंधर जिले में पशुओं की खरीद-बेच करने वाले व्यापारी रचपाल डिंडसा बताते हैं, “अच्छी नस्ल के पशुओं को खरीदने के लिए हमारे पास कई राज्यों से लोग आते हैं। ऐसा नहीं है कि उनको मंहगे दामों पर बेचते हैं। दूध की क्षमता के मुताबिक हम रेट लगाते हैं। ज्यादातर व्यापारी प्राईवेट हैं तो अपने मुनाफे के हिसाब से रेट लगाते है।”

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