सहारनपुर का दर्द: ‘जिनको पैदा होते देखा, उन्होंने ही घर जला दिया’

Basant KumarBasant Kumar   13 May 2017 4:30 PM GMT

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सहारनपुर का दर्द: ‘जिनको पैदा होते देखा, उन्होंने ही घर जला दिया’जिनको हमने अपने सामने पैदा होते देखा था, वो हमारे घरों में आग लगा रहे थे।

लखनऊ। ‘‘आज तक जिनके खेतों में मजदूरी कर हमने ज़िन्दगी जी और अपना घर बनाया, उन्हीं लोगों ने हमारे घरों में आग लगा दी। जिनको हमने अपने सामने पैदा होते देखा था, वो हमारे घरों में आग लगा रहे थे।“ यह कहते हुए 60 वर्षीय शकुंतला रोने लगती हैं।

सहारनपुर जिले से 30 किमी दूर दक्षिण में स्थित शब्बीरपुर गाँव में पांच मई को एक शोभायात्रा को निकालने के दौरान उपजे विवाद के बाद दलित बस्ती में हुई आगजनी की आंच में कई जिले तप रहे हैं। वहीं पश्चिम यूपी में चौकसी रखने के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही सोशल मीडिया पर भी कड़ी नजर रखी जा रही है।

सहारनपुर जिले के शब्बीरपुर गाँव में इससे पहले कभी जातीय संघर्ष नहीं हुआ था। सौदर (35 वर्ष) उस दिन की घटना को याद करते हुए बताते हैं, “वो लोग पूरी तैयारी में थे। हम लोग तो गेहूं काटने और खेती के कामों में व्यस्त थे। प्रधान ने रैली निकलने से पहले ही प्रशासन को इसको सूचना दी थी कि कुछ गलत होने वाला है।”

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सौदर आगे बताते हैं, “पुलिस आ भी गयी, लेकिन दबंग समुदाय के युवाओं के दबाव में आकर पुलिस उन्हें दलितों की बस्ती से ले गई। एक बार जाने के बाद युवक फिर हमारी बस्ती में आए और नारेबाजी कर रहे थे। जब हमारे समाज के कुछ युवकों ने विरोध किया तो दोनों में बहस होने लगी। दोनों तरफ से ईंटें चलीं।”

हिंसा में गाड़ियाँ तोड़ दी गई.

जिस वक्त ये घटना घटी उस वक्त शब्बीरपुर से पांच किमी दूर शिमलाना में महाराणा प्रताप जयंती का कार्यक्रम था, जहां देश भर से राजपूत समुदाय के लोग आए थे। इसके बाद हजारों की संख्या में युवक हाथ में तलवार और पेट्रोल बम लेकर पहुंचे और चुन-चुन के दलितों के घरों में आग लगाने लगे।

राजपूत समुदाय से संबंध रखने वाले मुकेश कुमार (40 वर्ष ) ने बताया, “उस रोज जो घटना हुई उसमें गाँव का कोई भी राजपूत शामिल नहीं था। हम लोग महराणा प्रताप की रैली निकाल रहे थे, तब दलितों के लड़कों ने पत्थर फेंकना शुरू कर दिया। तब उसी में से किसी ने वहां फोन करके सूचना दे दिया, जहां हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे। बाहरी लोगों ने ही यहां आकर हंगामा किया। वहीं, मुकेश की बात को गलत बताते हुए दलित समुदाय के छत्रपाल ने कहा, “अगर बाहरी लोग थे तो उन्हें दलितों के घरों के बीच में आने वाले अन्य समुदाय के लोगों के घरों के बारे में कैसे जानकारी थी। दबंग समुदाय की पहले से तैयारी थी हमें मारने की। अचानक से पेट्रोल बम और तलवार नहीं आते है।”

उपद्रवियों ने बछड़े तक को नहीं छोड़ा

घटना के बाद से गाँव में तनाव बरकरार है। दोनों पक्ष से लोगों को गिरफ्तार किया गया है और अभी भी पुलिस दोषियों को गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है। डर के कारण दलित समुदाय के ज्यादातर बच्चे गाँव से फरार हैं। घरों में महिलाएं और बुजुर्ग बचे हुए है। गाँव में अभी भी रात-दिन पुलिस सुरक्षा में खड़ी रहती है।

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मूर्ति लगाने से शुरू हुआ विवाद

राजपूत बिरादरी से संबंध रखने वाले सचिन कुमार (25 वर्ष) बताते हैं, “गाँव में सभी लोग मिलकर साथ रहते थे। विवाद की शुरुआत गाँव में अम्बेडकर की मूर्ति लगाने की कोशिश से शुरू हुई। ग्राम प्रधान बिना सरकारी इजाजत मूर्ति लगाना चाहते थे। कुछ राजपूत समुदाय के लड़कों ने इसका विरोध किया। वे पुलिस के पास गए। पुलिस ने तत्काल प्रभाव से निर्माण कार्य रुकवा दिया, लेकिन एक बार दोबारा दलित सुमदाय के लोगों ने बाबा साहब की मूर्ति लगाने की कोशिश की तो राजपूत समुदाय के लड़कों ने रोक दिया। इस कारण से दलित समुदाय के लोग नाराज़ थे और महाराणा प्रताप की शोभायात्रा नहीं निकलने देना चाह रहे थे। फिर यह सारा विवाद हुआ।”

25 से ज्यादा घरों में आग लगा दिया गया.

‘बहू मायके चली गई, बेटे का पता नहीं’

जले हुए घर में खाट पर बैठी ओमवती घटना वाले दिन का जिक्र करते हुए फफक-फफक कर रोने लगती हैं। ओमवती बताती हैं कि घटना से एक दिन पहले ही मेरे बेटे की शादी हुई थी। शाम में बहू आई थी और दूसरे दिन यह घटना हो गयी। मेरी बहू के गहने छीन लिए और उसके कपड़े जला दिए गए। शादी के दूसरे दिन ही बहू मायके चली गयी और पुलिस के डर से मेरा बेटा फरार है। मेरा बेटा कहाँ गया हमें पता ही नहीं है।

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