सोनभद्र/बाराबंकी/उन्नाव/सीतापुर। धान की फसल में इन दिनों यूरिया के छिड़काव का समय है, लेकिन किसानों को यूरिया आसानी से नहीं मिल पा रही है। सहकारी समितियों पर किसान चक्कर लगा रहे हैं तो मांग का फायदा उठाकर निजी दुकानकार 40 से 100 रुपए महंगी यूरिया बेच रहे हैं। वहीं सरकार का कहना है कि प्रदेश में पर्याप्त यूरिया उपलब्ध है। कालाबाजारी करने वाले दुकानदारों पर कार्रवाई होगी, जरूरत पड़ी तो लाइसेंस निरस्त किया जाएगा।
उत्तर प्रदेश में 45 किलो की यूरिया की एक बोरी की सरकारी कीमत 266.50 पैसे है, लेकिन कई जिलों में किसान 40-100 रुपए प्रति बोरी ज्यादा में खरीदने को मजबूर हैं। कई जिलों के किसानों का आरोप है कि महंगी यूरिया के साथ उन्हें प्रति बोरी एक किलो जिंक लेना भी उनकी मजबूरी है।
यूपी के सोनभद्र जिले में दुद्धी तहसील की किसान सहकारी समिति (दुद्धी दीपांकर बहुउद्देशीय सहकारी समिति) के सामने सैकड़ों किसान कई घंटे से लाइन में लगे हैं, ये किसान यूरिया खरीदने आए थे लेकिन इन्हें मायूसी हाथ लगी है।
इसी लाइन में खड़ी झारूकला गांव की किसान राजपति (35 वर्ष) कहती हैं, “हम एक हफ्ता से लिंपस (समिति) पर डेली चक्कर लगा रहे हैं लेकिन ये कहते हैं आज नहीं कल मिलेगा, परसों मिलेगा। कृषि का आधा समय निकला गया है। खाद गोदाम में रखी हैं लेकिन बांट नहीं रहे।”
वो आगे कहती हैं, “जब जनता को खाली हाथ भगा दिया जाता है तो खाद (यूरिया) जाती कहां है, इसका मतलब ब्लैक (कालाबाजारी) हो रही है।”
सोनभद्र से करीब 400 किलोमीटर दूर बाराबंकी जिले में टांडि गांव के किसान अनिल वर्मा (40वर्ष) के पास 4 एकड़ धान है, उन्हें कम से कम 3-4 बोरी यूरिया की जरूरत थी लेकिन मिली सिर्फ एक बोरी है। गांव कनेक्शन से उनकी मुलाकात खेत में हुई जब वो यूरिया का छिड़काव कर रहे थे।
वो कहते हैं, “यूरिया इस बार बार मिल नहीं रही है। एक बोरी यूरिया मुश्किल से 400 में मिली है, जिसका रेट 266.50 पैसे है। चार एकड़ में एक बोरी से क्या होगा। डीजल और पेट्रोल और दूसरी चीजों के रेट देखकर लगता है कि सरकार किसानों को खत्म कर देना चाहती है।”
वो आगे बताते हैं, “सरकारी केंद्रों में यूरिया नहीं है। निजी दुकानदार 400 रुपए की बोरी के साथ 100 रुपए की जिंक देते हैं, यानि एक बोरी पर 500 रुपए का खर्चा है। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।”
धान भारत में खरीफ सीजन की मुख्य फसल है। देश में किसानों की स्थिति ही नहीं खाद्य सुरक्षा की बड़ी जिम्मेदारी भी धान पर है। गेहूं भारत में लगभग 10 राज्यों में होता है लेकिन धान कुछ राज्यों को छोड़कर लगभग हर राज्य में पैदा किया जाता है।
यूपी में 58-59 लाख हेक्टेयर में होती है धान की खेती
यूपी की बात करें तो कृषि विभाग के मुताबिक प्रदेश में औसतन 58-59 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। कृषि विभाग उत्तर प्रदेश के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019-20 में प्रदेश में 59.41 लाख हेक्टेयर धान की खेती हुई थी और 171.36 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ था। जबकि प्रति हेक्टेयर (2.50 एकड़) उत्पादकता 28.04 कुंटल थी।
देश के प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में शामिल उत्तर प्रदेश में इन दिनों धान की फसल लहलहा रही है, लेकिन अच्छी फसल के लिए किसानों को यूरिया की जरूरत है। प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने 3 अगस्त को लखनऊ में कृषि विभाग के अधिकारियों, उर्वरक निर्माता कंपनियों के साथ समीक्षा बैठक के बाद कहा कि प्रदेश में यूरिया, डीएपी, एनपीके पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, कहीं भी खाद की कोई कमी नहीं है। उन्होंने आगे कहा था अगर कोई यूरिया वितरक किसान को यूरिया के साथ कोई अतिरिक्त उत्पाद (जैसे जिंक) बेचता है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी, जरुरत पड़ने पर लाइसेंस भी निरस्त किया जाएगा।
इस बैठक में कृषि मंत्री ने बताया था कि प्रदेश में अगस्त माह के निर्धारित 33.50 लाख मीट्रिक टन यूरिया के सापेक्ष में अब तक 30.61 लाख मीट्रिक टन यूरिया उपलब्ध कराई जा चुकी है। कुल उपलब्ध यूरिया के सापेक्ष में खरीफ सीजन में अब तक 20.09 लाख मीट्रिक टन यूरिया का वितरण हो चुका है, 10.41 लाख मीट्रिक टन बाकी है।
लेकिन सरकार के पर्याप्त खाद के दावों और कार्रवाई के सख्त निर्देशों के बाजवूद किसान परेशान हैं।
पिछले साल से कम मिली यूरिया?
सोनभद्र में पिछले कई दिनों से सहकारी समितियों के बाहर किसान को रोज कतारें लग गई हैं। आदिवासी बाहुल्य इस इलाके में धान की फसल प्रमुख है। यूरिया के संकट पर जिले के सहायक निबंध, सहकारी समिति त्रिभुवन सिंह गांव कनेक्शन को बताते हैं, “पिछले साल से बहुत कम यूरिया मिली है। पिछले साल सोनभद्र को 9 हजार मीट्रिक टन यूरिया मिली थी, इस वर्ष अब तक 437 मीट्रिक टन यूरिया आई है। किसानों की नाराजगी जायज है।”
वहीं सीतापुर जिले के ए.आर. नवीन चन्द्र शुक्ल के मुताबिक सीतापुर जिले में अभी उर्वरक की दिक़्क़त नहीं है। जिले में 82 समितियां RKVB योजना, 21 साधन सहकारी समितियां बैंक सीसीएल से संचालित है। इसके अलावा जिले में पीसीसी, डीसीडीएफ, केंद्रीय उपभोक्ता, इफको, कृभको, आईएफडीसीके द्वारा संचालित की जा रही है। वो बताते हैं, “एक अप्रैल से 12 अगस्त तक जनपद में 31 हजार मीट्रिक टन यूरिया, 5874 मीट्रिक टन डीएपी, 1671 मीट्रिक टन एनपीके उपलब्ध कराई गई है। वहीं किसानों की अभी तक खाद की समस्या को लेकर कोई शिकायत नहीं मिली है। खाद पर्याप्त मात्रा में है।”
धान की फसल में ग्रोथ के लिए संतुलित यूरिया जरुरी- कृषि वैज्ञानिक
उन्नाव जिले में कृषि विज्ञान केंद्र धौरा में वैज्ञानिक डॉ धीरज तिवारी गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “इस समय धान की फसल 30-50 दिन की हो चुकी है, यह समय पौधे के विकास और बियास का होता है। धान के लिए नाइट्रोजन की विशेष आवश्यकता होती है, जो पौधे को यूरिया से उपलब्ध होती है, इसलिए किसानों को फसल की आवश्यकता के अनुरूप यूरिया का छिड़काव करना चाहिए।”
उन्नाव जिले में इस बार करीब 99 हजार हेक्टेयर में धान की खेती अनुमानित है। यहां भी कई किसान खाद महंगी खरीद रहे हैं लेकिन कृषि विभाग के मुताबिक खाद की कोई कमी नहीं है। उन्नाव के जिला कृषि अधिकारी के. के. मिश्रा गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “खाद की कोई कमी नहीं है खरीफ की फसल के लिए अब तक 24 हजार मीट्रिक टन खाद की आपूर्ति की जा चुकी है, किसानों को पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध रहे इसके लिए टीम बनाकर समितियों और दुकान का निरीक्षण कराया जा रहा है।”
लेकिन किसान अलग कहानी बताते हैं। उन्नाव जिले में सदर तहसील क्षेत्र के बेहटा नथई सिंह निवासी शिवराम (65 वर्ष) ने डेढ़ हेक्टेयर धान की रोपाई की है। वो निजी दुकान से 300 रुपए बोरी की खरीद कर लाएं है। शिवराम कहते हैं, “जानते हैं कि महंगी दे रहे हैं लेकिन क्या करें? किसान के पास इतना समय कहाँ होता है कि वह इंतजार करे। समितियों में पता किया तो कभी बताते हैं कि आज नहीं है तो कभी बताते हैं दो दिन बाद आना, हमको खाद की जरूरत आज है। दो-तीन दिन का इंतजार करेंगे तो धान खराब हो जाएगा।”
यूपी से लेकर एमपी-बिहार तक किसान रहते हैं परेशान
ये पहली बार नहीं है जब देश में यूरिया किल्लत की बात हो रही है। गेहूं औऱ धान के सीजन में यूपी,एमपी से लेकर पंजाब और बिहार तक किसान यूरिया को लेकर परेशान होते रहे हैं। जिसकी एक बड़ी वजह कृषि के लिए आवंटित यूरिया का औद्योगिक इस्तेमाल और कालाबाजारी थी, जिसके बचने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने नीम कोटेड यूरिया (यूरिया पर नीम की परत) लॉन्च की थी। फायदा तो हुआ लेकिन किसानों को इससे निजात नहीं मिल सकी है। साल 2020 में यूपी में ही योगी आदित्यनाथ सरकार ने यूरिया की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ एनएसए लगाने का अल्टीमेटम दिया था।
यूरिया को लेकर देश को इस वर्ष नैनो तरल यूरिया के रूप में सौगात भी मिली है। 500 मिलीलीटर की एक नैनो तरल यूरिया वही काम करती है जो 45 किलो की एक बोरी, इसकी कीमत 240 रुपए है।
लखीमपुर में वसलीपुर के किसान बलजिंदर कसली (30 वर्ष) गांव कनेक्शन को बताते हैं, “फसल की शुरुआत में यूरिया की किल्लत थी लेकिन अभी हमारे इलाके में गन्ने में खपत नहीं होने से यूरिया है। दूसरी बात हम पहली बार बोतल (लिक्विड) यूरिया लाए थे, 10 बोतल 2400 की है, मिली थी, शुरु में लग रहा था पता नहीं काम करें या नहीं लेकिन फसल में अच्छा असर पड़ा है।”
सोनभद्र से भीम कुमार, उन्नाव से सुमित यादव, बाराबंकी से वीरेंद्र सिंह की रिपोर्ट। (इनपुट मोहित शुक्ला)
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