कर्जमाफी योजना का असल मुद्दा : जिन्होंने समय पर चुकाया कर्ज, उन्हीं ने उठाया नुकसान

Arvind ShuklaArvind Shukla   16 Sep 2017 2:15 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
कर्जमाफी योजना का असल मुद्दा : जिन्होंने समय पर चुकाया कर्ज, उन्हीं ने उठाया नुकसानकिसान ने कहा, इस योजना में बहुत खामियां हैं, फायदा उनको हुआ जिन्होंने कर्ज नहीं चुकाया

लखनऊ। प्रदेश सरकार की कर्जमाफी योजना के तहत 9 पैसे, 2 रुपए से लेकर एक लाख तक कर्ज़ माफ हुआ, 9 पैसे और कुछ रुपयों की कर्जमाफी पर बहस हो रही है। लेकिन मुद्दा यह है कि इसमें उन किसानों का नुकसान हुआ जो समय पर कर्ज चुका रहे थे, और जो डिफाल्टर थे उन्हें लाभ।

पैसों और रुपयों में हुई कर्ज़माफी कृषि अधिकारियों, बैंक कर्मचारी पूरी तरह नियम आधारित और पारदर्शी बता रहे हैं। गाँव कनेक्शन इस मुद्दे की लगातार पड़ताल कर रहा है। कन्नौज में छिबरामऊ तहसील के सिकंदरपुर निवासी राजेश शुक्ला (40वर्ष) ने कुछ दिन पहले कर्जमाफी का सर्टिफिकेट मिलने पर आरोप लगाया था कि इस योजना में 315 रुपए माफ हुए हैं, जबकि मौजूदा दौर में उनपर 62 हजार का कर्ज था। राजेश ने अधिकारियों के सामने मुद्दा उठाया और खुद बैंक गए। जहां कुछ और तस्वीर सामने आई। शुक्रवार को उन्होंने बताया, "मेरे बैंक ने मुझे बताया, पहले मेरे ऊपर 84 हजार का कर्ज था, जो मैंने चुका दिया था। उसी में 315 बाकी रह गए थे, जो माफ हुए। जबकि मैंने जो 62 हजार का बाद में कर्ज लिया, वो दायरे से बाहर है।'

ये भी पढ़ें- कर्ज़माफी में दो रुपये के प्रमाण पत्र का गणित समझिए

जिस आर्यावर्त ग्रामीण बैंक, सिकंदरपुर में राकेश का किसान क्रेडिट कार्ड का खाता है, वहां के शाखा प्रबंधक अविनाश सिंह ने 'गाँव कनेक्शन' को बताया, "क्योंकि राकेश शुक्ला ने 31 मार्च के बाद अपने खाते में जमा-निकासी की थी, उन पर अभी कर्ज़ है, लेकिन वो सरकार द्वारा तय नियमावली के बाहर का है, जो माफ नहीं किया गया।"

सरकार की लिमिट में नहीं आने के कारण मेरा पूरा कर्ज़ माफ नहीं हुआ, लेकिन मेरी समस्या ये है कि जब बैंक- लेखपाल को पता था कि मेरे इतने कम पैसे माफ होने हैं तो फिर जांच और तहसील के चक्कर क्यूं लगवाए? सरकार को चाहिए था जिन किसानों के एक हजार से कम रुपए हैं उन्हें सर्टिफिकेट के चक्कर से बाहर रखती।
राजेश शुक्ला, कन्नौज, किसान

एक जागरुक किसान राजेश बताते हैं, "मैं समझ गया हूं कि सरकार की लिमिट में नहीं आने के कारण मेरा पूरा कर्ज़ माफ नहीं हुआ, लेकिन मेरी समस्या ये है कि जब बैंक और लेखपाल को पता था कि मेरे इतने कम पैसे माफ होने हैं तो फिर तीन बार की जांच और इतने बार कागजात (खसरा-खतौनी) के लिए तहसील के चक्कर क्यूं लगवाए? सरकार को चाहिए था जिन किसानों के एक हजार से कम रुपए हैं उन्हें सर्टिफिकेट के चक्कर से बाहर रखती।”

उत्तर प्रदेश सरकार के इस चुनावी वादे और उसके अमल पर सवाल खड़ा करते हुए राजेश शुक्ला कहते हैं, “इस योजना में बहुत खामियां हैं, फायदा उनको हुआ जिन्होंने कर्ज नहीं चुकाया, लेकिन हमारे जैसे लोग जो पेट काट-काटकर बैंकों का कर्ज़ चुकाते रहे, उन्हें कुछ नहीं मिला," आगे कहते हैं, "इस तरह कर्ज़ न चुकाने वाले किसानों का मनोबल बढ़ेगा। सरकार को चाहिए था हर किसान (लघु, सीमांत या फिर ज्यादा जोत वाले) का 50-50 हजार रुपए ही माफ कर देती।"

इस तरह कर्ज़ न चुकाने वाले किसानों का मनोबल बढ़ेगा। सरकार को चाहिए था हर किसान (लघु, सीमांत या फिर ज्यादा जोत वाले) का 50-50 हजार रुपए ही माफ कर देती, लेकिन करती जरुर।
राजेश शुक्ला, किसान, जिनके 315 रुपए माफ हुए

कम पैसे का सर्टिफिकेट पाने वाले ज्यादातर वो किसान हैं जो कर्ज़ समय-समय पर चुकाते रहे हैं। कर्जमाफी में 9 पैसे से लेकर 500-1000 रुपए तक के सर्टिफिकेट दिए गए, इसकी सबसे पहले ख़बर बिजनौर जिले से आई, वहीं के अख़बार की कटिंग सोशल मीडिया वायरल हुई।

ये भी पढ़ें : सरकारी रिपोर्ट : किसान की आमदनी 4923 , खर्चा 6230 रुपए

इस बारे में बिजनौर के जिला कृषि अधिकारी अवधेष मिश्रा बताते हैं, "हमने कर्ज 31 मार्च, 2016 से पहले और 31 मार्च, 2017 तक जो अवशेष था उसे एक लाख रुपए तक माफ किया। पूरा काम बैंकों ने किया जो लिस्ट भेजी हमने उसकी पड़ताल की। खसरा खतौनी मिलाया और आगे भेज दिया," आगे बताते हैं, "कुछ जगह कम पैसे इसलिए भी हुए क्योंकि कुछ बैंक साल में दो बार ब्याज लगाती हैं, अगर किसान ने मूल धन तय तारीख पर चुका दिया, लेकिन ब्याज रह गया तो वो कर्जमाफी के दायरे में आ गया।"

एक पैसे की धांधली नहीं हुई, जो लिस्ट है वो एकदम सही और नियम और शर्तों के मुताबिक है। मेरी नजर में ऐसा कोई केस सामने नहीं आया है जिस तय नियमों के तहत कर्ज हो उसके बावजूद उसका माफ न हुआ है। कोई स्पेशल केस है तो जो बैंक अपना काम करेगा।
अजय कुमार, मैंनेजर, लीड बैंक, बिजनौर, जहां से सबसे पहले पैसों में कर्जमाफी की ख़बर आई

बिजनौर में लीड बैंक के मुखिया अजय कुमार ने कहा, "एक पैसे की धांधली नहीं हुई, जो लिस्ट है वो एकदम सही और नियम और शर्तों के मुताबिक है। मेरी नजर में ऐसा कोई केस सामने नहीं आया है जिस तय नियमों के तहत कर्ज हो उसके बावजूद उसका माफ न हुआ है। कोई स्पेशल केस है तो जो बैंक अपना काम करेगा।"

जिन किसानों का 100-1000 रुपए भी माफ हुए हैं, उन्हें लेखपाल से लेकर तहसील तक कई चक्कर लगाने पड़े। फिर अपना पैसा लगाकर सर्टिफिकेट लेने के लिए ब्लाक तक जाना पड़ा कन्नौज जिले के राजेश शुक्ला कहते हैं, “सरकार किसानों की संख्या बढ़ाना चाहती है, लेकिन एक किसान की तरह सोचिए। मेरा नाम तो कर्ज माफी का लाभ लेने वाले किसानों की सूची में चढ़ गया, आगे किसी योजना का लाभ हमें नहीं मिला था।”

किसान।

ये भी पढ़ें : किसान का दर्द : “आमदनी छोड़िए, लागत निकालना मुश्किल”

ज्यादातर किसान इसी बात को लेकर नाराज हैं कि सिर्फ ज्यादा जमीन होने या लगातार कर्ज चुकाने के बावजूद उन्हें लाभ क्यों नहीं दिया गया, जबकि वो घाटे में हैं। खुद कई अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कर्ज माफी सबके लिए या फिर कुछ हद तक सके लिए होनी चाहिए थी।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ही उत्तर प्रदेश में 2.30 करोड़ किसान हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश फसल ऋण मोचन योजना के अंर्तगत सिर्फ 86 लाख किसानों को फायदा होगा।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ही उत्तर प्रदेश में 2.30 करोड़ किसान हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश फसल ऋण मोचन योजना के अंर्तगत सिर्फ 86 लाख किसानों को फायदा होगा। क्योंकि यूपी सरकार ने लघु और सीमांत किसानों के साथ उन्हें ही फायदा दिया है जो 31 मार्च 2016 से पहले कर्ज लिए हों, इन किसानों का भी सिर्फ एक लाख रुपए तक लोन माफ हुआ है।

देश के जाने में कृषि नीति विश्षेलक देविंदर शर्मा अपने लेख में लिखते हैं, यूपी सरकार 86 लाख किसान को फायदा दे रही है तो बाकी किसानों का क्या होगा ? वो आगे लिखते हैं कि मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है, कि खेती-किसानी के कर्जे माफ़ करने की मांग करने की बजाय ...थोड़े रचनात्मक या कल्पनाशील बना जाए।

ये भी पढ़ें : भारत के किसानों को भी अमेरिका और यूरोप की तर्ज़ पर एक फिक्स आमदनी की गारंटी दी जाए

एनएसएस के आंकड़े के अनुसार देश में सभी परिचालन वाले लगभग 85% खेतों का आकार दो हेक्टेयर से छोटा है। 8 जून को जारी इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार एक तिहाई छोटे और सीमांत किसान संस्थागत ऋण तक नहीं पहुंच पाते। ये भी बड़ा कारण कि किसानों को ऋण छूट का लाभ नहीं मिल पाता। मेरठ के मवाना ब्लॉक के गाँव अटौड़ा निवासी किसान हरिराम (43 वर्ष) बताते हैं, “ चुनाव से पहले कर्ज माफ करने में कोई शर्त नहीं रखी गई थी,लेकिन सरकार में आते ही नियम और शर्तों के आधार पर कर्ज माफी की घोषणा की।

गांव कनेक्शन में प्रकाशित ख़बर

ये भी पढ़ें : संसद में पूछा गया, सफाई कर्मचारियों की सैलरी किसान की आमदनी से ज्यादा क्यों, सरकार ने दिया ये जवाब

ये भी पढ़ें- यूपी के किसान बोले- ‘कर्जमाफी हो गई अब हमारी आमदनी भी बढ़वाइए सरकार’

ये भी पढ़ें-‘प्रिय मीडिया, किसान को ऐसे चुटकुला मत बनाइए’

                  

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.