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स्कूलों में बच्चों पर जानलेवा हमले का जिम्मेदार कौन ?

UP Crime News

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी गुड़गांव के रेयान इंटरनेशनल स्कूल जैसा खौफनाक मामला सामने आया है, जहां एक छात्र अधमरी हालत में बरामद हुआ है। खून से लथपथ छात्र को फौरन अस्पताल ले जाया गया। जहां उसकी हालत गंभीर बनी हुई है।

बच्चों के साथ होने वाली इस तरह की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। घरों व स्कूलों में जब इस तरह की घटनाएं होती हैं तो सवाल खड़ा हो जाता है कि बच्चों के लिए सुरक्षित जगह कहां है।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो 2016 के रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों के खिलाफ अपराध की संख्या वर्ष 2016 में एक लाख 6 हजार 958 दर्ज हुई वहीं 2015 में ये संख्या 94,172 थीं। यानि एक साल में इन अपराधों में 13.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई।

प्रद्युमन केस के बाद राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग ने गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल को फटकार लगात हुए कहा था कि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना स्कूल की जिम्मेदारी है। बाल आयोग ने शिक्षा के अधिकार आरटीई (RTE) और (IPS) के तहत स्कूलों के लिए एडवाइजरी भी तैयार की थी जिसे जारी किया जाना है। इसके अनुसार,सभी स्कूलों की, स्टाफ की, स्कूलों को मिलने वाले फंड, प्रबंधन आदि की जानकारी बाल आयोग के पास होगी।

दुनिया भर में बच्चों के लिए घर के बाद स्कूल सबसे सुरक्षित जगह मानी जाती है इन घटनाओं के बाद अभिवावकों को अपने बच्चे को स्कूल भेजने से डर लगने लगा है। लखनऊ की रहने वाली सरस्वती तिवारी (35वर्ष) बताती हैं, “आए दिन टीवी पर ऐसी घटना देखकर दिल घबरा जाता है अब बच्चे को पढ़ने भी न भेजें क्या करें। हम तो अच्छे स्कूल में भेजते हैं जिससे वो अच्छा पढ़ सके, सेफ रहे अब वहां भी लापरवाही इतनी है कि दिन दहाड़े हत्या हो जाती है तो इसकी जिम्मेदारी तो स्कूल की होनी चाहिए।”

शिक्षा व बच्चों के हित के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था स्टीर के सदस्य गुजंन शर्माबताते हैं, “स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा स्कूल की जिम्मेदारी होनी चाहिए। महीने में जो पेरेंटस टीचर मीटिंग होती है, उसमें अभिवावक व टीचर सिर्फ बच्चा 90 प्रतिशत कैसे पाए इस पर चर्चा कर रहे होते हैं बच्चे का व्यवहार कैसा है वो किस तरह की बात करता है, कैसी हरकत करता है इन सबपर गौर करने की भी जरूरत है।”

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वो आगे बताते हैं, “आज कल के समय में टीवी, इंटरनेट ने जहां उन्हें स्मार्ट बनाया है वहीं उनमें आपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ावा भी मिलता है। सीरियल व मूवी में क्राइम कैसे करते हैं इसके तरीके भी बता दिए जाते हैं जिससे बच्चों के दिमाग पर असर पड़ता है।”

बच्चों में बढ़ रही हिंसात्मक प्रवृत्ति के बारे में डॉ राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ देवाशीष कहते हैं, “आजकल मां-बाप के पास इतना समय नहीं कि वे अपने बच्चे में अवसाद के लक्षणों को पहचान उन्हें डील करें। अवसाद ही अपराधों को बढ़ावा देता है। इससे निपटने के लिए अभिभावकों को खुद को शिक्षित करना होगा। यह भी ध्यान रखना होगा कि बच्चों की तुलना किसी से न करें और उनकी अपेक्षाओं को समझें। उनकी हर जिद को पूरी करने की भूल न करें।”

जापान की टोकियावा यूनिवर्सिटी से विक्टमोलॉजी पर अध्ययन करने करने वाली अपराध मनोवैज्ञानिक डॉ. अनुजा कपूर मानती हैं, “बच्चे अपने आसपास जो देखते हैं वही करते हैं। 22 साल तक बच्चे का दिमाग विकसित नहीं होता वो ये नहीं समझ पाता कि ये गलत है ये सही है। उसे अगर चाकू मिला तो वो अपना हाथ भी काट सकता है किसी को मार भी सकता है।”

वो आगे बताती हैं, “दूसरा टीवी की भूमिका बड़ी अहम है उसमें दिखाया जाता है कि कैसे विलेन होते हैं किसी को भी मार देते हैं, बच्चे उनकी नकल करते हैं। उनके दिमाग पर ये चीजें असर डालती हैं। तो वो वही करेगें जो देखेंगें व सीखेगें। ”

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