हवा से पानी बनाने वाली मशीन बुझा सकती है जल संकट वाले इलाकों में प्यास

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   18 Jun 2018 11:39 AM GMT

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हवा से पानी बनाने वाली मशीन बुझा सकती है जल संकट वाले इलाकों में प्यासस्काईवॉटर नाम की मशीन निकालती है हवा से पानी। 

जैसे-जैसे पानी खत्म होता जा रहा है, वैज्ञानिक नए –नए तरीकों से पीने वाला पानी बनाने की कोशिश में हैं। कहीं समुद्र के खारे पानी को तो कहीं औस से पानी बनाया जा रहा है। अमेरिका की एक कंपनी ने हवा से भी पानी बनाना शुरु कर दिया है।

भारत ही नहीं पूरी दुनिया में प्रति व्यक्ति मीठे पानी की उपलब्धता पिछले कई दशकों से घटती जा रही है। अफ्रीका के केपटाउन में तो पानी लगभग खत्म हो गया है। भारत के कई राज्य भी पानी के गर्मियों में बूंद-बूंद तरसते हैं। भारत सरकार की इकाई सेंट्रल वाटर कमीशन अपनी शोध के आधार पर यह अनुमान निकाला है कि वर्ष 2025 तक देश में प्रति व्यक्ति मीठे पानी की उपलब्धता 1,600 घन मीटर हो सकती है। घटती पानी की मौजदूगी को कम करने के लिए स्काईवॉटर मशीन काफी कारगार साबित हो सकती है।

हवा से पानी बनाने वाली इस मशीन को अमेरिका में फ्लोरिडा की कंपनी इज़लैंडस्काई ने तैयार किया है। इस मशीन का नाम है स्काईवॉटर (300) है। यह मशीन वातावरण में मौजूद हवा की नमी को पानी में परिवर्तित कर देती है। इसकी मदद से लगातार कम हो रहे भूमिगत जलस्तर को रोका जा सकता है। यह मशीन नमी से 1,000 लीटर प्रतिदिन के हिसाब से पानी बड़े आराम से निकाल लेती है।

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स्काईवॉटर पानी जनरेटर मशीन की विशेषता बताते हुए इज़लैंडस्काई कंपनी के साथ भारत में काम कर चुके एडब्लूपी सिस्टम नाम की कंपनी के प्रबंध निदेशक विनोद मिश्रा बताते हैं, '' पूरा विश्व इस समय साफ पीने के पानी की कमी से जूझ रहा है। स्काईवॉटर जनरेटर हवा में मौजूद नमी को सीधे साफ पानी में बदल देता है। यह पूरी तरह से साफ और सुरक्षित पीने योग्य पानी होता है।''

पानी के भयंकर संकट से गुजर रहे दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर में सरकार डे-ज़ीरो बनाने का फैसला लिया है। डे-ज़ीरो यानी शहर में करीब 80 फीसदी घरों में पानी की सप्लाई काट दी जाएगी। इस दिन 10 लाख से ज़्यादा घरों में पानी नहीं मिलेगा। भूजल खत्म हो जाने की समस्या से जूझ रहे दक्षिण अफ्रीका देश के लिए स्काईवॉटर जैसी मशीन मददगार सबित हो सकती है।

भारत में भी केपटाउन जैसी हालत

जल संसाधनों की कमी को देखते हुए वर्ष 2016 में संसद समिति की रिपोर्ट के अनुसार देश में नौ राज्यों ( पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश , दिल्ली, राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक) में जल स्तर को गंभीर बताया। यहां पर 'गंभीर' स्थिति का मतलब है 90 फीसदी भूजल की कमी। यह हालत दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन से मिलती-झुलती है।

कैसे काम करती है हवा से पानी बनाने की मशीन

पानी को हिंदी में जल, संस्कृत में नीर, अंग्रेजी में वॉटर ( water) तो वैज्ञानिक शब्दावली में एचटूओ ( H20 ) कहते हैं। पानी हाइड्रोजन और आक्सीजन के मिलने से बनता है। हवा मौजूद आक्सीजन और हाइड्रोजन के सहारे पानी बनाने हैं।

स्काईवॉटर मशीन में हवा को पानी में बदलने के लिए चार चरणों से गुज़रना पड़ता है। सबसे पहले मशीन में मौजूद कंडेंसर वातावरण में नमी को यंत्र में फिल्टरों तक पहुंचाता है। फिल्टरों से गुज़र कर हवा कंडेंसर में लगी ठंडी ओज़ोन क्वाइल से टकराती है। क्वाइल से टकराव के बाद नमी युक्त हवा पानी की बूंदों में बदल जाती है। इसके बाद पानी की बूंदे कंडेंसर से सटी पानी की टंकी में पाइक के माध्यम से पहुंच जाती है।

'' इस मशीन लगे नमी से पानी सोखने वाले कंडेंसर बहुत तेज़ी से काम करते हैं। इससे कम समय में अधिक मात्रा में पानी इकट्ठा किया जा सकता है। यह उपकरण लगाकर आप मिनरल वॉटर बेचने का एक उद्योग भी शुरू कर सकते हैं।'' स्काईवॉटर मशीन को यूपी के साथ साथ भारत के कई राज्यों में लगवा चुके वॉटर प्रोसेसिंग एक्पर्ट राहुल मिश्रा ने बताया।

भारत में उत्तर प्रदेश, मेघालय और कर्नाटक राज्यों में लगे 100 से अधिक संयंत्र।

उत्तर प्रदेश में स्काईवॉटर पानी जनरेटर मशीन का पहला संयंत्र लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर चिकित्सा संस्थान (एसजीपीजीआई) में लगाया गया है। इसका निरिक्षण कर चुकी डॉक्टरों की टीम ने इस संयंत्र के प्रयोग को लोगों के स्वास्थ के लिए लाभकारी और सुरक्षित बताया है। उत्तर प्रदेश के अलावा भारत में मेघालय और कर्नाटक राज्यों में ऐसे 100 संयंत्रों को सफलता पूर्वक चलाया जा रहा है।

बाज़ार में स्काईवॉटर मशीन के 100 लीटर, 250 लीटर, 5000 लीटर और 1,0000 लीटर के मॉडल उप्लब्ध हैं। यह हर दिन 300 गैलन पानी यानी कि 1,000 लीटर प्रतिदिन पानी बड़े आराम से उप्लब्ध कराती है। इस मशीन की कीमत तीन लाख से लेकर बारह लाख रुपए है।

इजरायल में होती है सीवर के पानी से सिंचाई

इजरायल की अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग समिति मशाव के सलाहकार दान अलुफ के मुताबिक इजरायल में कम ज़मीन और शुष्क जलवायु के बावजूद इजरायल यूरोप को फलों और सब्जियों का निर्यात करता है। किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध कराया जाता है। इसलिए यहां पर सिंचाई के लिए पानी रिसाइकल करके और सीवर के पानी को शुद्ध करके प्राप्त किया जाता है, जिसके लिए किसानों को भुगतान करना पड़ता है।

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