तारिक की हत्या से यूपी में गैंगवार शुरू होने की आशंका

Abhishek PandeyAbhishek Pandey   9 Dec 2017 9:09 PM GMT

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तारिक की हत्या से यूपी में गैंगवार शुरू होने की आशंकामुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह 

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सत्ता का समीकरण बदलने के साथ-साथ जेलों में बंद बाहुबलियों का मनोबल भी बढ़ता चला गया। इन सब के बीच माफिया बृजेश सिंह का कद यूपी में जरायम की दुनिया में घटता चला गया। जबकि खुद की हनक को जिंदा रखने के मकसद से बृजेश सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय एमएलएसी का चुनाव लड़ अपने राजनैतिक विरोधी मुख्तार की तर्ज पर विधानपरिषद का माननीय विधायक बन गया। बृजेश सिंह ने यह चुनाव झांसी जेल में बंद होने के बावजूद भी सपा के उम्मीदवार को हरा कर जीता है।

इस दौरान प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें पूर्ण बहुमत से भाजपा की अगुवाई में योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद से तो मुख्तार एंड गैंग पर मानो शामत ही आ गई। हालांकि जेल में बंद होने के बावजूद मुख्तार अंसारी ने मऊ से 2017 का विधानसभा चुनाव जीत लिया।

इस तनावपूर्ण शांति के बीच सूबे में 2 दिसम्बर 2017 को लखनऊ में मुख्तार और मुन्ना बजरंगी के लिए काम करने वाला तारिक की गोमतीनगर इलाके में ताबड़तोड़ गोलियां मार अज्ञात हमलावरों ने मौत के घाट उतार दिया।

इस अदावत से पूरे पूर्वांचल में दहशत दौर पड़ी और हर ओर यहीं चर्चा है कि, जो गैंगवार लंबे वक्त से शांत थी, उसे तारिक की दुस्साहसिक हत्या ने दोबारा से जिंदा कर दिया। तारिक की हत्या म्रें पुलिस का मानना है कि, पूरा मामला वर्जस्व की जंग से जुड़ा है और दूसरा पहलु ठेके-पट्टों को लेकर जा रहा है, जिसे हासिल करने के लिए तारिक को रास्ते से हटाया गया।

माफिया मुन्ना बजरंगी के करीबी माने जाने वाले ठेकेदार मोहम्मद तारिक की हत्या के बाद पूर्वांचल में दूसरे गिरोहों से जुड़े लोगों की भी सरगर्मी बढ़ गयी है। अपराध जगत के तेजी से बदलते समीकरणों के चलते अब हर किसी को संदेह की नजर से देखा जा रहा है। कौन कब तक अपना है और दूसरे के लिए मुखबिरी कर दे इसकी आशंका जतायी जा रही है। दरअसल माना जा रहा है कि तारिक को किसी करीबी के चलते जाल में फंसाया गया, जिससे पहले से मौजूद शूटर्स उसको ठिकाने लगा सके। समूचे घटनाक्रम का एक दूसरा असर यह देखने को मिल रहा है कि कई लोगों ने अपने निजी सुरक्षाकर्मी भी बढ़ा दिए हैं। असलहाधारी सुरक्षा कर्मियों की मांग अधिक हो गई और इसके लिए बाकायदा सुरक्षा एजेंसियों की मदद ली जा रही है। सूत्रों की माने तो कुछ बाहुबलियों ने अपनों की सुरक्षा के लिए वाहनों को बुलेटप्रूफ करने वाली कंपनियों तक से सम्पर्क किया है। वाहनों को बुलेटप्रूफ करने का कार्य मेरठ जिले में होता है, जहां पूर्वांचल नम्बरों की कारों की आने रफ्तार बढ़ी है।

तारिक की हत्या के बाद से पलटवार की आशंका से वह लोग भी बौखलाए हैं जो किसी रूप में सरकारी ठेकों और पट्टों से जुड़े हैं। ठेकेदारों की मजबूरी यह भी रहती है कि किसी न किसी गुट की सरपरस्ती के बगैर ठेके मिलते नहीं हैं। माना जा रहा है कि पूर्वांचल में अपना वजूद बरकरार रखने की खातिर बजरंगी गिरोह घटनाओं को अंजाम दे सकता है। ठेकेदारों को सरकारी विभागों में जाने के लिए सुरक्षा को लेकर खासा सतर्क हो गये हैं। पिछले दो दिनों में निजी एजेंसी से एक दर्जन से अधिक असलहाधारी निजी सुरक्षा गार्ड लिये जा चुके हैं।

दुस्साहसिक वारदात के चलते गिरोहों से जुड़े लोगों ने अपना मूवमेंट कम कर दिया है। जेलों में मुलाकात करने वालों की संख्या में भी खासी कमी आयी है। शंका की नजर से उन्हें देखा जा रहा है, जिनके बारे में आशंका है कि वह दूसरे गुट से मिले हो सकते हैं। यही नहीं सीसीटीवी कैमरे से देख कर पहले ही संदिग्ध माने जाने वाले को कहला दिया जा रहा है कि, बाहर गये हैं और कम आयेंगे पता नहीं।

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तारिक

लखनऊ के गोमती नगर में बदमाशों की गोली का शिकार हुआ विशेश्वरगंज निवासी ठेकेदार मो. तारिक छात्र जीवन से ही मनबढ़ किस्म का था। इसी दौरान वर्ष 2005 में जरायम जगत के कुख्यात मुन्ना बजरंगी से उसका संपर्क हुआ। सेंट्रल जेल में मई 2005 में अन्नू त्रिपाठी की हत्या के बाद तारिक की नजदीकियां मुन्ना बजरंगी से बढ़ती चली गईं। मुन्ना बजरंगी का हाथ होने के कारण वर्ष 2010 तक तारिक का नाम पूर्वांचल के रेलवे और पीडब्लूडी के बड़े ठेकेदारों में शुमार होने लगा। मार्च 2016 में मुन्ना बजरंगी के साले और उसके दाएं हाथ कहलाने वाले पुष्पजीत सिंह की हत्या हुई तो तारिक उसका सबसे खास हो गया था। चर्चाओं के अनुसार बजरंगी से तारिक की करीबी ही उसकी हत्या का कारण बनी।

पुलिस के अनुसार उसने मऊ सदर विधायक मुख्तार अंसारी के इशारे पर नदेसर स्थित पीडब्ल्यूडी कार्यालय में एक एक्सईएन पर गोली चलाई थी। इस हमले में एक्सईएन बच गए थे। वर्ष 2013 में तारिक के खिलाफ कोतवाली थाने से गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई हुई। इसके बाद वर्ष 2013 में ही तारिक के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र सहित अन्य आरोपों और 7 सीएलए के तहत मामला दर्ज किया गया। इसके साथ ही तारिक का नाम जिला कारागार के डिप्टी जेलर अनिल त्यागी हत्याकांड और रंगदारी के साथ ही कुछे अन्य मामलों में भी प्रकाश में आया था, लेकिन पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में कोई कार्रवाई नहीं हुई।

पुलिस सूत्रों के अनुसार मुख्तार अंसारी और मुन्ना बजरंगी के लिए ठेकेदारी के साथ ही तारिक जमीन संबंधी लंबी पंचायतें भी कराता था।

बजरंगी के साले पुष्पजीत को भी इसी गिरोह ने मौत के घाट उतारा था। पुष्पजीत की हत्या के बाद से ही दोनों गैंग में तनातनी चल रही थी। बजरंगी गिरोह भी बदला लेने की फिराक में था, लेकिन इस बार फिर उसका नुकसान हुआ और बजरंगी के खास मो. तारिक की हत्या कर दी गई।

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धनंजय

वहीं घटना की तह तक पहुंचने के लिए लखनऊ पुलिस के साथ वाराणसी पुलिस ने तथ्यों को साझा किया है। अपनों में मनमुटाव के अलावा पुलिस ठेकेदारी और विवादित जमीनों की पंचायत जैसे पहलुओं पर भी छानबीन में जुटी है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक मिर्जापुर में करीब सात करोड़ रुपये मूल्य की विवादित जमीन पर तारिक की नजर थी। इस पर पूर्वांचल के अन्य माफिया गुट भी नजरें गड़ाए हैं। जमीन हथियाने के लिए बजरंगी गिरोह कई बार पंचायत भी कर चुका था।

आईजी रेंज लखनऊ जय नारायण सिंह का कहना है कि, तारिक हत्याकांड की जांच जारी है। पुलिस इस हत्याकांड को गैंगवार से जोड़ कर देख रही है, जिसके चलते तमाम पूर्वांचल के अपराधियों के गतिविधियों को खंगाला जा रहा है। उन्होंने कहा कि, जेलों में बंद शूटरों से भी पूछताछ जारी है, जल्द ही पूरे मामले से पर्दा उठा जायेगा। जबकि आईजी का कहना है कि, प्रदेश में अब कानून का राज है, अगर कोई भी अपराधी कानून अपने हाथ में लेने का प्रयास करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जायेगी।

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मुन्ना बजरंगी

मुख्तार की माफिया बनने की दास्ता

मुख्तार अंसारी और उनके भाई अफजाल अंसारी को बाहुबली नेता के तौर पर जाना जाता है। मुख्तार अंसारी कई आपराधिक मामले दर्ज हैं और वह मौजूदा समय में आगरा की जेल में बंद हैं। मुख्तार अंसारी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुख्तार अहमद अंसारी के पोते हैं, अहमद अंसारी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं। मखनू गैंग के सदस्य से गुंडा टैक्स की वसूली का सफर मुख्तार अंसारी मुख्य रूप से मखनू सिंह गैंग के सदस्य थे, जिसकी 1980 से साहिब सिंह के गैंग से जमीन को लेकर काफी बार खूनी भिड़ंत हो चुकी है। मुख्तारा अंसारी गाजीपुर में 1990 में कॉट्रैक्ट माफिया बनकर उभरा। अंसारी की सीधी भिड़ंत बृजेश सिंह से रहती थी। दोनों ही गैंग कोयला, खनन, रेलवे कॉट्रैक्ट, शराब सहित तमाम धंधे करते थे। ये दोनों ही गैंग गुंडा टैक्स और फिरौती लेने का रैकेट भी चलाते थे।

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मुख्तार अंसारी मऊ, गाजीपुर, वाराणसी, जौनपुर में कुख्तार अपराधी के तौर पर जाना जाने लगा। लेकिन अपराध की दुनिया के साथ ही उन्होंने 1995 में राजनीति की दुनिया में भी कदम रखा और 1996 मे विधायक बनें। बृजेश सिंह से खूनी जंग लेकिन इस दौरान भी अंसारी और बृजेश सिंह की आपसी तकरार बनी रही। अंसारी ने 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा, उस वक्त भी वह जेल में थे, लेकिन वह भाजपा के मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ हार गया। 2010 में बनाई अपनी पार्टी 2010 में बसपा ने मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। जिसके बाद मुख्तार, अफजाल और सिबकतिल्लाह ने कौमी एकता दल का 2010 में गठन किया। 2014 में अंसारी ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया था लेकिन बाद में उसने अपनी दावेदारी वापस ले ली थी।

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बृजेश सिंह की माफिया से नेता बनने की दास्ता

वाराणसी में पैदा हुए बृजेश सिंह उर्फ अरुण कुमार सिंह के पिता रवींद्र सिंह क्षेत्र में काफी रसूखदार माने जाते थे। सियासत में भी उनका रुतबा और दबदबा कम नहीं था। बृजेश सिंह शुरुआत से ही पढ़ने-लिखने में तेज थे। अपने पिता के लिए बृजेश सिंह बेहद प्रिय थे। इस दौरान 27 अगस्त 1984 को वाराणसी के धरहरा गांव में रवींद्र सिंह की हत्या कर दी गई। इस वारदात को हरिहर सिंह और पांचू सिंह नाम के आरोपियों ने अपने साथियों के साथ अंजाम दिया। इस घटना ने बृजेश सिंह की राह बदल दी और बदले की आग में वह कलम छोड़कर बंदूक उठाने को मजबूर हो गया। पिता की हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश सिंह लगातार मौके खोज रहा था और आखिरकार एक साल बाद वह दिन आ ही गया। 27 मई 1985 को रवींद्र सिंह का हत्यारा हरिहर सिंह उसके सामने आ गया और उसे मौत के घाट उतार दिया। यह पहला मौका था जब पुलिस ने उसके खिलाफ केस दर्ज किया लेकिन वह भागने में कामयाब रहा। बृजेश सिंह का गुस्सा यहीं नहीं थमा, उसने हत्या में शामिल रहे बाकी लोगों की भी तलाश की। आखिरकार 9 अप्रैल 1986 को वाराणसी के सिकरौरा में उसने पांच अन्य आरोपियों को सरेआम गोलियों से भून दिया। हालांकि इसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तारी के बाद बृजेश सिंह को जेल भेजा गया तो वहां सुधरने के बजाय उसका दिमाग और शातिर हो गया। जेल में उसकी मुलाकात त्रिभुवन सिंह से हुई जो गाजीपुर का रहने वाला था। उनका गैंग यूपी में शराब, रेशम और कोयले के कालेधंधे में आ गया। यही वो दौर था जब ठेकेदारी और गुंडाटैक्स के लिए बृजेश सिंह और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के बीच आमना-सामना हुआ और फिर पूर्वांचल में गैंगवार का दौर शुरू हो गया, जो यूपी पुलिस के लिए सिरदर्द साबित हुआ।

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