यहां दशहरे में नहीं फूंका जाता रावण, लोग करते हैं पूजा और आरती

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यहां दशहरे में नहीं फूंका जाता रावण, लोग करते हैं पूजा और आरती160 साल पुरानी है यहां की रामलीला

इटावा (जसवंतनगर)। दशहरा देश भर में भगवान राम के हाथों दशानन 'रावण' के वध और उसके बड़े - बड़े पुतले फूंककर मनाया जाता है, मगर इटावा ज़िले के जसवंतनगर कस्बा में पिछले 160 वर्षों से हो रही रामलीला में रावण को फूंका नहीं जाता।

यहां के लोग कई जगहों पर रावण की आरती और पूजा किए जाने के साथ - साथ उसकी जय जय कार भी करते हैं और रावण के पुतले के टुकड़ों को वर्ष भर लोग अपने घर मे सहेज कर रखते हैं। इसके पीछे लोगों की मान्यता है कि इससे बच्चों को बुरी नजर नहीं लगती। घर के सदस्यों को बाधाएं नहीं सताती, रोग व अकाल मौत नहीं होती। व्यापार, जुए, सट्टे में हर कीमत में फायदा होता है।

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उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग के अफसर यहां की रामलीला का एक वीडियो 2012 में यूनेस्को ले गए थे। वहां इसे काफी सराहना मिली और विश्व विरासत का दर्जा भी। जसवंतनगर के लोगों के लिए भी यह रामलीला एक धरोहर जैसी है। यह रामलीला मंच पर नहीं बल्कि 150 मीटर लंबे मैदान में होती है। नवमी और दशहरा के दिन तो राम-रावण की सेनाओं के बीच नगर की सड़कों पर पुराने तीरों, तलवारों, ढालों, बरछी, भालों से युद्ध का प्रदर्शन होता है।

दशहरा के दिन जब रावण अपनी सेना के साथ राम से युद्ध को निकलता है तब सड़कों पर उसकी विद्वता और पांडित्य की लोग तारीफ करते हैं। उसकी पूजा और आरती करते हैं। यह परंपरा 35 वर्ष पूर्व यहां के जैन बाजार में शुरू हुई थी। रामलीला के मंचन के दौरान रावण - राम से युद्ध करने जाते वक्त नगर की आराध्य देवी केला गमा देवी के मंदिर जा रहा होता है तब बाजार के दुकानदार बड़ी पारातों में घी, कपूर, अगरबत्ती आदि जलाकर उसकी आरती उतारते हैं। रावण अपने माथे पर त्रिपुंड लगाता था, इसीलिए आरती करते वक्त लोग पीला टीका अपने माथे पर लगाते हैं ।

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नगर की सड़कों पर राम और रावण के बीच रोमांचक युद्ध कई घंटों चलता है। उसके बाद रामलीला में ये युद्ध ज़ारी रहता है। रावण वध के लिए भगवान राम निश्चित पंचक मुहूर्त तक युद्ध करते रहते हैं। विभीषण द्वारा राम के कान में जैसे ही रावण की नाभि में अमृत होने का राज बताया जाता है। राम अंतिम वाण, रावण पर छोड़ते हैं और पात्र बना रावण मृत्यु को पाता है।

इसके बाद राम वाणों को मैदान में लगे रावण के पुतले पर जैसे ही चलाते हैं तो रावण वध लीला खत्म हो जाती है। इसके बाद भारी भीड़ रावण के विशालकाय पुतले को नीचे गिराकर उसके टुकड़े काला कपड़ा, रंग बिरंगे कागज, मालाएं, बांस आदि अपने घरों में रखने के लिए उठा ले जाते हैं। बिना फूंके ही रावण के पुतले का एक - एक टुकड़ा राम लीला मैदान में साफ हो जाता है।

जसवंतनगर की रामलीला पर पिछले कई वर्षों से शोध कर रहे अयोध्या शोध संस्थान, फैजाबाद के निदेशक डॉ. वाईपी सिंह रावण को लेकर जसवंतनगर की प्रथाओं से हैरान हैं। उनका कहना है कि उत्तर भारत में कहीं भी जसवंतनगर जैसी रावण से जुड़ी प्रथाएं नहीं हैं। यह रामलीला सीधी सीधी दक्षिण भारत से प्रभावित है।

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रामलीला समिति के प्रबंधक राजीव गुप्ता और अजेंद्र सिंह गौर ने बताया कि यहां की रामलीला की प्रथाएं हम जारी रखे हैं इसीलिए पूरे प्रदेश ही नहीं, देश भर से लोग रामलीला देखने आते हैं। हाल ही में एक चैनल ने यहां की रामलीला पर बनी डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई है।

वीडियो देखें :

          

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