गोरखपुर उपचुनाव के प्रत्याशी उपेन्द्र शुक्ला कभी कमल पर चला चुके हैं कुल्हाड़ी  

विधानसभा चुनाव

अभयानंद कृष्ण, गाँव कनेक्शन

गोरखपुर। योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे के बाद गोरखपुर संसदीय सीट के लिए होने जा रहे उप चुनाव में पार्टी की ओर से प्रत्याशी बनाये गए उपेंद्र दत्त शुक्ल ने कभी पार्टी में अपनी उपेक्षा से आहत हो कर कुल्हाड़ी उठा ली थी। योगी और पार्टी से बागी बन तब उन्होंने खूब चर्चा बटोरी थी, लेकिन अब वही उनकी सीट से उम्मीदवार बनाए गए हैं।

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इसके पहले उपेंद्र कौड़ीराम विधानसभा से तीन बार चुनाव लड़ चुके हैं। पहली बार वर्ष 1996 में यहां से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन हार गए। वर्ष 2002 में भाजपा ने यहां से गौरी देवी को टिकट दिया लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। बसपा प्रत्याशी के रूप में रामभुआल विधानसभा पहुंचे, लेकिन तीन वर्ष बाद रामभुआल का चुनाव अवैध घोषित हो गया जिसके बाद हुए उपचुनाव में उपेन्द्र दत्त शुक्ल को उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें टिकट देगी। लेकिन तब सांसद रहते योगी आदित्यनाथ ने यहां से अपने नज़दीकी शीतल पांडेय को टिकट दिला दिया। इससे उपेन्द्र इस क़दर नाराज हुए कि बागी बन बैठे। वह निर्दल चुनाव लड़ गए।

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चुनाव चिन्ह कुल्हाड़ी के साथ मैदान में उतरे उपेंद्र खुद तो नहीं जीत सके लेकिन भाजपा के लिए हार की वजह जरूर बन गए। चुनाव बाद भाजपा में उनकी वापसी हुई। 2007 के चुनाव में वह भाजपा से टिकट लेने में तो सफल हुए लेकिन नतीजा आया तो उन्हें तीसरा स्थान मिला। बसपा के अम्बिका सिंह चुनाव जीते और सपा उम्मीद्वार रामभुआल को दूसरा स्थान मिला। इस बार लोकसभा प्रत्याशी के तौर पर उनके नाम की घोषणा को ब्राह्मण कार्ड के रूप में देखा जा रहा है। इसे सियासी संतुलन की कोशिश बताई जा रही है। शिवप्रताप शुक्ल के बाद उपेंद्र शुक्ल के सियासी कद में इज़ाफ़ा को राजनीति के जानकार भाजपा के भविष्य के लिए शुभ मान रहे हैं। बात सियासत के संतुलन की हो या इसे 2019 के मद्देनजर तैयारी माने, यह तो पूरी तरह सच है कि संगठन की सेवा का फल पार्टी ने उन्हें दे ही दिया।

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