लखनऊ। मक्का भारत में गेहूं के बाद उगाई जाने वाली दूसरी महत्वपूर्ण फसल है। हमारे देश के अधिकांश मैदानी भागों से लेकर 2700 मीटर ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों तक मक्का सफलतापूर्वक उगाया जाता है। यह एक बहुपयोगी फ़सल है, क्योंकि मनुष्य और पशुओं के आहार का प्रमुख अवयव होने के साथ ही औद्योगिक दृष्टिकोण से भी यह महत्वपूर्ण भी है।
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भारत में मक्का की विविध क़िस्में उत्पन्न की जाती हैं जो कि शायद ही किसी अन्य देश में सम्भव हो। इसका प्रमुख कारण भारत की जलवायु की विविधता है। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और विटामिनों से भरपूर मक्का शरीर के लिए ऊर्जा का अच्छा स्त्रोत है साथ ही बेहद सुपाच्य भी। इसके साथ मक्का शरीर के लिए आवश्यक खनिज तत्वों जैसे कि फ़ोसफ़ोरस, मैग्निशियम, मैगनिज, ज़िंक, कॉपर, आयरन इत्यादि से भी भरपूर फ़सल है। भारत में मक्का की खेती तीन ऋतुओं में की जाती है, ख़रीफ़ (जून से जुलाई), रबी (अक्टूबर से नवम्बर) एवं ज़ायद (फ़रवरी से मार्च)। यह समय मक्का की बुआई के लिए खेतों को तैयार करने का उचित समय है। मानसून का आरम्भ अर्थात वर्षा के आगमन के साथ मक्का बोना चाहिए, परंतु अगर सिंचाई के पर्याप्त साधन हो तो 10-15 दिन पहले भी बुआई की जा सकती है। बीज की बुआई मेड़ के किनारे व ऊपर 3-5 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए। बुआई के एक माह पश्चात मिट्टी चढ़ाने का कार्य करना चाहिए। बीज को बोने से पहले किसी फंफूदनाशक दवा जैसे थायरम या एग्रोसेन जीएन बीज के दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
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पौधे लगाते हुए उनके बीच की दूरी का ध्यान रखना भी आवश्यक है। बीज को बोने के दौरान पौधों में अंतर लगाए जाने वाली प्रजाति के अनुसार होना चाहिए उदाहरण के लिए शीघ्र पकने वाली प्रजातियों (70-75 दिन) में कतार से कतार में 60 सेमी एवं पौधे से पौधे-20 सेमी, मध्यम/देरी से पकने वाली प्रजातियों के लिए कतार से कतार-75 सेमी पौधे से पौधे-25 सेमी एवं हरे चारे के लिए कतार से कतार 40 सेमी और पौधे से पौधे में 25 सेमी की दूरी रखना उचित रहता है।
मक्का की क़िस्में
अवधि के आधार पर मक्का की क़िस्मों को निम्न चार प्रकार में बाँटा गया है
– अति शीघ्र पकने वाली किस्मे (75 दिन से कम)- जवाहर मक्का-8, विवेक-4, विवेक-17, विवेक-43, विवेक-42, प्रताप हाइब्रिड मक्का-1
– शीघ्र पकने वाली किस्मे- (85 दिन से कम)- जवाहर मक्का-12, अमर, आजाद कमल, पंत संकुल मक्का-3, चन्द्रमणी, प्रताप-3, विकास मक्का-421, हिम-129, डीएचएम-107, डीएचएम-109, पूसा अरली हाइब्रिड मक्का-1, पूसा अरली हाइब्रिड मक्का-2, प्रकाश, पी.एम.एच-5, प्रो-368, एक्स-3342, डीके सी-7074, जेकेएमएच-175, हाईशेल एवं बायो-9637.
– मध्यम अवधि मे पकने वाली किस्मे (95 दिन से कम)- जवाहर मक्का-216, एचएम-10, एचएम-4, प्रताप-5, पी-3441, एनके-21, केएमएच-3426, केएमएच-3712, एनएमएच-803 , बिस्को-2418
– देरी की अवधि मे पकने वाली (95 दिन से अधिक )- गंगा-11, त्रिसुलता, डेक्कन-101, डेक्कन-103, डेक्कन-105, एचएम-11, एचक्यूपीएम-4, सरताज, प्रो-311, बायो-9681, सीड टैक-2324, बिस्को-855, एनके 6240, एसएमएच-3904.
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खेत की तैयारी यूं करें
भूमि की तैयारी करते समय 5 से 8 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद खेत मे मिलानी चाहिए तथा भूमि परीक्षण उपरांत जहां जस्ते की कमी हो वहां 25 किलो जिंक सल्फेट वर्षा से पूर्व डालनी चाहिए। खेतों में डाले जाने वाले खाद व उर्वरक की मात्रा भी चुनी हुयी प्रजाति पर ही निर्भर करती है। मक्का की खेती के दौरान खाद व उर्वरक की सही विधि अपनाने से मक्का की वृद्धि और उत्पादन दोनों को ही फ़ायदा होता है। जैसे कि डाली जाने वाली पूरी नाइट्रोजन की मात्रा का तीसरा भाग बुआई के समय, दूसरा भाग लगभग एक माह बाद साइड ड्रेसिंग के रूप में, तथा तीसरा और अंतिम भाग नरपुष्पों के आने से पहले। फ़ोसफ़ोरस और पोटाश दोनों की पूरी मात्रा को बुआई कि समय मिट्टी में डालना चाहिए जिससे ये पौधों के जड़ो से होकर पौधों में पहुँच सके और उनकी वृद्धि में अपना योगदान दे सकें।
सिंचाई
मक्के के फ़सल को अपने पूरे फ़सल अवधि में 400-600 मीमी पानी की आवश्यकता होती है। पानी देने की महत्वपूर्ण अवस्था पुष्पों के आने और दानों के भरने का समय होता है अतः इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है। मक्के के खेत में 15 से 20 व 25 से 30 दिनों तक खर-पतवार नियंत्रण व निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। खर पतवार को निकलते वक़्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो जड़ से नष्ट हो, बीच से टूटने से वो और तीव्रता से बढ़ते हैं। मक्का एक ऐसी फ़सल है जिसके साथ अंतरवर्ती फ़सले भी उगायी जा सकती हैं, जैसे उरद, बोरो या बरबटी, मूँग, सोयाबीन, तिल, सेम इत्यादि। मौसम के अनुसार अंतरवर्ती फ़सल के रूप में सब्ज़ियों को उगा सकते है जो किसानों के लिए वैकल्पिक आय का माध्यम बन सकता है।
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कीट एवं रोग प्रबंधन
मक्का कार्बोहाईड्रेट का उत्तम स्त्रोत होने कि साथ ही एक स्वादिष्ट फ़सल भी है जिसके कारण कीटों की परेशानी भी होती है इस फ़सल में। मक्का में लगने वाले प्रमुख कीट धब्बेदार तनाबेधक कीट गुलाबी तनाबेधक कीट होते हैं। इसके अलावा मक्के का पौधा डाउनी मिल्डयू, पत्तियों का झुलसा रोग एवं तना सड़न जैसे रोगों से भी प्रभावित हो सकता है। इन रोगों के सही उपचार से फ़सल सुरक्षित रहेगी। जिन क्षेत्रों में इन रोगों का प्रकोप अधिक होता हो वहाँ प्रतिरोधी उन्नत क़िस्मों की खेती करनी चाहिए।
कटाई एवं भंडारण
प्रजाति के आधार पर फ़सल के कटाई की अवधि होती है, जैसे चारे वाली फ़सल को बोने के 60-65 दिन बाद, दाने वाली देशी क़िस्म बोने के 75-85 दिन बाद, व संकर एवं संकुल क़िस्म बोने के 90-115 दिन बाद काटना होता है। कटाई के समय दानों में लगभग 25 % तक नमी रहती हैं। कटाई के बाद मक्का फ़सल में सबसे महत्वपूर्ण कार्य गहाई है इसमें दाने निकालने के लिये सेलर का उपयोग किया जाता है। सेलर नहीं होने की अवस्था में साधारण थ्रेशर में सुधार कर मक्का की गहाई की जा सकती है इसमें मक्के के भुट्टे के छिलके निकालने की आवश्यकता नहीं है। कटाई व गहाई के पश्चात प्राप्त दानों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर भण्डारित करना चाहिए। दानों को बीज के रूप में भंडारण करने के लिए इन्हें इतना सुखा लेना चाहिए कि नमी करीब 12% रहे।
रिपोर्ट डॉ. प्रीति उपाध्याय
(दिल्ली विश्वविद्यालय में कृषि आनुवांशिकी के क्षेत्र में अनुसंधानरत हैं)