ललितपुर ( उत्तर प्रदेश)। अक्टूबर से शुरु हुई डीएपी, एनपीके किल्लत बुंदेलखंड के कई हिस्सों में नवंबर तक जारी रही है। समस्या कुछ कम जरुर हुई लेकिन इस दौरान तमाम किसानों का नुकसान हो गया। किसी की बुवाई पिछड़ गई तो कोई खाद न मिलने के चलते चक्कर में नमी वाले खेत में बो नहीं पाया। कई किसानों ने कहा कि खाद के लिए उन्हें बाजार और समितियों तक इतने चक्कर लगाने पड़े कि उन्हें 1200 वाली डीएपी 2000 रुपए की बोरी पड़ी है। कई किसानों ने कहा उन्हें अब पलेवा कर गेहूं बोना पड़ रहा है, इससे उनका खर्च बढ़ गया।
“खाद समय पर मिल गई होती तो हम सौ प्रतिशत बोनी कर लेते। इस बार खाद को लेकर काफी दिक्कत हुई। सात एकड़ जमीन में से पांच एकड़ में मटर बो पाई बाकी दो एकड़ जमीन खाली पड़ी रहने की नौबत है।” पचौड़ा गांव के किसान राघवेंद्र पाल (22वर्ष) कहते हैं। ललितपुर जिले के राघवेंद्र से गांव कनेक्शन की बात उस वक्त हुई जब वो मटर के खेत में सिंचाई कर रहे थे।
इसी जिले के किसान धनीराम अहिरवार को 2 बोरी डीएपी के लिए अपने गांव खाकरौन से 50 किलोमीटर दूर महरौनी के पांच दिन चक्कर लगाने पड़े। धनीराम 17-19 अक्टूबर के बीच हुई बारिश के बाद अपने खेतों की बुवाई करना चाहते थे लेकिन जब खाद नहीं मिल। नमी सूखने के बाद दोबारा डीजल वाला पंपिंग सेट चलाकर पलेवा (पानी लगाया) लेकिन वो भी सूखने लगा तो खाद मिली।
धनीराम गांव कनेक्शन से कहते हैं, “डीजल जलाकर खेत का पलेवा (पानी) किया एक हफ्ता होने को हैं अब खेत सूख रहे हैं क्या करें हमारे बानपुर क्षेत्र में खाद मिल रही होती तो पचास किलो मीटर दूर रोज सौ रूपया का तेल जलाकर महरौनी खाद लेने क्यों आते।” किसान सेवा सहकारी समिति महरौनी पर किसानों की लाईन में अपनी बारी का इंतजार करते हुऐ धनीराम अहिरवार (45 वर्ष) कहते हैं।
रबी सीजन में सरसों, गेहूं, आलू, चना, मटर, मसूर की बुवाई के लिए डाई आमोनियम फॉस्फेट (DAP) और एनपीके (NPK), सिंगल सुपर फास्टफेट (SSP)और एमओपी की जरुरत होती है। इनमें भी सबसे ज्यादा जरुरत डीएपी की होती है। जो किसानों को बुवाई के वक्त जमीन में ही देना होता है। लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों में किसान लगातार उर्वरक को लेकर परेशान हैं। लेकिन सरकार लगातार किल्लत की बात से इनकार करती रही है।
राजस्थान में सितंबर महीने में ही खाद की किल्लत शुरु हो गई थी, मध्य प्रदेश और यूपी में अक्टूबर में खाद की किल्लत समाने आई। खाद के लिए कई राज्यों में हंगामे हुए, किसानों ने प्रदर्शन किया, यहां तक यूपी में 2 और एमपी में 1 किसान आत्महत्या तक कर ली लेकिन सरकार ने आत्महत्या की वजह खाद किल्लत नहीं माना। राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक कहती रहीं देश में उर्वरक की कोई किल्लत नहीं है। सरकार ने तर्क दिया मुताबिक सितंबर-अक्टूबर में भारी बारिश के चलते कई जगह दोबारा बुवाई तो कई जगह एक साथ बुवाई शुरु होने एकाएक मांग बढ़ी इसलिए दिक्कत हुई।
देश में खाद का संकट पिछले कई महीनों से बना हुई है, ऐसे नौबत क्यों आई ?, डीएपी-एनपीके जैसे उर्वरक देश में बनते कहां हैं और मंगाई कहां से जाते हैं?, क्यों सरकार को दो-दो बार उवर्रक सब्सिडी बढ़ाई पढ़ी। गांव कनेक्शन ने ऐसे तमाम सवालों को तलासते से विस्तार से स्टोरी की है। यहां पढ़िए
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लखनऊ में पिछले दिनों कृषि अधिकारियों और उर्वरक कंपनियों के साथ समीक्षा बैठक करते हुए प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि उत्तर प्रदेश के 30 नवंबर तक 3 लाख मीट्रिक टन फास्फेटिक खाद और मिल जाएगी, सरकार किसानों को पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है।
16 नवंबर को लखनऊ में समीक्षा बैठक में शाही ने कहा, वर्तमान समय में फास्फेटिक उर्वरक पर्याप्त मात्रा बिक्री केंद्रों पर उपलब्ध है, किसान किसी भी अपवाह पर ध्यान न दें। प्रदेश में 3.79 लाख मीट्रिक टन फास्फेटिक उर्वरक और 63मीट्रिक टन सिंगल सुपर फास्फेट उर्वरक उपल्बध है। उत्तर प्रदेश ने नवंबर महीने के लिए 6 लाख मीट्रिक टन डीएपी मांगी गई ,जिसमें से 3 लाख मीट्रिक टन 11 नवंबर तक पहुंच गई थी, बाकि भी रैक लगातार आ रही हैं।
उत्तर प्रदेश में सभी तरह की रासायानिक खादों में आपूर्ति में इफको कि हिस्सेदारी 40 फीसदी के करीब है। इफको के मुताबिक उन्होंने प्रदेश में सरकार से आवंटित मात्रा से ज्यादा की आपूर्ति की है। इफको के राज्य विपणन प्रबंधक अभिमन्यु राय, कहते हैं, “इफको की तरफ से उत्तर प्रदेश में कहीं कोई दिक्कत नहीं है। खरीफ तक 3.14 लाख मीट्रिक टन का आवंटन था इसके सापेक्ष में 336 लाख मीट्रिक टन खाद आई है। अक्टूबर महीने में 1 लाख 7 हजार मीट्रिक टन डीएपी आई है, जबकि नवंबर महीने में 1.90 लाख मीट्रिक टन का आवंटन है। और शत प्रतिशत स्टॉक मिल रहा है। सरकार द्वारा जिस जिले से जितनी डिमांड की जा रही है वहां खाद भेजी जा रही है।” उनके मुताबिक इफको की प्रदेश में उर्वरक आपूर्ति में 39 से 40 फीसदी है, लेकिन इस साल इफको का मार्केट शेयर बढ़कर 45 फीसदी हो गया है।
सरकार के तमाम दावों के बावजूद बुंदेलखंड के ललितपुर ही नहीं प्रदेश के दूसरे जिलों में भी किसान खाद के लिए परेशान रहे। मथुरा जिले में मांट इलाके के किसान अनिल चौधरी कहते हैं, 4 एकड़ सरसों बोनी थी, 1600 रुपए प्रति बोरी डीएपी लाए हैं। सारी खाद पता नहीं कहां चली जा रही है।” उनके गांव में कई किसानों ने भी डीएपी और एनपीके की किल्लत की बात कही। लेकिन यूपी में सबसे पहले और सबसे ज्यादा खाद किल्लत को लेकर कई जिला रहा है तो बुंदेलखंड का ललितपुर है।
ललितपुर में अक्टूबर में किसान खाद के लिए कईयों दिन-रात सड़कों पर भटका, दुकानों की लाईनों में लगा, खाद की किल्लत से हंगामे और चक्काजाम जैसे हालात जिले में बने रहे। इस बीच लाईन लगने से खाद को परेशान किसानों की जानें भी चली गईं। अक्टूबर के बाद नबम्बर माह में भी खाद की किल्लत बनी हैं अब भी किसानों की लाईने लग रही हैं।
देश के कई राज्यों के लिए 17-19 अक्टूबर को हुई भारी बारिश भले ही मुसीबत लेकर आई थी लेकिन ललितपुर जिले के लिए वो वरदान के कम नहीं थी,बुवाई के समय में खेतों में नमी आ गई थी वहां इतना महंगा डीजल खरीदकर पहले पलेवा करना पड़ता।
बुंदेलखंड में 17-19 अक्टबूर एक साथ हुई किसान खुश थे, जिस वजह से गेहूं के बदले दलहनी फसलें ज्यादा बोने लगे थे। किसान राघवेन्द्र पाल कहते हैं,”ज्यादातर खेती गेहूं की करते थे इस बार नहीं की। समय पर बारिश हो गई, आसपास के गाँवों के किसानों ने ज्यादा दलहनी (मटर, मसूर, चना) फसल बोई हैं। खाद ना मिलने से जिन खेतों की नमी चली गई उन खेतों में पानी लग रहा हैं इसके बाद गेहूँ तब बो पायेगें जब खाद मिल जायेगी।”
“रबी सीजन की ज्यादातर बुबाई हो चुकी है इसके बाद खाद की किल्लत कम नहीं हुई, गाँव के 15 से 20 किसान रोज ललितपुर भाग रहे हैं पूरे दिन लाईन में लगने के बाद दो चार किसानों को खाद मिल पाई आने जाने का खर्चा होता हैं डीएपी बोरी सहित खर्चा जोड़ लिया जाय तो करीब दो हजार की बोरी पड़ रही हैं।”ललितपुर मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर छिल्ला गाँव के महेन्द्र राजपूत (35 वर्ष) कहते हैं।
समय पर बारिश होने से ज्यादातर किसान बोना चाहते थे दलहन
वो आगे बताते हैं,”गाँव वाले 60-70 प्रतिशत गेहूं बोते थे बारिश से किसानों का मन बदल गया इस बार दलहनी फसलें ज्यादा बोई गई। आसपास के गांवों में 70 से 80 प्रतिशत दलहनी फसलों की बुबाई हो चुकी है। अब 20 से 30 प्रतिशत किसानों ने गेहूं बोने का मन बनाया। गेहूं की बुबाई करने वाले किसान डीएपी को भटक रहे हैं. खाद की परेशानी कम नहीं हुई।”
ललितपुर में जिला कृषि विभाग के मुताबिक जिले में रबी के सीजन में 306896 हेक्टेयर में बुवाई का लक्ष्य रखा गया। जिसमें सबसे ज्यादा 172384 हेक्टेयर में गेहूं और 75,122 हेक्टेयर में मटर, 10,114 हेक्टेयर में जौ बुआई, चना की बुवाई 19,585 हेक्टेयर, 23496 हेक्टेयर क्षेत्रफल में मसूर, 5,883 हेक्टेयर में सरसों और 172 हेक्टेयर में तोरिया, 135 हेक्टेयर के क्षेत्र में अलसी बुआई का लक्ष्य है।
कृषि विभाग के मुताबिक ललितपुर में 15 नवंबर महीने में 35 हजार 5 सौ मीट्रिक टन खाद वितरित की जा चुकी थी। ढाई हजार मीट्रिक टन बिक्री के लिए उपलब्ध थी।
ललितपुर के जिला कृषि अधिकारी राजीव कुमार भारती ने गांव कनेक्शन से कहा, “जिले में खाद की सभी दुकानों पर कर्मचारियों की उपस्थित में वितरण हो रहा है दुकानों पर खाद उपलब्ध कराई जा रही है, जिले में मध्य प्रदेश की सीमाऐं लगी हैं सीमा वाले बॉडरों पर सख़्ती से कालाबाजारी की रोकथाम के लिए निगरानी की जा रही है।”
ललितपुर के सामाजिक कार्यकर्ता सूर्यकांत त्रिपाठी के मुताबिक ऐसे हालात हो गए हैं कि नवंबर में भी बहुत सारे किसान खेती किसानी का काम छोड़कर खाद के लिए भाग रहे हैं।
वो कहते हैं, “ललितपुर मध्यप्रदेश के कई जिलों की सीमाओं से घिरा हैं जिस बजह खाद की कालाबाजारी जोरों पर हैं जिसका खामियाज़ा किसान भुगत रहे हैं वो खाद को परेशान हैं पर्याप्त खाद समय पर नहीं मिल पाई ऐसा पहली बार देखा हैं कि किसान खाद को परेशान हुआ।”
उर्वरक समस्या के लिए टोल फ्री नंबर जारी
यूपी में उर्वरक समस्याओं के लिए कृषि विभाग ने कृषि निदेशालय में कंट्रोल रुम बनाया है। 0522-2204531, 7839883079 है। इसके अलावा अगर प्रदेश में कोई दुकानदार या विक्रेता कालाबाजारी करता पकड़ा गया तो उस पर उर्वरक (अकार्बनिक, कार्बनिक, या मिश्रित) नियंत्रण आदेश 1985, एवं आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी।