आग लग जाने के बाद झुलसाती है सरकारी नियमों की आंच

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   23 May 2017 9:54 PM GMT

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आग लग जाने के बाद झुलसाती है सरकारी नियमों की आंचजानकीनगर गाँव में लगी आग के बाद के हालात।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। बाराबंकी जिले के जानकीनगर गाँव में रविवार को भीषण आग लग गई थी। जानकीनगर गाँव लखनऊ ज़िले से महज़ छह से सात किमी दूर है। इसके बावजूद आग बुझाने के लिए दमकल गाड़ियां 30 किमी दूर फतेहपुर फायर स्टेशन से मंगवाई गईं।

यहां पर सवाल यह उठता है कि क्या दमकल गाड़ियां लखनऊ जिले से नहीं मंगवाई जा सकती थीं। क्या आग से जल रहा गाँव अगर दूसरे ज़िले की सीमा में आता है, तो पास होने के बावजूद उस ज़िले से अग्निशमन गाड़ियां गाँव में नहीं भेजी जा सकती हैं। सिर्फ इसलिए क्योंकि वो दूसरा जिला है।

आग बुझाने के लिए जिले से भेजी जाने वाली दमकल गाड़ियों के चयन की बात कहते हुए जिला मुख्य अग्निशमन अधिकारी रमेश तिवारी बताते हैं,'' जिले में कहीं भी लगी आग को बुझाने के लिए प्राथमिक तौर पर जिले की ही दमकल गाड़ियों को घटनास्थल पर भेजा जाता है। अगर घटनास्थल से दूसरे जिले का फायर स्टेशन ज़्यादा पास है, तो ऐसी स्थिति में फास्ट अटेम्ट प्रोसेस के तहत दूसरे जिले से मदद ली जाती है।'' उन्होंने आगे बताया कि इस घटना के बारे में विस्तार से जानकारी नहीं मिली थी, इसलिए दमकल जिले के नज़दीकी फायर स्टेशन से ही भेजा गया।

दमकल विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश की राजधानी लखऩऊ का ही उदाहरण लें,तो लखऩऊ में केवल 24 दमकल की गाड़ियां हैं और कर्मचारियों की संख्या 313 हैं।

प्रदेश में कहीं भी आग लग जाने पर दमकल गाड़ियों का चयन ही एक मात्र समस्या नहीं है बल्कि आग लग जाने के बाद भी नुकसान का मुआवजा पाने के लिए लोगों को दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं। मुआवजे की प्रक्रिया लंबी होने के कारण लोगों को परेशान होना पड़ता है।

उन्नाव जिले के सफीपुर गाँव में रहने वाले विष्णुकांत (37 वर्ष) के घर में दो महीने पहले आग लग गई थी। आग में उनके घर में रखा पूरा सामान जलकर राख हो गया था। विष्णुकांत ने बताया, “आग लग जाने के बाद हमने तुरंत इसकी सूचना फायर ब्रिगेड को दी इसके बाद दमकल गाड़ी पहुंचने पर किसी तरह आग बुझाई गई थी।”

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उन्होंने आगे बताया ,''आग लगने के बाद सामान के नुकसान का मुआवजा मिलना सबसे मुश्किल काम होता है। आग बिजली के तार से लगी हो तो पहले विद्युत विभाग में ऐप्लीकेशन लगानी पड़ती है। इसके बाद एक्सइएन (अधीक्षण अभियंता) और तहसील प्रशासन की तरफ से लोग नुकसान की जांच करने आए। नुकसान का आंकलन कर रिपोर्ट शासन को भेज दी गई। इस प्रक्रिया में डेढ़ से दो महीने का समय लगा। दो महीने बाद प्रशासन की ओर से एक लाख बीस हज़ार रुपए की सहायता राशि प्राप्त हुई।''

अग्निशमन विभाग, उत्तरप्रदेश के मुताबिक वर्ष भर में होने वाली आग की घटनाओं में से 60 प्रतिशत आग की घटनाएं मार्च से जून माह के बीच में होती हैं। वर्ष 2015 में 30 हज़ार छोटी-बड़ी आग की घटनाओं की सूचना मिली थी। इनमें से अधिकतर खेतों में आग लगने की घटनाएं थीं।

सुल्तानपुर जिले के लंभुआ के लेखपाल अरुण सिंह ने बताया, "खेतों में लगने वाली आग पर बीघे के अनुसार और घरों में लगने वाली आग पर विद्युत विभाग की मदद से मुआवजा दिया जाता है। अगर खेतों में बिजली के तार से आगजनी का मामला होता है, तो मंडी परिषद और विद्युत विभाग की मदद से मुआवजा दिया जाता है।

कानपुर देहात जिले के संदलपुर ब्लॉक के पिंडार्थू गाँव के रहने वाले मूरत सिंह ( 54 वर्ष) ने बताया, दो महीने पहले गाँव के करीब 100 बीघा गेहूं के खेतों में भीषण आग से जल गए थे। गाँव के लेखपाल व एसडीएम ने गाँव आकर इसकी जांच भी की। इसके बाद 15 से बीस दिनों के अंदर ही किसानों को 20 से 25 बीघे के हिसाब से 15,000 रुपए का मुआवजा दिया गया था।

वहीं बाराबंकी जिले के झंझरा गाँव के निवासी रामकिसुन (52 वर्ष) ने बताया,''आगे चाहे जितनी भीषण हो मुआवजा सरकारी प्रक्रिया के हिसाब से ही दिया जाता है। पिछले हफ्ते हमारे घर पर आग लग गई थी। आग लगने के तुरंत बाद हमने लेखपाल को फ़ोन पर इसकी जानकारी दी। लेखपाल के जांच करने के 15 से 20 दिनों के बाद 1,500 रुपए मुआवजा मिला था, जबकि नुकसान इससे बहुत ज़्यादा हुआ था।''

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