एक आर्किटेक्ट के हवाले रहीं पांच हजार करोड़ की परियोजनाएं, एलडीए ने अब किया ब्लैकलिस्ट

Rishi MishraRishi Mishra   3 April 2017 7:35 PM GMT

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एक आर्किटेक्ट के हवाले रहीं पांच हजार करोड़ की परियोजनाएं, एलडीए ने अब किया ब्लैकलिस्टलखनऊ विकास प्राधिकरण।

लखनऊ। परियोजना की लागत बढ़ा-बढ़ा कर जनता की गाढ़ी कमाई से बना कोष खाली किया गया। लखनऊ विकास प्राधिकरण, राजकीय निर्माण निगम, सिंचाई विभाग, आवास विकास परिषद के निर्माणों में कुछ ऐसे ही खेल होते रहे। सत्ताशीर्ष से जुड़ी आर्किटेक्ट कंपनी ऑरकॉम करीब तीन साल तक कुछ इसी तरह से मनमानी करती रही।

इस कंपनी को प्रत्येक परियोजना की लागत का डेढ़ फीसदी हिस्सा अपने मेहनताने के तौर मिलना था। इसी वजह से कंपनी ने लागत को खूब बढ़ाया ताकि उसका डेढ़ फीसदी का हिस्सा बढ़ता जाए। ऐसा कर के इस कंपनी ने तीन साल में उप्र सरकार की एजेंसियों से करीब 100 करोड़ रुपए कमाए। मगर परियोजनाओं के बजट को दो से ढाई गुना तक बढ़ा दिया। कुल मिला कर इसी कंपनी की वजह से राज्य सरकार का अपव्यय करीब तीन हजार करोड़ तक पहुंच गया। इन गड़बड़ियों को अफसर आंख मूंद कर देखते रहे। कमीशनखोरी के लालच में बजट को बढ़ने दिया। अब जबकि कंपनी अपना ज्यादातर पेमेंट भी ले चुकी है तब एलडीए की ओर से कहा जा रहा है कि इस कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया जाएगा।

रिवर फ्रंट, जेपी एनआईसी, सीजी सिटी, अवध शिल्प ग्राम, जनेश्वर मिश्र पार्क, कैंसर इंस्टीट्यूट, पुलिस आफिस जैसे सभी परियोजनाओंके वास्तुविद् के तौर पर ऑरकॉम नाम की कंपनी को ही टेंडर दिए गए। कंपनी की समय समय पर डिजाइनिंग में किये गये बदलावके चलते काम में विलंब हुआ। बजट बढ़ा। अब एलडीए ने सरकार का बदलता रुख देख कर इस कंपनी को ब्लैकलिस्ट करने की घोषणाकी है।

पहले कभी नहीं किया काम, मगर एक साल में मिल गईं सभी परियोजनाएं

ऑरकॉम ने 2012 से पहले कभी भी उत्तर प्रदेश में काम नहीं किया था। मगर 2013 के बाद उसको करीब 1450 करोड़ के रिवर फ्रंट डवलपमेंट, 2000 करोड़ की सीजी सिटी, 800 करोड़ के जेपी सेंटर, 200 करोड़ के हुसैनाबाद हेरिटेज जोन, 300 करोड़, 600 करोड़ का अवध शिल्पग्राम के कैंसर इंस्टीट्यूट सिग्नेचर बिल्डिंग का काम दिया गया। विभिन्न विकास एजेंसियों से अधिकृत एक वरिष्ठ वास्तुविद् ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि, “ये बहुत असमान्य बात है।

एक ही फर्म को इतने बड़े बड़े प्रोजेक्ट एक साथ दे दिये गये। परियोजना लागत का डेढ़ फीसदी इस कंपनी को भुगतान किया जाता रहा। उदाहरण के तौर पर 300 करोड़ की जेपी सेंटर परियोजना के बजट को 800 करोड़ तक पहुंचा दिया गया है। जिससे तय है कि वास्तुविद् की नीयत में खोंट था। इसी तरह से रिवर फ्रंट डवलपमेंट परियोजना में भी कुछ ऐसा ही खेल हुआ। यहां ऐसे कामों की लागत बढ़ाई गई, जिसका सीधा असर वास्तुविद् के मेहनताने पर पड़े। गोमती स्वच्छता को लेकर काम नहीं किया गया। उससे वास्तुविद् पर कोई असर नहीं पड़ रहा था। ”

अब ब्लैक लिस्ट करने से क्या जब ज्यादातर पेमेंट हुआ

सूत्रों ने बताया कि, वास्तुविद् संस्था ऑरकॉम के कर्ताधर्ता सौरभ गुप्ता को एलडीए की विभिन्न परियोजनाओं को लेकर लगभग पूरा भुगतान किया गया है। पेमेंट अब नाममात्र के ही बचे हैं। प्राधिकरण के वीसी सत्येंद्र कुमार सिंह ने भले ही कंपनी को अब विभिन्न आरोपों में ब्लैक लिस्ट करने की घोषणा की हो, इससे अब कोई असर नहीं पड़ना है। कंपनी को बहुत होगा तो एलडीए के काम नहीं मिलेंगे। बाकी जगह यह कंपनी पाक-साफ रहेगी।

ऑरकॉम के काम में कई जगह अनियमितिताएं सामने आई हैं। कंपनी की वजह से बजट बढ़ा और समय से काम पूरा नहीं हो सका। इस वजह से कंपनी ब्लैकलिस्ट की जाती है।
सत्येंद्र कुमार सिंह, उपाध्यक्ष, लविप्रा

          

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