गोरखपुर : मेडिकल कॉलेज में 5 दिनों में हो चुकी है 60 बच्चों की मौत 

Arvind shukklaArvind shukkla   12 Aug 2017 1:15 PM GMT

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गोरखपुर : मेडिकल कॉलेज में 5 दिनों में हो चुकी है 60 बच्चों की मौत गोरखपुर बीबीडी अस्पताल का नजारा।

लखनऊ। गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में मासूम बच्चों की मौत के बाद पूरे देश में हंगामा मचा है। सोशल मीडिया में लोग भड़के हुए हैं। जिन बच्चों की मौत हुई है उनके माता-पिता सदमे तो जो भर्ती हैं, उनके तीमारदार सहमे हुए हैं।

शुक्रवार को गोरखपुर अचानक उस वक्त सुर्खियों में आया जब अस्पताल में पहले 20 फिर 30 बच्चों की मौत की ख़बर आई। दो दिन में हुई इऩ बच्चों की मौत के लिए आक्सीजन की कमी को जिम्मेदार बताया है। बताया जा रहा है आक्सीजन सप्लाई करने वाकी कंपनी का भुगतान नही हुआ है, 69 लाख रुपए का भुगतान न होने से कंपनी ने सप्लाई रोक दी, जिससे बच्चों की मौत हुई।

अस्पताल प्रशासन की रिपोर्ट जिसमें कहा गया है, 5 दिनों में 60 मौते हुईं।

य़े भी पढ़ें- गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में 7 बच्चों की मौत की वजह आक्सीजन की कमी नहीं- यूपी सरकार

गोरखपुर के डीएम राजीव रौतेला ने कहा कि आक्सीजन की कमी हुई थी, लेकिन अस्पताल प्रबंधन के पास विकल्प था, और सिलेंडर के द्वारा आपूर्ति की गई। सरकार के प्रवक्ता ने भी कहा मीडिया में चलाई जा रही रिपोर्ट फर्जी हैं और भ्रमित करने वाली है, मौतों की वजह अक्सीजन की सप्लाई बाधित होना नहीं है। लेकिन सोशल मीडिया में एक और रिपोर्ट वायरल हो रही है, जो आक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड ने अस्पताल प्रबंधन को लिखा है।

एक अगस्त को लिखे गए इस लेटर एमएलओ प्लांट के बकाया भुगतान और सप्लाई बाधित करने के संबंध में है। कंपनी ने लिखा है कि हमारे द्वारा आप को बताया गया है कि 63 लाख 65 हजार 702 रुपए लंबित है। लेकिन मरीजों की स्थिति को देखते हुए आपूर्ति सुनिश्चित की है, जिससे 4-5 दिन तक गैस प्लांट से आपूर्ति जारी रह सके। हम आपको पूर्व में भी सूचिक कर चुके हैं आईनाक्स कंपनी जिससे हम गैस लेते हैं, उसने भी भुगतान न होने पर भविष्य में गैस सप्लाई करने में असर्मथता जताई है। अत आपसे विनम्र निवेदन है उपरोक्त क्रम में हमारा भुगतान करना कराएं, भुगतान न होने की स्थिति में भविष्य में गैस सप्लाई सुनिश्चित करने में असमर्थ होंगे, जिसकी कोई जिम्मेदारी हमारी संस्था की नहीं होगी।

ये लेटर एक तारीख को कंपनी ने अस्पताल प्रबंधन को लिखा था। स्थानीय रिपोर्ट के मुताबिक योगी आदित्यनात 9 अगस्त को इस अस्पताल के दौरे पर पहुंचे थे और उस दौरान भी गैस की सप्लाई बाधित होने की ख़बर स्थानीय मी़डिया प्रकाशित कर रहा था। आरोप है कि अस्पताल प्रबंधन में मामले को लेकर मुख्यमंत्री के सामने लीपापोती में लगा रहा।

आक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी के द्वारा लिखा गया बकाया के संबंध में पत्र।

अगर आप ऊपर जारी रिपोर्ट देखें तो पता चलेगा कि विभिन्न बीमारियों से 7 अगस्त को 9 मौतें हुई, जबकि 8 को 12 और 10 तारीख को 23 मौते हुईं। गोरखपुर निवासी पत्रकार वेद प्रकाश ने बताया, “पिछले 48 घंटों में कुल तीस बच्चों की मौत हो गई थी, कल (बृहस्पतिवार) शाम से ही लिक्विड गैस नहीं थी। एवरेज में छह से सात बच्चों की मौतें होती हैं। लेकिन 30 मौतें सामान्य नहीं हैं।”

गोरखपुर के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरएस सिंह ने माना कि अक्सीजन की कमी हुई थी लेकिन उससे मौतों का कोई संबंध नहीं है, क्योंकि हमारे पास 50 सिलेंडर थे, जबकि 150 स्टोर में रखे थे।’ लेकिन स्थानीय लोग और जानकार 10 तारीख को एकाएक बढ़ी मौतों को स्वभाविक नहीं मान रहे। इंसेफ्लाइटस के खिलाफ पिछले कई वर्षों से मुहिम छेड़े हुए डॉक्टर आरएन सिंह ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, कि एक दिन में इनती मौतें सामान्य नहीं। 5-6 मौतों की अक्सर ख़बर आती है।

अस्पताल में भर्ती मरीज।

इस हादसे के बाद अपने बच्चों को खो चुके माता-पिता पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा है तो जिनके बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं वो बदहवास हैं। गोरखपुर निवासी अजय चंद कौशिक की बताते हैं, “तीन-चार दिन से अस्पताल में अफरातफरी है। पूरे वार्ड में कुल 23 से 24 बेड हैं। जिस पर एक एक बेड पर चार-चार बच्चे लिटाए जा रहे हैं। मेरे सामने एक बच्चा बेड से नीचे गिरा और उसकी मौत हो गई। उसे झाड़ पोछकर माता-पिता को दे दिया।” कौशिक की बेटी वहां भर्ती है।

वो आगे बताते हैं, “अस्पताल आने पर पहले ही फार्म भरा लिया जाता है कि इंफेक्शन या किसी अन्य वजह से मौत हो जाती है तो अस्पताल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं होगी।“ “हमने देखा कि पुलिस वैन में सुबह-सुबह पांच बजे आक्सीजन के सिलेंडर लाए जा रहे हैं बच्चों के माता-पिता को हफ्तों से मिलने नहीं दे रहे।” धीमी आवाज में वो कहते हैं।

शुक्रवार शाम हादसे के बाद अस्पताल से तीमारदारों को बाहर निकालते पुलिसकर्मी।

1977 में पहली बार मिला था इंसेफेलाइटिस का (यानी दिमागी बुखार) का केस

इंसेफेलाइटिस जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में दिमागी बुखार भी कहा जाता है। भारत में इसका पहला मामला 1977 में आया था। भारत ने पोलियो, चेचक समेत कई असाध्य कहे जाने वाले रोगों पर लगाम लगा ली, लेकिन पूर्वांचल में इस इस बीमारी से मौत का सिलसिला जारी है। हर साल यहां मौत का मौसम आता है। गोरखपुर, संतकबीर नगर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, महराजगंज और कुशीनगर समेत पूर्वांचल के कई जिलों में जुलाई से लेकर अक्टूबर तक खौफ में गुजरते हैं। ये बीमारी दो प्रकार की होती है। जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) ये मच्छरों के काटने से होती है। जबकि एईस बीमारी दूषित पानी से होती है। आमतौर पर जब बरसात खत्म हो जाती है तो सितंबर से अक्टूबर के महीनें में ये बीमारी सबसे ज्यादा तांडव करती है। लेकिन पूर्व यूपी के मरीजों में दशहत जून-जुलाई से शुरु हो जाती है। समाचार चैनल एबीपी न्यूज के मुताबिक इस बीमारी से साल में करीब 2000 मौते होती हैं, जिसमें सबसे ज्यादा मामले गोरखपुर के होते हैं।

न्यूज चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में ही इसका इलाज होता है। और बिहार और नेपाल तक के मरीज आते हैं। नाम न छापने की शर्त पर की डॉक्टरों ने बताया कि संसाधनों का बहुत अभाव है और कई बार 8-10 डॉक्टर के जिम्मे 400 मरीज तक होते हैं।

अस्पताल के इस वार्ड की तस्वीरें देख आप सकते में पड़ जाएंगे।

         

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