गाँव कनेक्शन के पांच वर्ष पूरे होने पर हम आपके लिए उन खबरों को दोबारा पोस्ट कर रहे हैं जिनका सरोकार सीधे आप से रहा है। जिन खबरों ने समाज की आवाज बुलंद की, जिसने हमें सोचने मजबूर किया। उन चित्रों को भी हम शेयर करेंगे जो आपको कुछ कहने और सोचने पर मजबूर कर देंगे।
हम सिर्फ गाँवों की समस्याओं को ही नहीं लिखते बल्कि उन मुद्दों पर भी चर्चा करते हैं जिस पर आमतौर पर लोग बात करने से कतराते हैं। इस वर्ष 28 मई को उत्तर प्रेदश के 25 जिलों में हजारों महिलाओं और किशोरियों के बीच माहवारी दिवस पर चर्चा की गयी।
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महिलाओं की ज़िंदगी से जुड़ा अहम मुद्दा, जिस पर खुल कर बात ही नहीं होती। बड़े शहरों में हालात जरूर थोड़े बदले हैं लेकिन गांव और कस्बों में अभी ये चुप्पी का मुद्दा है, शर्म और संकोच से जोड़ कर देखा जाता है। गाँव की महिलाएं न घर में बात कर पाती हैं, न ही अपनी बेटियों को इस बारे विस्तार से बता पाती हैं, जिस कारण गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाती हैं। आप को जानकर हैरानी होगी कि सिर्फ साफ सफाई के अभाव में ही एक चौथाई महिलाओं को यूरिन और फंगल इंफेक्शन हो जाता है।
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गाँव कनेक्शन फाउंडेशन ने ‘विश्व माहवारी दिवस’ के अवसर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में माहवारी को लेकर उन मिथकों को दूर करने का प्रयास किया जिसको लेकर वो कभी बात नहीं करतीं थीं। स्त्री रोग विशेषज्ञ की मदद से इन्हें न सिर्फ कई तरह की जानकारियां दी गयीं बल्कि सेनेटरी पैड भी डिस्ट्रीब्यूट कलिया गये। पैड का इस्तेमाल और निस्तारण कैसे करना है इस पर भी इन्हें जानकारी दी गयी।
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इस खास मुहिम के बाद सिद्धार्थनगर के भरौली गाँव की कम्यूनिटी जर्नलिस्ट त्रिशला पाठक बताती हैं कि अब माहवारी को लेकर हमारे यहां की महिलाओं की सोच में काफी बदल गई है। इस अभियान का हिस्सा बनने के बाद त्रिशला अपने गाँव की महिलाओं को जागरूक करने लगी हैं। शुरुआती दौर में सब इनका मजाक बनाते थे लेकिन अब इनके प्रयासों की सभी सराहना करते हैं।
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ये खबर मूल रूप से (28 मई 2016) को साप्ताहिक गाँव कनेक्शन में प्रकाशित हुई थी।