तो क्या साइकिल पर सवार होगा हाथी, मायावती के बयान के बाद अटकलें तेज 

Ashwani NigamAshwani Nigam   14 April 2017 8:49 PM GMT

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तो क्या साइकिल पर सवार होगा हाथी, मायावती के बयान के बाद अटकलें तेज अम्बेडकर जयंती के अवसर पर मायावती और अखिलेश यादव ने बाबा साहब अम्बेडकर को श्रद्धांजलि दी।

लखनऊ। अम्बेडकर जयंती के दिन लखनऊ की सड‍़कों पर जगह-जगह फहरा रहा नीला और लाल-हरा झंडा लोगों के लिए चर्चा का केन्द्र बना रहा। शुक्रवार गोमती नगर स्थित अम्बेडकर पार्क में भव्य अम्बेडकर जयंती का आयोजन किया गया था। ऐसे मे सामाजिक परिवर्तन स्थल से लेकर हजरतगंज तक बसपा की तरफ भव्य बैनर और झंडे लगे थे, लेकिन इन झंडों के साथ सपा का साइकिल निशान वाला लाल-हरा झंडा भी लगा हुआ था। सपा-बसपा के पास आने की इस चर्चा की रही-सही कसर बसपा सुप्रीमो के उस बयान से भी बल मिला जिसमें उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के बचाने के लिए बसपा किसी से भी हाथ मिला सकती है।

लखनऊ में अम्बेडकर जयंती समारोह में मायावती ने कहा ‘‘देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए मैं कदम पीछे खींचने वाली नहीं हूं। हमारी पार्टी भाजपा द्वारा ईवीएम की गड़बड़ी के खिलाफ बराबर संघर्ष करेगी और इसके लिए भाजपा विरोधी दलों से भी हाथ मिलाना पड़ा तो अब उनके साथ भी हाथ मिलाने में परहेज नहीं है।'' उनके इस बयान के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।
माना जा रहा है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के विजयरथ को रोकने के लिए बसपा और सपा साथ में आ सकती हैं।

राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसकी पहल भी कर रहे हैं। यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद लालू यादव लगातार इस प्रयास में हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी को रोकने के लिए समान विचारधारा वाले धर्मनिरपेक्ष दलों का गठबंधन बने। तीन दिन पहले ही दिल्ली में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और ममता बनर्जी की एक बैठक भी हुई थी। यूपी में अगर सपा, बसपा और कांग्रेस साथ आकर लोकसभा का चुनाव लड‍़ते हैं तो साल 2019 में बीजेपी के लिए यूपी मुश्किल भरा हो सकता है। 2014 के लोकसभा चुनाव और हालिया विधानसभा चुनाव में यूपी में बड़ी जीत पाने वाली बीजेपी के लिए आने वाले लोकसभा में जीत की राहें मुश्किल हो जाएंगी। आंकड़े भी इस बात की गवाही दे रहे हैं।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 39.7 प्रतिशत वोट मिले हैं। बीजेपी का गठबंधन सहयोगी अपना दल को 1.0 प्रतिशत और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 0.7 प्रतिशत वोट मिला। ऐसे में बीजेपी गठबंधन कुल 41.4 प्रतिशत वोट मिला।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अकेले अपने दम पर 312 और सहयोगियों के साथ मिलकर 325 सीटे जीतकर रिकार्ड बनाने वाली बीजेपी की जीत का बड़ा कारण मोदी मैजिक को बताया जा रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नजर बनाए रखने वाले राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव की तर्ज पर सपा, कांग्रेस और बसपा महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ ती तो बीजेपी के लिए यूपी जीतना मुश्किल हो जाता।
राजनीतिक विश्लेषक अमित मिश्रा ने बताया '' उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणामों को विश्लेषण करने पर साफ दिखता है कि मोदी लहर के बाद भी बसपा और सपा को मिले वोटों में गिरावट कम है। आंकड़ों के अनुसार इस बार के चुनाव में बीजेपी को जहां अकेले 3 करोड़ 44 लाख 3 हजार 39 वोट मिले हैं वहीं बसपा को 1 करोड़ 92 लाख, 81 हजार, 352 वोट मिले जबकि सपा को 1 करोड़ 89 लाख, 23 हजार 689 वोट मिले। इसके साथ ही कांग्रेस को भी 54 लाख, 16 हजार 324 वोट मिले।"

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 39.7 प्रतिशत वोट मिले हैं। बीजेपी का गठबंधन सहयोगी अपना दल को 1.0 प्रतिशत और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 0.7 प्रतिशत वोट मिला। ऐसे में बीजेपी गठबंधन कुल 41.4 प्रतिशत वोट मिला। जबकि बहुजन समाज पार्टी को 22.2, समाजवादी पार्टी को 21.8 प्रतिशत वोट मिला। कांग्रेस को 6.2 प्रतिशत वोट मिला। अगर इन तीनों दलों के मिले वोटों को जोड़ लें तो इनको कुल 50.2 प्रतिशत वोट मिले। ऐसे में अगर सपा, बसपा और कांग्रेस महागठबंधन बनाकर चुनाव में उतरती तो जो हाल अभी इन दलों को है वहीं हाल बीजेपी और उसके सहयोगी दलों का हो सकता था।

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2014 के लोकसभा में लालू की आरजेडी और नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का सूपड़ा साफ हो गया था। लेकिन इस हार से सबक लेते हुए एक साल बाद हुए नवंबर 2015 के विधानसभा चुनाव में धुर विरोधी लालू यादव और नीतीश एक साथ आकर गठबंधन बनाया और इस गठबंधन का महारूप देने के लिए कांग्रेस को शामिल किया। बिहार विधानसभा चुनाव में जहां अमित शाह अपने आजमाए और सफलता की सौ प्रतिशत गारंटी वाले सोशल इंजीनियरिंग को साथ चुनाव लड़ा वहीं महागठबंधन एक साथ लड़ा।

इस चुनाव में अकेले बीजेपी को सबसे ज्यादा वोट 34 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन वो 53 सीटों पर ही सिमट गई। वहीं राष्ट्रीय जनता दल, जेडीयू और कांग्रेस ने मिलकर 42 प्रशिशत मतों पर कब्जा जमाते हुए 178 सीटों पर जीत दर्ज की। बिहार की इस हार से जहां बीजेपी ने सबक लिया और यूपी का किला फतह किया। वहीं सपा और बसपा इसको भांपने में नाकाम रही। ऐेसे में अब माना जा रहा है कि यह पार्टियां इस हार से सबक लेते हुए आने वाले 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी के विजय रथ को रोकने की तैयारी में लग गई हैं।

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