शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)। देश की आजादी और समाज सुधार के लिए हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के त्याग और बलिदान को भला कैसे भुलाया जा सकता है। ऐसे ही एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे हैं सत्यदेव शास्त्री, जिन्होंने देश की आजादी के बाद महिलाओं को सामाजिक आजादी दिलाने के लिए गाँव में कन्या गुरुकुल की स्थापना की।
क्रांतिकारियों और शहीदों की नगरी कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले के रुद्रपुर गाँव में यह कन्या गुरुकुल आज भी चल रहा है। बड़ी बात यह है कि इस कन्या गुरुकुल में न सिर्फ शाहजहांपुर जिले के, बल्कि दूसरे प्रदेशों से आईं लड़कियां भी शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।
आज भले ही स्वतंत्रता सेनानी सत्यदेव शास्त्री इस दुनिया में नहीं हैं, मगर उनकी सबसे बड़ी बेटी कुमारी श्री ने इस गुरुकुल के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। करीब 82 साल की कुमारी श्री आज भी इस गुरुकुल को आगे बढ़ाने और समाज सुधार के लिए काम कर रही हैं।
रुद्रपुर गाँव में बने इस कन्या गुरुकुल में पढ़ा रहीं आचार्या चंचल शास्त्री ‘गाँव कनेक्शन’ से बताती हैं, “गुरुकुल में बालिकाओं की दिनचर्या सुबह चार बजे से शुरू होती है और दिन की शुरुआत प्रार्थना से होती है। इन बालिकाओं को योग-प्राणायाम के साथ लाठी चलाना, तलवार चलाना, बंदूक चलाना और जूडो-कराटे की शिक्षा भी दी जाती है ताकि भारत निर्माण में ये बालिकाएं अपनी भूमिका निभा सकें।”
सिर्फ इतना ही नहीं, कन्या गुरुकुल में हर दिन कन्याओं को यज्ञ करवाया जाता है और वैदिक मंत्रों की शिक्षा दी जाती है। इसके अलावा इन बालिकाओं की शिक्षा और रहने-खाने के लिए भी नि:शुल्क व्यवस्था है।
आचार्या चंचल शास्त्री बताती हैं, “इन बालिकाओं को अलग-अलग विषय पढ़ाने के लिए बाहर से शिक्षक भी आते हैं, इसके अलावा बैडमिंटन, फुटबॉल और क्रिकेट जैसे दूसरे खेलों की व्यवस्था की गयी है। हमारा उद्देश्य है कि हम इन बालिकाओं को शिक्षा के साथ संस्कार भी दे सकें।”
इस कन्या गुरुकुल की स्थापना सबसे पहले शाहजहांपुर जिले के जलालाबाद तहसील के धियरिया गाँव में हुई। मगर कुछ घटनाओं की वजह से 15 जून 1983 को इसका स्थान बदलते हुए तिलहर तहसील से तीन मील पूरब में बसे रुद्रपुर गाँव में करना पड़ा।
गुरुकुल में अध्यापन का कार्य देख रहे अनुभव आर्य ‘गाँव कनेक्शन’ से बताते हैं, “शाहजहाँपुर जिले के आस-पास जिलों में भी कोई गुरुकुल नहीं है। इसलिए यहाँ पर सिर्फ दूसरे जिलों से ही नहीं, यहाँ तक कि दूसरे प्रदेशों से भी बालिकाएं आती हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सत्यदेव शास्त्री ने समाज में कन्याओं की शिक्षा पर विशेष रूप से बल दिया।”
गाँव के इस कन्या गुरुकुल में पढ़ने वाली बालिकाएं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पुत्री कुमारी श्री को बुआ जी कहकर पुकारती हैं। कुमारी श्री को इस बात का गर्व है कि इस कन्या गुरुकुल से निकलीं कई बालिकाओं ने समाज में अपना अलग स्थान बनाया है।
कुमारी श्री (82 वर्ष) ‘गाँव कनेक्शन’ से बताती हैं, “हमारे गुरुकुल से कई बेटियां पढ़कर बहुत आगे निकली हैं। कई बड़े पदों पर हैं और कई ने शोध क्षेत्र में अपना परचम लहराया है। यहाँ की बच्चियों की समस्या हमारी समस्या है। लोग हमें अपने बच्चे सौंप जाते हैं। इसलिए मैं अंतिम सांस तक अपने पिता द्वारा स्थापित इस गुरुकुल की सेवा करती रहूँगी।”
कुमारी श्री ब्रम्हचारिणी हैं और उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर इस गुरुकुल की जिम्मेदारी निभाई।
गुरुकुल में बालिकाओं को पढ़ा रहीं चंचल शास्त्री कहती हैं, “गुरुकुल दान के आधार पर चलते हैं और जब नारी सशक्तिकरण की बात होती है तब हमें ऐसे शिक्षा केंद्र पर भी ध्यान देना होगा जहाँ गरीब घरों की कन्याएं भी आगे बढ़ रही हैं। सरकार को चाहिए कि वह इनकी हर तरीके से मदद करे ताकि इस शिक्षा पद्धति को बचाया जा सके।”
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