मौरंग की कमी से धीमे पड़े निर्माण कार्य, मालिक और मजदूर दोनों को परेशानी

Rajeev ShuklaRajeev Shukla   9 April 2017 4:16 PM GMT

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मौरंग की कमी से धीमे पड़े निर्माण कार्य, मालिक और मजदूर दोनों को परेशानीआवंटित खदानों के पट्टों को निरस्त करने के बाद से मौरंग का मंडी में अकाल सा पड़ गया है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

कानपुर। लेबर मंडी में रामसिंह रोज काम की तलाश में जाते हैं, लेकिन पिछले 15 दिनों में उन्हें केवल नौ दिन ही काम मिला है वो मजदूरी करते हैं। यही हाल दिनेश, लाला राम और राज मिस्त्री राम मिलन और रूद्र किशोर का भी है। अवैध खनन पर रोक लगने और सारे आवंटित खदानों के पट्टों को निरस्त करने के बाद पिछले साल दिसंबर से मौरंग का मंडी में अकाल सा पड़ गया है और जो मौरंग दूसरे प्रदेशों से आ रही है, वह काफी महंगी पड़ती है। इसलिए इस समय लोग मकान या दुकान बनवाने से बच रहे हैं।

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कानपुर में रोज दिहाड़ी का काम करने वाले हजारों मजदूर और राज मिस्त्री रोज काम की आस में घर से तो निकलते हैं, लेकिन उनको यह नहीं पता होता है कि आज काम मिलेगा भी की नहीं। राज मिस्त्री का काम करने वाला राम मिलन (48 वर्ष) अंगौछे से पसीना पोछते हुए बताते हैं, “पिछले 32 वर्षों से यही काम कर रहा हूं पर ऐसे दिन कभी नहीं देखे, बाजार में काम ही नहीं है।”

वह आगे बताता हैं, “अगर यही हाल रहा तो कानपुर छोड़ कर कहीं और जाना पड़ेगा क्योंकि अब और कुछ तो हमसे होगा नहीं और यहां रहे तो घर वालों के लिए रोटी की भी जुगाड़ न हो पाएगी।”

आज के समय कानपुर में मध्यप्रदेश के गिरवा घाट से मौरंग आ रही है जो की काफी महंगी पड़ती है। जो 12 चक्का गाड़ी मौरंग बाजार में पहले 45,000 की पड़ती थी वो आज के समय में 1,50,000 से ऊपर पड़ रही है।”
अतुल सिंह, आदित्य धनराज कंस्ट्रक्शन, कानपुर

कानपुर देहात के रूरा गाँव से रोज मजदूरी के लिए कानपुर आने वाले राम सिंह (27 वर्ष) का भी यही हाल है। हाथ में टिफ़िन थामे राम सिंह बताते है, “रोज आने जाने में 50 रुपए का खर्च होता है। गाँव में तो मजदूरी कर नहीं सकता हूं इसलिए कानपुर आ जाता हूं। पिछले 15 दिन में केवल नौ दिन ही काम मिला है।”ऐसा नहीं है की यह हाल केवल मजदूर और राज मिस्त्री का है। ट्रक मालिक भी इस बंदी से अछूते नहीं हैं।

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