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मनरेगा: उत्तर प्रदेश में मजदूरों को क्या महीने में सिर्फ छह से आठ दिन ही काम मिल रहा है?

गांवों में मजदूरों की संख्या ज्यादा है और उसके अनुसार काम न होने की वजह से सभी मजदूरों को रोजगार देना ग्राम प्रधानों के लिए भी कठिन हो रहा है। दूसरी तरफ मनरेगा में कम दिन काम मिल पाने के बाद दोबारा काम मिलने के लिए मजदूरों को लम्बा इंतजार करना पड़ रहा है।
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“पिछले महीने मनरेगा में हमको सिर्फ तीन दिन काम मिला, गाँव में चक रोड का काम चल रहा था, अब वहां 70 से ज्यादा आदमी काम करेगा तो जो काम 15 दिन चलना चाहिए वो सिर्फ चार दिन में ही खत्म हो गया, तो ज्यादा दिन काम कहाँ मिलेगा,” उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में आराजीलाइन ब्लॉक के कचनार ग्राम पंचायत में मनरेगा में मजदूरी कर रहे राकेश कुमार (43 वर्ष) बताते हैं।

कचनार गांव के राकेश को ही मनरेगा में सिर्फ तीन दिन काम नहीं मिला, बल्कि उनके जैसे और भी मजदूर हैं जिन्हें लॉकडाउन के समय मनरेगा में कम दिन ही काम मिल सका है। राकेश कहते हैं, “कई मजदूर हैं जिन्हें सिर्फ पांच से छह दिन काम मिला है मनरेगा में, ज्यादा से ज्यादा हफ्ता भर, मगर इससे ज्यादा नहीं। मैं खुद 20 तारीख (मई) से खाली बैठा हूँ।”

देश में लॉकडाउन के दौरान एक ओर सरकार जहाँ गांवों पहुंचे प्रवासी मजदूरों को भी मनरेगा में रोजगार देने की कवायद कर रही है, दूसरी ओर गाँव में काम कर रहे मजदूर मान रहे हैं कि सिर्फ मनरेगा के सहारे जीवनयापन नहीं हो सकता है। ऐसे में सवाल यह है कि मनरेगा में काम की मांग को बढ़ाए बगैर गांवों में इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों को कैसे रोजगार दिया जा सकेगा?

गाँव में राकेश अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं। उनके पास छोटा सा खेत है जहाँ वो कुछ सब्जियां उगा लेते हैं, इसके अलावा वो पैसे कमाने के लिए पूरी तरह से मजदूरी पर निर्भर हैं। राकेश मानते हैं कि अभी भी अगर सरकारी राशन नहीं मिले तो उनकी भूखों मरने जैसी स्थिति होती क्योंकि अभी भी उनके पास हाथों में पैसा नहीं है। 

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बड़ी संख्या में गांवों पहुंचे प्रवासी मजदूरों को मनरेगा में रोजगार दिलाने की कवायद में उत्तर प्रदेश सरकार। फोटो : अरविंद शुक्ला 

राकेश बताते हैं, “जो मनरेगा में तीन दिन काम मिला उसका पैसा भी अभी तक नहीं आया है, खेती भी नहीं कर पाया क्योंकि पानी चाहिए, खेत में पानी के लिए 70 रुपए प्रति घंटा के हिसाब से देने लायक भी मेरे पास पैसे नहीं है, तो कुछ उगा भी नहीं सके, अब हाथ में तो पैसा चाहिए। अगर गाँव में काम नहीं मिला तो शहर ही जाना पड़ेगा, कम से कम दिहाड़ी मजदूरी करके रोज का पैसा तो मिलेगा।” 

एक तो हमारे गाँव में बहुत प्रवासी लोग वापस आये हैं, अब सबको मनरेगा में काम देना भी मुश्किल है, अभी गाँव में चार-पांच जगह चक रोड बनाने का काम चल रहा था, जो जल्द ही खत्म हो गया, क्योंकि काम के लिए इतने मजदूर हैं। 

विजय कुमार सिंह, ग्राम प्रधान, कचनार ग्राम पंचायत 

मनरेगा में ज्यादा दिन तक काम न मिलने की बात ग्राम प्रधान भी स्वीकार करते हैं। कचनार ग्राम पंचायत के प्रधान विजय कुमार सिंह बताते हैं, “एक तो हमारे गाँव में बहुत प्रवासी लोग वापस आये हैं, अब सबको मनरेगा में काम देना भी मुश्किल है, अभी गाँव में चार-पांच जगह चक रोड बनाने का काम चल रहा था, जो जल्द ही खत्म हो गया, क्योंकि काम के लिए इतने मजदूर हैं।”

प्रधान कहते हैं, “तीन जगह चक रोड का और काम होना है गाँव में, अभी दस दिन बाद गाँव में ऐसी स्थिति होगी कि मनरेगा में कोई काम नहीं होगा, तब क्या होगा, कैसे रोजगार देंगे।”

ऐसी स्थिति में ग्राम प्रधान भी मुश्किल में हैं। गांवों में मजदूरों की संख्या ज्यादा है और उसके अनुसार काम न होने की वजह से सभी मजदूरों को रोजगार देना उनके लिए भी कठिन होगा। दूसरी तरफ मनरेगा में कम दिन काम मिल पाने के बाद दोबारा काम मिलने के लिए मजदूरों को लम्बा इंतजार करना पड़ रहा है। 

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केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के समय ही गांवों में मनरेगा का काम शुरू करने की दी थी अनुमति। फोटो : यश सचदेव  

मनरेगा की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार वाराणसी के अराजीलाइन ब्लॉक के 117 गांवों में आठ जून तक 14,571 व्यक्ति सक्रिय रूप से मनरेगा में काम कर रहे हैं। जबकि इसी तारीख में अराजीलाइन ब्लॉक में 1,06,886 मानव दिवस सृजित किये गए, यानी कि यहाँ मनरेगा में प्रति व्यक्ति औसतन सात दिन रोजगार दिया गया। जबकि मनरेगा में काम अप्रैल माह से ही शुरू करने की अनुमति मिल चुकी है।

वाराणसी में मनरेगा में मजदूरों की काम मिलने की स्थिति के बारे में मनरेगा मजदूर यूनियन के संयोजक सुरेश राठौर बताते हैं, “सरकारी आंकड़ों और जमीनी हकीकत में जमीन-आसमान का अंतर है और जमीनी हकीकत यह है कि हमारे अराजीलाइन ब्लॉक में कुल 117 गांवों में से पांच गाँव में ही लोगों को मनरेगा में 20 से 25 दिन काम मिला है, जबकि 112 गाँव ऐसे हैं जहाँ ज्यादातर मजदूरों को अब तक पांच से छह दिन ही काम मिल पाया है। सात दिन काम मिलना भी बहुत कम है।” 

अभी दो बड़ी समस्याएं आ रही हैं, एक तो काम मिलने के बाद भी मजदूरों को देर से भुगतान मिल रहा है, इससे उनके हाथ में पैसा नहीं है, कम से कम सरकार को ऐसे समय में तुरंत भुगतान की व्यवस्था करनी चाहिए थी, दूसरा गाँव में अगर काम ही कम है तो जो मजदूर गाँव पहुंचे हैं, उनको कितने दिन काम मिल सकेगा।

सुरेश राठौर, जिला अध्यक्ष, मनरेगा मजदूर यूनियन, वाराणसी   

“अभी दो बड़ी समस्याएं आ रही हैं, एक तो काम मिलने के बाद भी मजदूरों को देर से भुगतान मिल रहा है, इससे उनके हाथ में पैसा नहीं है, कम से कम सरकार को ऐसे समय में तुरंत भुगतान की व्यवस्था करनी चाहिए थी, दूसरा गाँव में अगर काम ही कम है तो जो मजदूर गाँव पहुंचे हैं, उनको कितने दिन काम मिल सकेगा,” सुरेश कहते हैं।

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने लॉकडाउन के दौरान अपने गाँव पहुँच रहे प्रवासी मजदूरों को मनरेगा में रोजगार देने के लिए अब तक कई कदम उठाए हैं। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने मई के अंत तक प्रदेश में 50 लाख मजदूरों को मनरेगा में प्रतिदिन रोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया था। हालाँकि आठ जून तक यह आंकड़ा मनरेगा की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार सिर्फ 47.85 लाख लोगों तक ही पहुँच सका।

दूसरी ओर मनरेगा में कम दिनों के लिए काम मिलने से मजदूर अभी भी आर्थिक तंगी से जूझते नजर आ रहे हैं। वाराणसी से करीब 400 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले में भी गांवों में मजदूर कम दिनों के लिए ही काम मिलने से परेशान नजर आये। 

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उत्तर प्रदेश में ग्रामीण मजदूरों को मनरेगा में मिलती है साल में 100 दिन रोजगार की गारंटी।   फोटो : यश सचदेव 

सीतापुर जिले के पिसावां ब्लॉक के अल्लीपुर गाँव की रामबेती पिछले कई सालों से मनरेगा में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। रामबेती बताती हैं, “हमारे गाँव में जहाँ पिछले साल 100 जॉब कार्ड धारक थे, उनमें से 85 लोग सक्रिय तरह से मनरेगा में काम करते थे, मगर लॉकडाउन के दौरान गाँव में करीब 250 मजदूर बढ़ गए हैं, अब जो काम दस दिन तक चलता था वो तीन से चार दिन तक ही चल रहा है, हमें खुद अभी तक सिर्फ सात दिन काम मिला है।”

“एक तो पहले से ही ग्राम पंचायत में काम की कमी थी, उसके बाद जो काम मिल रहा है वो भी कम दिनों के लिए है, कम से कम सरकार को हर महीने 12 से 15 दिन काम देना चाहिए, अभी सात दिन के काम में सिर्फ 1400 रुपए मिले हैं, इसमें कैसे खर्चा चलाएंगे,” रामबेती कहती हैं। उत्तर प्रदेश में मनरेगा में मजदूरी 201 रुपए निर्धारित की गयी है।

लॉकडाउन के दौरान सीतापुर के इस क्षेत्र में कोरोना मरीज सामने आने के बाद अप्रैल में मनरेगा में काम नहीं शुरू हो सका था। रामबेती की ग्राम पंचायत में मई से मनरेगा के तहत सड़क और खेतों की मेड़बंदी का काम शुरू हुआ है। रामबेती ने ग्राम पंचायत में काम और बढ़ाने के लिए हाल में ग्राम रोजगार सेवकों और अधिकारियों से भी चर्चा की थी। 

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लॉकडाउन के दौरान गावों में मजदूर ज्यादा और काम काम दिन मिलने से बढ़ी मजदूरों की मुश्किलें।  

“हम लोगों ने अधिकारियों से कहा कि हम लोगों को गाँव में बड़ा काम दिलाया जाए, क्योंकि काम कम है और मजदूर बहुत ज्यादा हैं, हमारे पास की प्रखरपुर ग्राम पंचायत में जहाँ पहले 200 मजदूर थे, आज 400 से ज्यादा मजदूर वहां मनरेगा में काम कर रहे हैं, तो कैसे मजदूरों की ज्यादा दिन काम मिलेगा,” रामबेती कहती हैं।

उत्तर प्रदेश में 1400 से भी अधिक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों, बसों और अन्य साधनों से अब तक 30 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर लॉकडाउन के समय वापस लौटे हैं। राज्य सरकार इन प्रवासी मजदूरों की स्किल मैपिंग कर इनके लिए प्रदेश में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रयास कर रही है। इसके अलावा इन मजदूरों को गांवों में मनरेगा में काम दिलाने के लिए नए जॉब कार्ड भी तेजी से बनाये जा रहे हैं। मगर मनरेगा में काम का दायरा न बढ़ाए जाने से इन मजदूरों को कम दिन ही काम मिल पा रहा है। ऐसे में पहले से काम कर रहे मजदूरों की भी दिक्कतें बढ़ गयी हैं।

देश में मनरेगा मजदूरों के अधिकारों को लेकर काम कर रही नरेगा संघर्ष मोर्चा में उत्तर प्रदेश से जुड़ीं ऋचा सिंह बताती हैं, “इस संकट के समय में जरूरत यह है कि गाँव में मजदूर मनरेगा में जितने दिन का काम मांगे, उन्हें दिया जाए, इसके लिए सरकार को मनरेगा को अन्य विभागों से गांवों में और भी बड़े काम दिलाने की जरूरत थी जहाँ मजदूर को ज्यादा दिन रोजगार मिले, मगर ऐसे तो नहीं लगता कि मनरेगा में हर मजदूर को सरकार 100 दिन रोजगार की गारंटी दे पाएगी।”

“हम पहले से कहते आये हैं कि मनरेगा में मजदूरों को 150 से 200 दिन का काम साल में दिया जाना चाहिए, ज्यादा मानव दिवस मजदूरों के लिए गांवों में सृजित होंगे और समय से भुगतान मिलेगा तो गांवों में मनरेगा से स्थिति और बेहतर होगी, यह ऐसा समय है जब सरकार मनरेगा को नया जीवन दे सकती है,” ऋचा सिंह कहती हैं।  

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