समायोजन और सेवा प्रदाता भर्ती के खिलाफ मनरेगा के संविदा कर्मचारियों का प्रदर्शन

मनरेगा के संविदा कर्मचारी लखनऊ में अपनी मांगों को लेकर धरना दे रहे हैं। ये कर्मचारी अपना मानदेय बढ़ाने, रोजगार सेवकों को समायोजित करने और सेवा प्रदाता भर्ती पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं।
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लखनऊ (यूपी)। मनरेगा में संविदा पर कार्यरत चार संवर्गों के हजारों संविदा कर्मचारियों ने अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन शुरु कर दिया है। मनरेगा के रोजगार सेवक, तकनीकी सहायक, लेखाकार व अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी, लखनऊ के ईको गार्डन में अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं।

पिछले काफी समय से सेवा प्रदाता (सर्विस प्रोवाइडर) के जरिए होने वाली भर्तियों का विरोध और समायोजन की मांग को लेकर संघर्ष करने वाले मनरेगा के संविदा कर्मियों ने लखनऊ में आंदोलन शुरु किया है। 17 अगस्त से लखनऊ में जारी धरना-प्रदर्शन में प्रदेशभर के मनरेगा संविदा कर्मचारी शामिल हो रहे हैं।

यूपी के कौशांबी जिले से लखनऊ में प्रदर्शन करने पहुंचे रोजगार सेवक जितेंद सिंह मुताबिक वे लोग पिछले 14 वर्षों से विभाग में कार्यरत हैं लेकिन उन्हें आज तक भी महज 6000 रुपए का भत्ता मिलता है।

जितेंद्र सिंह कहते हैं, “हमें कई बार बताते हुए भी शर्म आती है कि हमें मात्र 6000 रुपए का मानदेय मिलता है। वो भी कभी समय पर नही मिलता। पैसों की तंगी की वजह से हमें और हमारे परिवार को जलालत झेलनी पड़ती है। किसी भी सरकार ने अभी तक मनरेगा के संविदाकर्मियों की स्थिति पर ध्यान नहीं दिया। प्रदेश के 37 हजार ग्राम रोजगार सेवक औऱ अन्य संवर्ग मिलाकर 45 हजार मनरेगा संविदा कर्मी भुखमरी की कगार पर खड़े हैं।”

इको पार्क में प्रदर्शऩ करते मनरेगा के संविदा कर्मचारी। फोटो- अश्वनी द्विदेदी

इसी आंदोलन में शामिल रोजगार सेवक रुमा सिंह सवाल पूछती है, “मेरे परिवार में 2 बच्चे और बुजुर्ग सास-ससुर है। उनका खाना पीना और दवा इलाज में खर्च होता है। इन 6000 में खर्च कैसे चलेगा। महंगाई बढ़ती जा रही है। मैं 6000 रुपए देती हूं कोई मेरे घर का खर्च चालकर दिखाए।”

प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे रोजगार गारंटी परिषद, ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार के पूर्व सदस्य संजय दीक्षित गांव कनेक्शन को बताते हैं, “मनरेगा में करीब 45000 संविदा कर्मी हैं। जिन्हें बेहद कम मानदेय मिलता है। मुख्यमंत्री इन मामलों को लेकर संवेदनशील हैं लेकिन अधिकारी उन तक बात नहीं पहुंचाते। इसलिए हम लोगों को मजबूरी में गांधीवादी तरीके से करो या मरो की भावना के साथ आंदोलन कर रहे हैं।”

अपनी मांगों के बारे में वो बातते हैं, “प्रदेश में ग्राम पंचायत स्तर पर पंचायत सहायक की भर्ती प्रक्रिया जारी है। हमारी मांग है कि पंचायत सहायक पद पर मनरेगा संविदाकर्मियों को दोनों के मानदेय मिलाकर वेतन दिया जाए और उन्हें समायोजित किया जाए।”

वो आगे कहते हैं, “राजस्थान सरकार और हिमाचल प्रदेश की सरकार द्वारा मनरेगा संविदाकर्मियों को नियमित किया गया है। सरकार अगर संवेदनापूर्वक विचार करें तो ये उत्तर प्रदेश में भी किया जा सकता है।”

ईको पार्क में गांव कनेक्शन से बात करते हुए बनारस के संविदाकर्मी आर के गौतम कहते हैं, “हमारा मानदेय दैनिक मजदूर से भी कम है और उसका भी भरोसा नहीं है कि समय से मिलेगा या नहीं। हम ग्राम पंचायत में सौ श्रमिक परिवारों को सौ दिन के रोजगार की गारंटी देते हैं लेकिन हमारी रोजगार की कोई गारंटी नहीं है। मनरेगा संविदाकर्मियों के लिए न कोई सेवा नियमावली है, न बीमा, न पीएफ न स्वास्थ्य बीमा, कोई सुविधा नहीं दी जाती। इतनी मेहनत करने के बाद हमारे पदों के समकक्ष पंचायत सहायक की भर्ती की जा रही है हमारी मांग सिर्फ इतनी है कि उस पद पर 14 वर्षो से काम कर रहे मनरेगा संविदाकर्मी को समायोजित किया जाए और हमसे काम लिया जाए।”

प्रदेश की 58189 ग्राम पंचायतों में पंचायत सहायत के लिए भर्ती प्रक्रिया जारी है। इन पंचायत सहायकों को महीने में 6000 रुपए का मानदेय दिया जाएगा। ग्राम स्तर पर कार्यरत मनेरगा के रोजगार सेवकों की मांग है कि उनसे रोजगार सेवक और पंचायत सहायक दोनों का काम लिया जाए और अतिरिक्त मानदेय दिया जाए। क्योंकि मौजूदा मानदेय 6000 में उनका गुजारा नहीं हो रहा है।

लखनऊ के प्रदर्शन में 17 अगस्त शामिल हुए अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी मनरेगा दिवेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, “कोरोना काल में जो प्रवासी मजदूर आये सरकार के मंशा के अनुरूप उन्हें काम देने में मनरेगा संविदाकर्मी डटे रहे। यही वजह रही कि यूपी देशभर में प्रवासी मजदूरों को काम देने में अव्वल रहा। हमारे संविदाकर्मियों ने जान हथेली पर रखकर काम किया,लेकिन सरकार द्वारा न तो उनका कोरोना टीकाकरण कराया गया न ही उन्हें कोरोना योद्धा माना गया। कोरोना काल में जो साथी नहीं रहे उनके परिवारों को कोई सुविधा नहीं दी गयी।”

दिवेन्द्र प्रताप आगे कहते हैं, “रोजगार सेवक को महीने में कई बार ब्लॉक (विकास खंड मुख्यालय) आना होता है, बहुत से तकनीकी कार्य होते हैं, जिसके लिए इंटरनेट का उपयोग करना पड़ता है इन सबका भी किसी प्रकार का कोई भत्ता इन्हें नहीं दिया जाता।”

मनरेगा में सेवा प्रदाता के माध्यम से होने जा रही भर्ती पर दिवेन्द्र कहते हैं, “जो भर्तियां अभी सेवा प्रदाता के माध्यम से होने जा रही थी उनमें कोई बाहरी व्यक्ति फॉर्म ही नहीं भर पाया जब सोशल मीडिया, मीडिया और किरकिरी हुई तो भर्ती निरस्त करके शासनादेश बदला गया है। सेवा प्रदाता के माध्यम से पारदर्शी भर्ती हो पाना संभव नहीं है।”

संजय दीक्षित सवाल करते हैं, “सेवा प्रदाता के माध्यम से की जा रही भर्ती में सेवा प्रदाता की फीस, जो कि एक बड़ी धनराशि है खर्च करने के बजाय विभाग सीधे भर्ती क्यों नहीं करता?

संजय का आरोप है कि व्यवहारिक रूप से इतने कम मानदेय में जीवन यापन करना संभव नहीं है,ग्राम्य विकास के लिए हर साल 25-30 हजार करोड़ का बजट खर्च होता है, ग्राउंड जांच सही से हो तो 50 फीसदी काम भी नहीं मिलेगा।” 

गांव कनेक्शन ने संविदा कर्मचारियों की मांगों और प्रदर्शन को लेकर सरकार का पक्ष जानने के लिए अपर सचिव से लेकर डिप्टी सीएम तक कार्यालयों में फोन किया लेकिन बात नहीं हो पाई। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के निजी सचिव ने कहा कि सर के सदन (विधानसभा का मानसून सत्र) में होने के कारण फिलहाल बात संभव नहीं है।

सीएम ने सदन में कहा- रोजगार सेवकों का बढ़ाएंगे मानदेय

इसी बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा के मानसून सत्र में कहा कि उनकी सरकार रोजगार सेवकों का मानदेय बढ़ाने का काम करेगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा कि निगरानी समितियों ने कोरोना कालखण्ड में बहुत अच्छा काम किया था। इसलिए आंगनवाड़ी कार्यकर्त्री, सहायक कार्यकर्त्री, आशा, आशा संगिनी, पीआरडी जवान, रोजगार सेवक के मानदेय में बढ़ोत्तरी करने का काम प्रदेश सरकार करेगी। 

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