‍बेटी के पैदा होने से नाराज पति ने नेशनल चैंपियन को दिया फोन पर तलाक

Shefali SrivastavaShefali Srivastava   23 April 2017 4:10 PM GMT

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‍बेटी के पैदा होने से नाराज पति ने नेशनल चैंपियन को दिया फोन पर तलाकअपनी ट्रॉफी और सर्टिफिकेट के साथ शुमायला जावेद

लखनऊ। एक ओर जहां ट्रिपल तलाक पर पूरे भारत में बहस चल रही है, वहीं दूसरी ओर अनुचित माध्यम की मदद से तलाक देने का सिलसिला जारी है।

ताजा मामला यूपी का है जहां राष्ट्रीय स्तर की नेटबॉल चैंपियन खिलाड़ी शुमायला जावेद को उनके पति ने फोन पर तलाक दे दिया है। एएनआई न्यूज एजेंसी के मुताबिक शुमायला के पति ने बेटी के पैदा पर नाराज होकर तलाक दिया। राजधानी लखनऊ 380 किमी दूर अमरोहा निवासी शुमायला जावेद इस वक्त अपने मायके में हैं और चाहती हैं कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ इस मामले को देखें।

वहीं एक दूसरे मामले में आगरा निवासी एक महिला को उसके पति ने जुड़वा बेटियों के पैदा होने पर तलाक दे दिया। 22 वर्षीय आफरीन को अपनी शादी टूटने की खबर फेसबुक पोस्ट से मिली। उसके पति द्वारा शादी तोड़ने का तरीका इस्लाम में सहमति पर आधारित नागरिक अनुबंध को तोड़ता है।

ट्रिपल तलाक के खिलाफ इस समय सुप्रीम कोर्ट में दर्जन भर मामले दर्ज किए गए हैं। इस सभी मामलों में महिलाओं ने फेसबुक, वाट्सऐप, पोस्टकार्ड और न्यूजपेपर विज्ञापन की मदद से दिए जाने वाले तलाक के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई है।

मुस्लिम पुरुषों द्वारा शादी तोड़ने के लिए इस्तेमाल किए माध्यमों ने इस समय ट्रिपल तलाक मुद्दे पर बहस खड़ी कर दी है। यह मुद्दा पिछले साल उत्तराखंड की शायरा बानो मामले से सुर्खियों में आया जहां शायरा ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करके तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा पर रोक लगाने का अनुरोध किया था।

ट्रिपल तलाक के खिलाफ इस समय सुप्रीम कोर्ट में दर्जन भर मामले दर्ज किए गए हैं। इस सभी मामलों में महिलाओं ने फेसबुक, वाट्सऐप, पोस्टकार्ड और न्यूजपेपर विज्ञापन की मदद से दिए जाने वाले तलाक के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई है।

कानून में बदलाव की पहल करने में 33 साल की रिज़वाना का नाम भी शामिल है जिनकी शादी इंडियन एयर फोर्स कर्मचारी से 2012 में हुई थी लेकिन उनके पति ने अपनी पिछली दो शादियों की बात छिपाई थी जिसका पता लगाने के बाद रिज़वाना ने तलाक का हल निकाला था लेकिन पति ने इस्लाम का वास्ता देते हुए कहा था कि वह बिना अपनी पत्नियों को तलाक दिए तीन शादियां कर सकते हैं।

सरकारी कर्मचारी होने के कारण रिज़वाना को अपने पति से भत्ता नहीं मिल सका। वह कहती हैं कि हमारे देश में सरकारी नौकरी वाली महिलाओं को भत्ता नहीं मिलता।

शाहबानो मामले में फैसले को मुस्लिम महिलाओं के लिए माना गया मील का पत्थर

80 के दशक में शाहबानो विवाद से यह मुद्दा मुखर है। उस केस के फैसले को मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक न्याय और समानता के लिए मील का पत्थर माना जाता है। 1985 में शाह बानो नाम की महिला ने पति द्वारा दिए तलाक के बाद अपने खर्च व रखरखाव के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की थी। इसके बाद कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि तलाक के बाद मुस्लिम महिलाओं को इद्दत का अधिकार होगा जिसके तहत तलाक के बाद तीन महीने तक महिला का पति उसके रख-रखाव व खर्च को देखेगा और इसके बाद महिला की देखभाल उसके परिवार या वक्फ बोर्ड द्वारा की जाएगी।

     

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