लखनऊ। ” प्राचीन भारतीय परंपरा में प्रकृति संरक्षण को लेकर अत्यधिक महत्व था। चाहे कृषि हो या जल संरक्षण। समय के साथ साथ कृषि पद्धति भी बदल गयी। हम ऐसी दिशा में बढ़ गए कि हम अपनी अगली पीढ़ी को क्या देकर जाएंगे इस पर सोचा ही नहीं। रासायनिक उर्वरक के अत्यधिक प्रयोग से तैयार की गई फसल और उसके उत्पाद से अनेकों रोगों से मानव जाति के साथ पूरा पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए प्राकृतिक कृषि ही एक मात्र विकल्प है।” ये बातें लखनऊ पहुंचे डॉ. सुभाष पालेकर ने कही।
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डॉ. पालेकर ने आगे बताया, ” हमें अपनी सोच को पूर्व में ले जाना होगा। हमें पता करना होगा किस प्रकार हमारे पूर्वज कृषि कार्य करते थे। आज हर जगह रासायनिक कृषि व जैविक का बोलबाला है, लेकिन यह किसी ने नहीं सोच की इसमें फायदा नुकसान क्या है। रासायनिक तो घातक है ही साथ मे जैविक कृषि भी उपयोगी नहीं है।”
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उन्होंने आगे बताया, ” जैविक कृषि की पांच पद्धति होती है जो अलग अलग देश से ली गयी है, जो प्रकृति के बिल्कुल भी अनुरूप नहीं है। इसमें कार्बन उत्सर्जन अधिक होता है जो पर्यावरण को दूषित करने के साथ साथ अधिक खर्चीला भी है। अधिक लागत लगने की वजह से सभी वर्ग के किसान इसको नहीं अपना पाते।”
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