कभी चलाते थे छप्पर के नीचे चाय की दुकान, आज हैं कई इंस्टीट्यूट के चेयरमैन

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   15 April 2017 8:07 PM GMT

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कभी चलाते थे छप्पर के नीचे चाय की दुकान, आज हैं कई इंस्टीट्यूट के चेयरमैनकेंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के साथ पवन सिंह चौहान। (फाइल फोटो)

लखनऊ। छप्पर के नीचे चाय की दुकान से लेकर चाय के बड़े ब्रांड की एजेंसी तक, उन्होंने 15 व्यवसाय किए लेकिन उन्होंने 16वां काम जो किया न सिर्फ उससे वो खुद एक ब्रांड बन गया बल्कि हजारों बच्चों को हुनरमंद बना रहा है।

लखनऊ जिले में बक्शी का तालाब के मामपुर बाना गांव में जन्में पवन सिंह से जब क्लास 9 में थे, तभी उन्होंने पारिवारिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एयरफोर्स स्टेशन के सामने छप्पर में चाय की दुकान खोली थी, कई और बिजनेस भी किए जिसमें उन्हें सफलता तो मिली लेकिन सुकून नहीं मिला। कुछ साल पहले उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा तो न सिर्फ उनका सपना पूरा हुआ बल्कि वो मन में दबी वो कसक भी पूरी हो गई, जिसमें उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना गरीबी में दम तोड़ गया था। आज एसआर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट में 3800 से ज्यादा बच्चे इंजीनियर समेत दूसरी विधाओं की पढ़ाई कर रहे हैं, इनमें करीब 500 वो बच्चे हैं, जिनका खाना-पीना और रहना सब कुछ संस्थान की तरफ से है।

अपने जीवन की दुश्वारियों और सफलता पर बात करते हुए पवन सिंह चौहान (49 वर्ष) कहते हैं, बहुत सारे काम किए लेकिन किसी में पैसा नहीं था किसी में सुकून नहीं था, मैं वो काम करना चाहता था, जिसमें दूसरों का भी भला हो, फिर लोन लेकर ये इंस्टीट्यूट (एसआर) खोला। अभी लगता है ये सही फैसला था।”

गांव में पले-बढ़े पवन सिंह चौहान बताते हैं, "उस समय गाँव में जब कोई बड़ी कार आती तो गाँव के बच्चे काफी दूर तक उसके पीछे-पीछे भागते हैं। कभी शहर की बड़ी चमकदार इमारतें देखी तो लगा ये दुनिया ही दूसरी है कहा एक कमरे और छप्पर का मकान और कहा ये शीशे से चमकती बड़ी इमारतें, मन सिर्फ इसे हासिल करने का नहीं था बल्कि मन ये था की इन्हें अपने साथ गाँव ले जाऊं।” ग्रामीण क्षेत्र में कॉलेज खोलने की बात पर कहते हैं, “ गांव में न तो प्रतिभाओं की कमी है और न जुनून की। लेकिन न तो वहां संसाधन होते हैं, न मार्गदर्शक। इसीलिए ये जरूरी था।”

एजुकेशन इंस्टीट्यूट ही क्यों इस सवाल के जवाब में पवन जो बताते हैं, वो भी कम रोचक नहीं है। मेरी बेटी पल्लवी का मेडिकल की पढ़ाई के लिए साउथ के एक कॉलेज में दाखिला हुआ, लेकिन वहां के लोगों का नार्थ के लोगों पर नजरिया मुझे अच्छा नहीं दिखा, बेटी से मिलकर लौटा तो तय किया की गांव में कॉलेज खोलूंगा।”

बात आगे बढ़ी तो करोड़ों का कर्ज लेकर काम शुरू कर दिया, लेकिन शुरुआत में यहां भी बहुत नुकसान हुआ। मैंने फीस कम रखी थी और अच्छी सुविधाएं दी। गरीब बच्चों को फीस में छूट दी तो कर्ज सात से बढ़कर 17 हो गया। लेकिन अच्छे रिजल्ट ने धीरे-धीरे सब शुरु कर दिया। आज एसआर ग्लोबल, एसआर मैनेजमेंट, एसआर एग्रीकल्चर, एसआर इंजीनियरिंग सफलता पूर्वक चल रहा है।

चाय की दुकान से कॉलेज के चेयरमैन तक

एक मुकदमें में पिता व ताऊ को जेल हो गई तो परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट हो गया। उम्र कम थी बड़े भाई के साथ मिलकर खेती करने लगा। फिर कक्षा नौ में सबसे पहले एयरपोर्ट रोड बीकेटी में छप्पर डालकर चाय की दुकान शुरू की। 700 रुपए की जमा पूंजी से दुकान चल निकली। फिर उसी में परचून की दुकान और बाद में कमाई बढ़ने पर चाय समेत कई बड़े ब्रांड के पोडक्ट की एजेंसी ले ली। सम्मान भी मिला लेकिन उसके अनुपात में पैसा नहीं था तो उन सभी कंपनियों को छोड़कर खुद का काम शुरु कर दिया।

कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए फ्री खाना और हॉस्टल

कुल 3800 छात्र-छात्राएं यहां पढ़ रहे हैं, इनमें 500 ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे ऐसे हैं जो प्रतिभाशाली है पर गरीब है। ऐसे 500 बच्चों के लिए स्कूल में बने नारायण भोजनालय में फ्री भोजन और फ्री हॉस्टल सुविधा दी है। इसका फायदा भी मिला लखीमपुर निवासी एक किसान के बेटे पुनीत वर्मा पढ़ने की इच्छा देख एडमीशन लिया था। पुनीत ने अपने परिश्रम के बल पर सिविल ईजीनियरिंग में यूपी टॉप किया है। जो दूसरे कमजोर वर्ग के ग्रामीन बच्चों के लिये एक उदाहरण है।

पवन सिंह चौहान से पांच सवाल

1-इंजीनियरिंग कॉलेज और मैनेजमेंट कॉलेज अपनी साख नहीं बचा पा रहे स्टूडेंट्स की संख्या भी कम हो रही है क्यू?

उत्तर-एसआर प्रगति पर है और जो कॉलेज डीग्रेड हो रहे है उनमे प्रबंधन और कर्मचारियों में सम्प्रेषण सही नहीं है और वो व्यवसायिकता की होड़ में शिक्षा के स्तर के गिरा रहे हैं, यही वजह है साथ ही सरकारी पालिसी भी अनुकूल नहीं है।

2- पांच से 10 लाख तक खर्च के बाद भी कई बार युवाओं को अच्छी नौकरी नहीं मिलती ?

उत्तर- इसका मुख्य कारण आरम्भिक शिक्षा है। सामान्य रूप से छात्रों की नीव मजबूत नहीं होती और वो प्रफेशनल कोर्स में मेहनत के बाद भी खुद को कुशल नहीं बना पाते, जिसके चलते ये समस्या आ रही है।

3- युवाओं की शिकायत रहती है डिग्री के बाद भी स्ट्टेस की नौकरी नहीं मिल रही ?

उत्तर-पहली बात तो काम छोटा बड़ा नहीं होता दूसरे ये की सिर्फ डिग्री नहीं मेहनत भी करनी पड़ती है। सफल होने के लिए जो अपने फन में माहिर है उसके लिए काम की कमी नहीं है।

4- अगर आप को शिक्षा में बदलाव का मौका मिले तो आप क्या दो बदलाव करना चाहेंगे ?

उत्तर- पहला प्राइमरी स्कूलों की जबाबदेही तय करना। दूसरा शिक्षा को रोजगार और जॉब ओरिन्टेड बनाने के साथ साथ संस्कार परक बनाना चाहूँगा जो मैं अपने कॉलेज में कर भी रहा हूं।

      

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