बूझो तो जानें: पंचायतें अमीर हो गईं लेकिन गाँव गरीब ही रहे 

Ashwani NigamAshwani Nigam   24 April 2017 2:20 AM GMT

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बूझो तो जानें: पंचायतें अमीर हो गईं लेकिन गाँव गरीब ही रहे गाँवों के विकास में कमीशनखाेरी व जागरुकता की कमी अड़ंगा।

अश्वनी निगम/अरविंद शुक्ला

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में गाँवों का तेजी से विकास हो, इसके लिए केंद्र सरकार नें 14वें वित्त आयोग के तहत न सिर्फ ग्राम पंचायतों का बजट बढ़ाया बल्कि उन्हें ही सीधे काम करने का अधिकार दिया। पंचायतों के खातों में लाखों रुपये भी हैं, लेकिन प्रधान और अधिकारियों की हीलाहवाली और कमीशनखोरी के चलते गाँवों में डेढ़ वर्षों से विकास कार्यों में अड़ंगा लगा है।

59316 ग्राम पंचायतों वाले यूपी के गाँव में विकास के लिए 14वें वित्त आयोग की तरफ प्रति मतदाता करीब 1130 रुपये (केंद्र और राज्य वित्त को मिलाकर) दिए जाते हैं, इनमें मनरेगा और गरीबी उन्मूलन समेत कई योजनाएं शामिल नहीं है। यानि औसतन हर पंचायत को 7 से 10 लाख रुपये मिलते हैं। बावजूद इसके ज्यादातर गाँवों में न नाली बन पाई हैं न खड़ंजा। हजारों ग्राम पंचायतों में डेढ़ साल बाद कार्ययोजना तक नहीं बन पाई है।

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यूपी के शाहजहांपुर जिले के अकर्रारसूलपुर के प्रधान रीतराम वर्मा बताते हैं, “अप्रैल का महीना खत्म होने वाला है कार्ययोजना नहीं बन पाई है, ग्राम सचिव और जेई साहब का सहयोग नहीं मिला।” वहीं सीतापुर जिले में रामपुर मथुरा ब्लॉक में सुरजनपुर के प्रधान राम मनोरथ अवस्थी बताते हैं, “इस पंचवर्षीय में गिनती के काम हुए हैं, पूरे साल गतिरोध बना रहा। पहले 14वें वित्त की गाइडलाइंस तय नहीं थी, गाइड लाइन तय हुई तो कमीशन तय नहीं हो पाया। ये समझ लीजिए कि पैसा होने के बावजूद विकास काम नहीं हो पाया, गलत काम कुछ प्रधानों ने किया, खाते पूरे जिले के सीज हुए।”

14वें वित्त के तहत प्रधानों को बजट तो लाखों रुपये का मिल रहा है लेकिन उसे खर्च करने के लिए पहले कार्ययोजना बनानी होती है।

काम कराने के लिए बजट के अनुसार पंचायत सचिव से लेकर डीएम तक की अनुमति चाहिए होती है। प्रधानों के मुताबिक यहीं पर कमीशन बाजी शुरू हो जाती है। बाराबंकी जिले के एक प्रधान ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “केंद्र ने 14वें वित्त के तहत काम तो बहुत किया लेकिन वर्क आईडी जनरेट कराने से लेकर बिल पास कराने तक सबको कमीशन देना होता है, मान कर चलिए 20 फीसदी पैसा जाना ही है।”

प्रधान जहां कर्मचारियों और अधिकारियों को विकास में अड़ंगा बता रहे हैं, वहीं अधिकारियों का कहना है कि पहले प्रधान मनमर्जी से पैसा हड़प कर जाते थे अब कंप्यूटर पर काम होने से पारदर्शिता लाई जा रही है, जिसे वो अड़ंगा मान रहे हैं। पंचायती राज विभाग के अधिकारी ये भी मानते हैं कि नई व्यवस्था में कई खामियां हैं जिन्हें दूर किया जा रहा है। लखनऊ में जिला पंचायती राज अधिकारी उमा शंकर मिश्र कहते हैं, “पारदर्शिता लाने के लिए कार्ययोजना बनाना और उसको साफ्टवेयर के माध्यम से अपलोड करने की शुरुआत की गई है। यह योजना चूंकि अभी अपने शुरुआती चरण में है इसलिए कहीं-कहीं तकनीकी स्तर पर शिकायतें मिल रही हैं लेकिन इसको जल्द ही दूर कर लिया जाएगा।”

नाम न छापने की शर्त पर लखनऊ के एक गाँव के प्रधान बताते हैं, देखिए काम ठीक है, लेकिन अधिकारी तब तक काम नहीं करते जब तक कमीशन सेट न हो जाए, पंचायत में पहले कार्ययोजना बनती है, फिर जेई स्टीमेट बनाता है, उसका अनुमोदन होता है, फिर वर्क आईडी जनरेट होने के बाद काम शुरू होता है, फिर उसकी जांच होती है, तब पैसा मिलता है, अगर अधिकारी ईमानदार हैं तो ठीक वर्ना कट (कमीशन) देना होगा।

पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बनाने के अभियान में गाँव-गाँव कार्यक्रम चलाने वाले मताधिकार संघ के पंकज नाथ कल्की ने बताते हैं, “ जब समाज के लोगों का ग्राम पंचायत के बजट और कार्यों में दखल नहीं बढ़ेगा, धांधली जारी रहेगी। लोगों का जागरूक होना बहुत जरूरी होगा, इसकी सही जानकारी पंचायत प्रतिनिधियों को नहीं दी गई, जिसके चलते बजट पास नहीं हुआ, कुछ प्रधान भी काम नहीं करना चाहते, लेकिन इन सबसे नुकसान तो जनता का ही हुआ ना।”

वो आगे बताते हैं, “नौकरशाही पंचायतों को अधिकार को दबाने में लगी है। पंचायत प्रतिनिधियों के कामों में किसी न किसी तरह से अड़ंगा लगाकर यह लोग पंचायती राज व्यवस्था को कमजोर करने में लगे हैं। अगर पंचायती राज को लेकर सरकार की नीयत साफ है वित्तीय अधिकार ग्राम पंचायत को दिया जाए। और फिर जो प्रधान गलत करें उस पर सख्त कार्रवाई हो।”

इन कारणों से विकास अधूरा

कैसे कार्ययोजना बनानी है, नहीं दिया पर्याप्त प्रशिक्षण

14वें वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार गाँवों में विकास काम करने से पहले ग्राम पंचायत पहले कार्ययोजना बनाएगी। इसे विकास खंड स्तर पर एडीओ पंचायत और जिला स्तर पर डीपीआरओ के माध्यम से अनुमोदन के लिए डीएम को भेजा जाएगा। इसके लिए एक साफ्टवेयर है, जिस पर हर कार्य की वर्क आईडी जनरेट करनी है। इसकी प्रतिमाह रिपोर्ट देनी है, वर्क आईडी के सापेक्ष खर्च का ब्यौरा भी देना है। लेकिन इसके लिए ग्राम प्रधानों इसके लिए विधिवत प्रशिक्षण नहीं दिया गया। नतीजा है कि कार्ययोजना को साफ्टवेयर में फीड करने वाले पंचायती विभाग के कर्मचारी (जेई) पर ही प्रधान को निर्भर रहना पड़ता है।

एक ब्लॉक में ज्यादा से ज्यादा 2 जेई होते हैं। ऐसे में कार्ययोजनाएं समय से बन ही नहीं पा रही हैं। सिद्धार्थनगर में सेवरा की प्रधान कमलावती (35) बताती हैं, “बीडीओ की कुर्सी साल भर से खाली है, एक अधिकारी को चार्ज दिया गया है। वे 50 किमी दूर ज़िला मुख्यालय पर बैठते हैं। अब कितनी बार उनके यहां जाए, सब काम अटका पड़ा है।”

ग्राम पंचायत को नहीं मिले तकनीकी कर्मचारी

पंचायती राज विभाग की तरफ से ग्राम पंचायत स्तर पर कार्ययोजना बनाने में ग्राम पंचायत में एक पंचायत सहायक और कंप्यूटर आपरेटर देना है। कंप्यूटर और इंटरनेट की व्यवस्था करनी है। लेकिन अधिकतर ग्राम पंचायतों को अभी तक यह किया नहीं गया। गोरखपुर जिले में ग्राम जिगनाबाबू के प्रधान रामजी यादव बताते हैं, “मैं बहुत पढ़ा लिखा नहीं हूं, अब नए नियम तो आ गए लेकिन उन्हें लागू कैसे करें ये तो पता नहीं है, न कोई कर्मचारी आया न सामान (कंप्यूटर)। प्रदेश में ऐसे प्रधानों की संख्या कई हजार है जो कम पढ़े लिखे हैं।”

चुनाव के नाम पर ठप रहा विकास कार्य

उत्तर प्रदेश में दिसंबर 2015 में पंचायत चुनाव संपन्न हुए। 26 दिसंबर तक प्रदेश के सभी पंचायतों के ग्राम प्रधानों को शपथ दिलाई गई। उसके कार्ययोजना के नए साफ्टवेयर के नाम पर तीन महीने तक ग्राम पंचायत का खाता फ्रीज रहा। उसके बाद साफ्टवेयर आया तो कुछ हिस्सा विकास के बजट का रिलीज हुआ। फिर पंचायती राज और ग्राम विकास विभाग में खींचतान जारी रही। वो मुद्दा शांत हुआ ही था कि जनवरी 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई। पंचायतों के खाते फिर सीज हो गए। अभी अधिसूचना हटी तो साल 2016-17 का वित्तीय वर्ष खत्म हो गया। ऐसे में बजट का पैसा खाते में रहते हुए भी रिलीज नहीं हो पाया।

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