धान की फसल के दुश्मन: कत्थई प्लांटहापर और गॉल मिज, ऐसे करें बचाव

बारिश से वातावरण में पर्याप्त नमी रहती है और तेज धूप होने से तापमान भी अधिक हो जाता है, ऐसे में कीटो व रोगों को पनपने का मौका मिल जाता है। इसलिए इस समय खास ध्यान देने की जरूरत होती है।

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धान की फसल के दुश्मन: कत्थई प्लांटहापर और गॉल मिज, ऐसे करें बचाव

लखनऊ। धान या चावल सम्पूर्ण विश्व में उगायी जाने वाली प्रमुख फ़सलों में एक है। यह दुनिया की आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए, विशेषतः एशिया में व्यापक रूप से भोजन के तौर पर प्रयोग किए जाने वाल अन्न है।भारत के हर हिस्से में इसकी खेती होती है। बारिश का यह समय धान की वृद्धि के लिए उपर्युक्त है, परंतु यही समय अगर खेत में ध्यान न दें तो यह धान में कीटों के संक्रमण का कारण बन सकता है। यहाँ पर धान में लगने वाले दो प्रमुख कीटों के लक्षण और उपचार के बारे में विवरण दिया जा रहा है।सही प्रबंधन न होने से कीट से काफी नुकसान हो सकता है। इसलिए सही समय से पहचान कर इनका प्रबंधन कर नुकसान से बचा जा सकता है।

कत्थई प्लांटहापर:

इन कीटों की अधिक जनसंख्या धान के पौधों को संक्रमित कर देती है और पौधों का रस शोषित कर लेती है। जब इनका संक्रमण चरम पर रहता है तो पत्तियां भूरी या कत्थई रंग की दिखती है। धान की प्रजनन की अवस्था जो की वर्षा के समय में आती है और नमी से भरपूर होती है, इन कीटों के संक्रमण के लिए पूरी तरह से अनुकूल होती है। इन कीटों की निगरानी के लिए पौधों को थोड़ा सा मोड़ कर देखना चाहिए। साथ ही पौधे के निचले भाग को थपकी देना चाहिए, जिससे से उनकी उपस्थिति का पता चल सके।

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निवारक उपाय: सर्वप्रथम, अगर किसी क्षेत्र में इन कीटों की समस्या पहले रह चुकी हो, वहाँ के किसानों को अनुसंधान केंद्रो द्वारा विकसित प्रतिरोधक प्रजातियों का चयन करना चाहिए।

कीटों के नियंत्रण के लिए लाइट ट्रैप जैसे कि बिजली के बल्ब या केरोसीन लैम्प का एक बर्तन पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए। यह ठीक उसी तरह होता है, जैसे कि हमारे घरों में सुबह के समय, इस मौसम में लाइट के इर्द गिर्द कई कीट गिरे रहते है। इस अवस्था में अंधा-धुंद कीटनाशकों के प्रयोग से बचना चाहिए, क्यूँकि ये कीटनाशक कई लाभप्रद कीटों को भी नुक़सान पहुँचाते है।साथ ही इस समय नाइट्रोजन के प्रयोग से बचना चाहिए।

जैविक नियंत्रण:

कीटों का नियंत्रण करने के लिए कत्थई प्लांटहापर के प्राकृतिक शत्रुओं का प्रयोग करना एक उचित समाधान होगा। इनमें पानी के स्ट्राईडर, मिरिड बग, मकड़ियाँ और अंडों के परजीवी विभिन्न कीट और मक्खियाँ शामिल है।इसके अलावा, खेत को पानी से भर कर पौधों की सतह को जाल से पोंछा जा सकता है।

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प्लांटहापर के प्राकृतिक शत्रु

रासायनिक नियंत्रण:

खेत में जब कीटों का संक्रमण व्यापक स्तर पर हो तब कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए, क्यूँकि इस अवस्था में कत्थई प्लांटहापर अपने प्राकृतिक शत्रुओं से संख्या में अधिक हो जाते है। इस कीट के विरुद्ध प्रयोग हो सकने वाले कीटनाशकों में बूप्रोफेज़िन, डाईनोटेफ़ुरान, एटोफेंप्रोक़्स, फेनोबुकार्ब, फ़िप्रोनिल और इमिडाक्लोप्रिड हैं।



गॉल मिज:

चावल का गॉल मिज पौधे की शाखाओं के आधार पर टयूब के आकार के गॉल की संरचना करते हैं, जिससे कि उन शाखाओं की वृद्धि रूक जाती है और उसमें पुष्प गुच्छ नहीं आ पाते। इसके लक्षणों को देखने के साथ ही कीटों की उपस्थिति का पता लगाना भी आवश्यक है, क्यूँकि इस तरह के लक्षण सूखे, पोटैशियम की कमी, या लवणता के कारण भी दिखते है। गॉल मिज कीट चावल के प्रमुख कीटों में है, जो पुष्पीकरण के चरण में सिचायीं किए हुए या वर्षा से भरी नम भूमि में पाए जाते है। बादलों से ढकें या बारिश का मौसम, अधिक शाखाओं वाली धान प्रजातियों की खेती, इनकी जनसंख्या के अधिक घनत्व का कारण है।

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निवारक उपाय:

विकसित प्रतिरोधक प्रजातियों का उपयोग करना चाहिए। वर्षा ऋतु के आरम्भ में शुरू में रोपाई करना चाहिए, साथ ही पौधों के बीच स्थान छोड़ना चाहिए। कीट को पकड़ने वाले ट्रैपर का इस्तेमाल करना चाहिए। धान के खेत के आस पास बेमौसम पौधों को हटा देना चाहिए क्यूँकि वे उनके धारक पौधों के रूप में उन्हें आश्रय दे सकते है। अगर सम्भव हो तो चावल के खेत के पास फूलों के पौधे लगाने चाहिए, जो कीटों को अपनी ओर आकर्षित करे।

जैविक नियंत्रण:

गॉल मिज के प्राकृतिक शत्रु जो उसके परजीवी है, उनका इस्तेमाल करने पर लाभ मिल सकता है।इनमें प्लैटिगेस्टेरिड, यूपेल्मिड, तथा टेरोमेलिड (गॉल मिज लार्वा पर परजीवी), फ़ाइटोसीड कीट (गॉल मिज अण्डों पर परजीवी), मकड़ियाँ (वयस्कों पर परजीवी) का सफलता पूर्वक प्रयोग देखा गया है।

रासायनिक नियंत्रण :

हमेशा समवेत उपायों का ही प्रयोग करना चाहिए. धान गॉल मिज के अंडों को पनपने के पहले ही कीटनाशकों का सही मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। गॉल मिज के विरुद्ध फ़ोसेलान, कार्बोसल्फ़ेन, क्लोरोपायरिफ़ोस, फ़िप्रोनिल तथा थियामेथोक्सेम का प्रयोग करना चाहिए। उपरोक्त कीटनाशकों का उपयोग उनके पैक दिए गए निर्देशों के अनुसार ही करना चाहिए।

रिपोर्ट डॉ. प्रीति उपाध्याय

(दिल्ली विश्वविद्यालय में कृषि आनुवांशिकी के क्षेत्र में अनुसंधानरत हैं)


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