डॉल्फिन के प्रदूषण बर्दाश्त करने की हद बताएगी रिसर्च

Sundar ChandelSundar Chandel   9 Nov 2017 3:50 PM GMT

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डॉल्फिन के प्रदूषण बर्दाश्त करने की हद बताएगी रिसर्चसाभार: इंटरनेट 

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

मेरठ। नेशनल जलीय जीव डाॅल्फिन गंगा में प्रदूषण और फिशिंग किस हद तक बर्दाश्त कर सकती है, इसको लेकर रिसर्च शुरू हो गई है। विषेशज्ञ 2012 से लेकर अब तक डाॅल्फिन पर हुए सर्वे और गंगा में जाकर जानकारी जुटा रहे हैं कि ये जीव मानवीय हस्तक्षेप सह पा रहा है।

रिसर्चर डाॅ. संजीव यादव बताते हैं, “देश में दो तरह की डाॅल्फिन पाई जाती हैं। गंगा में मिलने वाली डाॅल्फिन को गैंगेटिक डाॅल्फिन और पाकिस्तान से आने वाली को इंडस डाॅल्फिन कहते हैं।”

वह आगे बताते हैं, “बिजनौर बैराज से लेकर नरौरा बैराज तक गंगा के 205 किमी क्षेत्र में डाॅल्फिन की गणना का 2012 में मेरी गंगा मेरी डाॅल्फिन नामक अभियान से शुरू हुआ था। तब से हर साल डाॅल्फिन की गिनती होती है। इस साल हुई गिनती में उक्त क्षेत्र में 32 डाॅल्फिन मिली। इनमें दो शावक हैं, जिससे पता चला कि प्रजनन हो रहा है और डाॅल्फिन का कुनबा बढ़ रहा है। इसका अलावा अच्छा संकेत यह भी है कि गंगा के बहाव और विपरीत दोनों जगह दोनों जगह पर डाॅल्फिन विचरण कर रही है।”

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डब्लूडब्लूएफ के माध्यम से ही डाॅल्फिन पर शोध शुरू किया गया है। शोध का एरिया करीब 205 किमी है, यानि बिजनौर बैराज से नरौरा तक यह देखा जाएगा डाॅल्फिन क्या बर्दाश्त कर सकती है और क्या नहीं।आगे चलकर उसी के हिसाब से प्लान तैयार किया जाएगा।
डाॅ. संजीव यादव, शोधार्थी

बनाया जाएगा मैनेजमेंट प्लान

डब्लूडब्लूएफ के प्रतिनिधि और डाॅल्फिन पर रिसर्च कर रहे डाॅ. संजीव यादव और डाॅ. शाहनावाज खान बताते हैं, “विश्व प्रकृति निधि ने ही डाॅल्फिन पर रिसर्च शुरू कराई है। तीन साल की रिसर्च इस बात पर केंद्रित है कि गंगा में ये जीव कितना प्रदूषण और मछलियों की धरपकड़ बर्दाश्त कर सकती है। पानी का बहाव और गहराई अनुकूल है या नहीं?” वो आगे बताते हैं, “इसके लिए मैनेजमेंट प्लान तैयार किया जाएगा। अच्छी बात ये है कि बिजनौर से लेकर नरौरा तक डाॅल्फिन फैल चुकी हैं। हस्तिनापुर में भी डाॅल्फिन का आवागमन है। जो शुभ संकेत है।”

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