लखनऊ। उत्तर प्रदेश में जल्द ही सरकारी योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को सेनेटरी पैड मिलने शुरू हो जाएंगे। इतना ही नहीं, किशोरियों और महिलाओं को शारीरिक स्वच्छता से संबंधित जानकारियां उपलब्ध कराकर जागरूक किया जाएगा।
स्वच्छ भारत मिशन में उत्तर प्रदेश के स्टेट कंसल्टेंट मनोज शुक्ला गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “गांव-गांव में महिलाओं को सेनेटरी पैड की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए हम अपने कम्यूनिटी पार्टनर्स, महिला समाख्या समेत कई सरकारी विभाग का सहयोग ले रहे हैं। इसके अलावा गाँव में वितरकों को जागरुक करने के साथ पैड के उपयोग और डी-कंपोज़ करने के तरीकों के बारे में भी पांच दिनों का आवासीय प्रशिक्षण दे रहे हैं।“
सरकार की सेनेटरी नैपकिन योजना के तहत अब तक उत्तर प्रदेश में लखनऊ, गोरखपुर, कानपुर नगर, मेरठ, कौशाम्बी, मिर्जापुर, आगरा, बाराबंकी, महोबा, कन्नौज, फिरोजाबाद, बरेली, जालौन, वाराणसी, कासगंज, भदोही, अमेठी, सुल्तानपुर, पीलीभीत, एटा सहित प्रदेश के 65 जिलों में कार्य किया जा रहा है।
लखनऊ के पंचायत उद्योग के निरीक्षक संतोष तिवारी बताते हैं, “हमारे यहां इस उद्योग में 13 महिलाएं काम कर रही है और यहां सेनेटरी नैपकिन का उत्पादन करीब 32,000 पैकेट मासिक है। योजना की शुरुआत से अब तक तैयार उत्पाद स्वास्थ्य विभाग, महिला कल्याण, कारागार एवं स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, समाज कल्याण विभाग द्वारा ख़रीदा जाता है और फिर डिस्ट्रीब्यूट किया जाता है।“
वह आगे बताते हैं, “अब इसी कार्यक्रम को गांवों तक ले जाने के लिए ताकि ग्रामीण महिलाओं को कम से कम कीमत पर, बेहतर क्वालिटी के सेनेटरी पैड उपलब्ध हो सकें, इसकी योजना तैयार की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में आशा, आंगनबाड़ी और एएनएम को सेनेटरी पैड डिस्ट्रीब्यूटर बनाए जाने का काम शुरू हो चुका है। अब तक 15 गांवों से आवेदन पत्र आ चुके हैं।“
संतोष आगे बताते हैं, ”इसी तरह शहरी क्षेत्रों के स्लम एरिया में भी महिलाओं तक सेनेटरी नैपकिन की सुविधा दी जाएगी। शहरी क्षेत्रों में डिस्ट्रीब्यूटरशिप एनजीओ को दी जाएगी। पंचायत उद्योग में बनने वाले सेनेटरी पैड की निर्माण सामग्री अच्छी क्वालिटी की है और ये पेड बाजार की तुलना में काफी सस्ते हैं।“
वहीं स्टेट कंसल्टेंट मनोज शुक्ला बताते हैं, “एनएचएफएस के सर्वे के अनुसार अभी हमारे देश में सिर्फ 39 प्रतिशत महिलाएं ही सेनेटरी नैपकिन का उपयोग कर रही हैं, जानकारी का आभाव, उपलब्धतता का आभाव और पैसे की कमी के चलते ज्यादातर ग्रामीण महिलाएं सेनेटरी पैड का उपयोग नहीं कर पातीं और अन्य विकल्पों का उपयोग करती हैं, जिससे संक्रमण का खतरा अत्यधिक रहता है।“
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