‘चाचा-ताऊ भूल न जाना, बच्चों को स्कूल ले जाना’

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‘चाचा-ताऊ भूल न जाना, बच्चों को स्कूल ले जाना’फोटो: देवांशु मणि तिवारी

लखनऊ। जब सुबह-सुबह गाँव की गलियों में 'चाचा-ताऊ भूल न जाना, बच्चों को स्कूल ले जाना' और 'पढ़ी लिखी लड़की रोशनी घर की’, जैसे नारे गूंजने लगे तो लोग दरवाजे खोल कर घरों से बाहर आ गए।

हाथों में पेपर-पेन लेकर स्कूली यूनिफार्म में नारे लगाती बच्चों की टोली हर दरवाजे पर रुकती और सवाल-जवाब के बाद फार्म भरती और आगे बढ़ जाती।

सर्वे में बड़ों से पूछे बच्चों के हक के सवाल

यूनिसेफ और गाँव कनेक्शन के साझा प्रयास में उत्तर प्रदेश के छह जिलों (लखनऊ, बदायूं, सोनभद्र, मिर्जापुर, श्रावस्ती और बलरामपुर) में 14 नवंबर से शुरू होकर 20 नवंबर (अंतरर्राष्ट्रीय बाल दिवस) तक आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की कड़ी में बुधवार को मीना मंच के बच्चों ने गाँव-गाँव जाकर सर्वे के दौरान बड़ों से अपने हक से जुड़े सवाल किए। सर्वे के दौरान बाल विवाह, बाल मजदूरी और बच्चों के स्कूल छोड़ने की वजहों को जानना था।

घर-घर जाकर सर्वे में सवालों के जवाबों को किया दर्ज

गाँव कनेक्शन की टीम ने इन छह जिलों में बच्चों के साथ घर-घर जाकर सर्वे में पूछे जाने वाले सवालों को दर्ज किया। इन नन्हे उस्तादों ने बड़ों को यह सीख भी दी कि बच्चों को पढ़ाना कितना जरूरी है। बेटी की जल्दी शादी न करें और स्कूल छुड़वाकर मजदूरी न करवाएं। इस सर्वे में एक्शन ऐड ने भी सहयोग करके बच्चों को मंच देने में मदद की।

कई तरह की जानकारियां जुटा रहे

बच्चों को दिए सर्वे फार्म में एक घर की पूरी जानकारी जुटाई जा रही थी, जैसे माता-पिता का व्यवसाय, बच्चे स्कूल जाते हैं कि नहीं, या बाल विवाह तो नहीं हुआ इत्यादि।

क्या कहते हैं बदलाव के दूत

चाचा ने दीदी की शादी तय कर दी थी, लेकिन दीदी ने शादी से मना कर दिया, उन्होंने कहा कि मुझे पढ़ना है, अब दीदी आगे पढ़ रहीं हैं।
अनूपा, कस्तूरबा गाँधी विद्यालय, बदायूं

मैंने गाँव में ही चार घरों की लड़कियों का दाखिला स्कूल में करवाया। पहले इनके घरवालों ने मेरी बात नहीं मानी, फिर मैंने इन्हें बताया कि जब मैं पढ़ सकती हूं, तो फिर ये लड़कियां क्यों नहीं? फिर हमारी बात सुनकर गाँव के कई लोगों ने अपने बच्चों का नाम स्कूल में लिखवाया है।
अर्शिया, जूनियर स्कूल, कसमंडी खुर्द, मलिहाबाद, लखनऊ

मैंने और मेरे साथियों ने गाँव में दो बच्चों का बाल विवाह रोका। लड़की हो या लड़का उनकी शादी सही उम्र पर ही करनी चाहिए। जल्दी शादी करने से बच्चों की पढ़ाई तो बीच में छूट जाती है और भविष्य खराब हो जाता है।
सुरभि, कक्षा-8, खगोईजोतपुर गाँव, बलरामपुर

पांचवी की पढ़ाई के बाद मम्मी-पापा ने बोला की अब घर का काम करो बकरी चराओ, लेकिन मुझे यह काम अच्छा नहीं लगता था। मुझे छठवीं में एडमिशन लेना था, लेकिन लेने नहीं दिया। एक दिन सुबह-सुबह मैं अपने गाँव से नानी के यहां आ गई। फिर यहां पर एडमिशन ले लिया। दो साल से अपने घर नहीं गए। पढ़ाई करेंगे और कुछ बनेंगे।
प्रिया रावत, कक्षा-6, उच्च प्राथमिक विद्यालय सतीचौरा गाँव, श्रावस्ती

मम्मी और पापा कहते थे कि मैं पागल हूं, मेरे दिमाग कम है। इसलिए घर पर रहकर भाई और बहनों की देखभाल करो। मैं पढ़कर कुछ बनूँगी और अपने घर को बता दूंगी कि मेरा दिमाग कमजोर नहीं है। मैं तो खेलती हूं और गाना भी गाती हूं। छोटे भाई बहनों को पढ़ाती भी हूँ। मुझे अब कोई पागल नहीं कहता। मीना मंच की दोस्तों ने ही हमे स्कूल पहुंचाया, वरना लोग मुझे अभी भी पागल समझते।
शीतल, कक्षा-8, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बंदहा, मंझवा, मिर्जापुर

एक महीने से हम स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। आज हमारे स्कूल की मीना मंच की साथियों ने समझाया है। अब हम कल से स्कूल जाएंगे। बापू से भी बोल देंगे कि स्कूल से आने के बाद खेत में काम करेंगे।
प्रिया, कक्षा-8, पूर्व माध्यमिक विद्यालय, काचन गाँव, म्योरपुर, सोनभद्र

रिपोर्टिंग टीम: लखनऊ से देवांशु मणि तिवारी, बलरामपुर से श्रृंखला पांडेय और दिपांशु मिश्र, मिर्जापुर से मिथिलेश दुबे और विनय गुप्ता, बदायूं से दिवेन्द्र सिंह और शुभम कौल, श्रावस्ती से नीतू सिंह और दिति बाजपेई, सोनभद्र से करन पाल सिंह

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