आगरा एक्सप्रेस-वे : अपनों में बांटी गईं रेवड़ियां, 232 गाॅंव प्रभावित, सैफई के किसानों को खास मुआवजा
Rishi Mishra 22 April 2017 6:43 PM GMT
लखनऊ। आगरा एक्सप्रेस वे में सड़क की गुणवत्ता से पहले अर्जन की जांच कराने के आदेश दिए गए हैं। इसके पीछे वाजिब वजह भी है। दरअसल, इस एक्सप्रेस वे का लेआउट बनाने के साथ ही घोटाले का आगाज हो गया था। सबसे पहले कुछ खास क्षेत्रों से आगरा एक्सप्रेस- वे को गुजाराने के लिए लेआउट बनाया गया। लेआउट बनने के बाद प्रक्रिया को रोक दिया गया। इसके बाद में कुछ खास लोगों ने इस लेआउट के आधार पर सर्किल रेट से दोगुनी कीमत पर जमीन खरीदी।
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ये जमीनें बिकते ही प्रक्रिया दोबारा शुरू की गई। अब जिन लोगों ने जमीन दोगुनी कीमत पर खरीदी थी, सरकार ने उनसे चौगुनी कीमत पर वो भूमि ले ली। ऐसे में अनेक करीबियों को दोगुने का फायदा हुआ। कयी बार इस परियोजना पर भाजपा के प्रवक्ता आईपी सिंह और सेवानिवृत्त आईएएस सूर्यप्रताप सिंह ने पहले सवाल उठाए थे।
10 जिलों के डीएम इस मामले में देंगे जवाब
सीएम योगी की सरकार ने अब आगरा एक्सप्रेस वे की जांच शुरू करवा दी है। इसमें 10 जिलों के डीएम से अधिग्रहण के संबंध में जवाब मांगे गए हैं। साथ ही गंभीर आरोपों की जांच भी होगी, जिसमें सबसे बड़ा आरोप केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली का था कि जिस छह लेन हाईवे को केंद्र सरकार की एनएचआई 17 से 18 करोड़ प्रति किमी की लागत में तैयार करा लेती है, उसे उत्तर प्रदेश की सरकार अनुमानित रू 30 करोड़ प्रति किमी के हिसाब से बनवा रही है।
पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह और भाजपा नेता एवं प्रवक्ता आईपी सिंह ने भी इस एक्सप्रेस-वे की लागत को लेकर सवाल उठाया था। इन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे के निर्माण की जांच सीबीआई और कैग से कराए जाने की मांग भी की है।
पीपीडी मोड पर बनाने की गयी थी तैयारी
पहले इस प्रोजेक्ट को पीपीपी माडल के जरिए बनवाया जाना था, जिसकी अनुमानित लागत 5000 करोड़ रुपए आंकी गई थी। पीपीपी मोड के तहत 24 मई 2013 को प्री-बिड कांफ्रेंस में 15 कंपनियों से प्रतिभाग किया, लेकिन योजना की अनुपयोगिता को देखते हुए किसी भी कंपनी ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई। परियोजना रिक्वेस्ट फाॅर प्रपोजल और रिक्वेस्ट फाॅर क्वेरी से आगे नहीं बढ़ पाई। जबकि सरकार ने निवेशकों के लिए लैंड पार्सल तथा टोल आमदनी जैसी सुविधाओं का भी प्रस्ताव रखा था।
दरअसल, इस प्रोजेक्ट की शुरुआत ही कुछ खास जिलों को लाभ पहुंचाने तथा खुद लाभ अर्जित करने के लिए की गई थी। पीपीपी माडल के तहत जिस परियोजना की लागत 5000 करोड़ रुपए आंकी गई थी, यह लागत दिसंबर 2013 तक बढ़कर 8944 करोड़ रुपए हो गई थी। यही नहीं हाल ही में इसकी अनुमानित लागत रू 15000 करोड़ रुपए तक आंकी गयी। जिसके पूरा होने तक बढ़कर 20000 करोड़ रुपए तक पहुंच जाने का अनुमान था।
सैफई को जोड़ने के लिए बढ़ाई गई थी लम्बाई
302 किमी लंबे इस एक्सप्रेस-वे की शुरुआती लंबाई 270 किमी थी, जिसके जरिए यमुना एक्सप्रेस-वे को लिंक किया जाना था, लेकिन सैफई को जोड़ने के लिए इसकी लंबाई 32 किमी और बढ़ा दी गई। आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे परिजयोजना को लेकर कई सवाल उठे, जिसमें पहला तो यही था कि जब इस प्रोजेक्ट को पीपीपी के जरिए बनाना था तो फिर कैश कांट्रैक्ट बेसिस यानी ईपीसी मोड में बनाने का निर्णय किसलिए लिया गया? कैग की रिपोर्ट के अनुसार 2012 में बने छह लेन के यमुना एक्सप्रेस-वे की प्रति किमी पूरी लागत, जिसमें जमीन अधिग्रहण भी शामिल था, 27.20 करोड़ रुपए आई तो आगरा-लखनऊ एक्सप्रेव-वे की अनुमानित लागत 50 करोड़ तक कैसे पहुंच गई है?
कंपनियों के चयन को लेकर भी सवाल
कार्यदायी कंपनियों के चयन को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं। यूपीडा ने आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे बनाने के लिए पांच भागों में चार कंपनियों का चयन किया, जिसे आगरा-फिरोजाबाद, फिरोजाबाद-इटावा, इटावा-कन्नौज, कन्नौज-उन्नाव तथा उन्नाव-लखनऊ के पांच भागों में बांटा गया। आगरा से फिरोजाबाद के गुरहा गाॅंव तक 53.5 किमी एक्सप्रेस-वे बनाने की जिम्म्ेदारी टाटा प्रोजेक्टस लिमिटेड को, फिरोजाबाद के गुरहा गाॅंव से इटावा के मूंज गाॅंव तक 62 किमी एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर को, इटावा के मूंज गाॅंव से कन्नौज के नरमऊ गाॅंव तक 57 किमी नागार्जुन कंस्ट्रक्शन कंपनी को, कन्नौज के नरमऊ गाॅंव से उन्नाव के नेवल तक 64 किमी एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर को तथा उन्नाव के नेवल गाॅंव से लखनऊ तक 63 किमी सड़क बनाने की जिम्मेदारी लार्सन एंड टब्रो को सौंपी गई।
उल्लेखनीय है कि इन कंपनियों के साथ 21 अक्टूबर 2014 को बैठक की गयी, जिसमें भागीदारी करने वाली 24 कंपनियों में से चुनाव केवल चार कंपनियों का हुआ। सवाल भी यहीं से शुरू हुआ कि क्या इस एक्सप्रेस-वे बनाने में प्रतिभाग करने वाली सभी कंपनियों की न्यूनतम बिड स्वीकार की गई? क्या इन कंपनियों ने सभी पांच भागों में भाग लिया? किस आधार पर उपरोक्त पांचों कंपनियों को बोली में भाग लेने से रोका गया? बिड में पारदर्शिता न होने के चलते इस तरह के कई सवाल उठे, लेकिन यूपीडा ने किसी का भी जवाब देना मुनासिब नहीं समझा।
प्रभावित हुए 232 गाॅंव, सैफई के किसानों को खास मुआवजा
एक्सप्रेस-वे के चलते 232 राजस्व गांव प्रभावित हुए तथा 3,368.60 हेक्टेयर भूमि इस योजना के लिए अधिग्रहित की गई, जिसमें 303 हेक्टर के आसपास सरकारी भूमि भी शामिल है। इस अधिग्रहण में किसानों की दोफसली और बहुफसली जमीन भी शामिल है। पूर्व मुख्यमंत्री के गृह जनपद इटावा के ही किसानों ने मुआवजा में भेदभाव को लेकर हड़ताल व धरना किया था। उनका आरोप था कि मुआवजा देने में सरकार ने भेदभाव किया है। बकौल रिटायर्ड आईएएस सूर्य प्रताप सिंह, ‘सैफई में 1.20 करोड़ से 1.25 करोड़ रुपए का मुआवजा प्रति हेक्टेयर की दर से दिया गया, जबकि इटावा के ही ताखा तहसील के किसानों को 15 से 20 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर के दर से मुआवजा दिया गया। सैफई के लिए स्पेशल रेट तथा विकास प्राधिकरण का बहाना बनाकर प्रति स्क्वायर मीटर के हिसाब से जमीन का मुआवजा दिया गया था।’
कई जगह किसानों ने विरोध भी किया था
किसानों को मुआवजा देने के लिए सरकार की तरफ से 5000 करोड़ रुपए की बजट व्यवस्था की गई थी। यूपीडा पर यह भी आरोप लगा कि वह किसानों द्वारा दी गई जमीन से ज्यादा जमीन पर कब्जा कर रहा है। किसानों ने इसकी शिकायत संबंधित विभागों में की, लेकिन किसी की कहीं भी सुनवाई नहीं हुई। उन्नाव के ही बांगरमऊ गांव जगटापुर के किसानों ने बैनामा से अधिक जमीन अधिग्रहित किए जाने का आरोप लगाया है। जगटापुर के निवासी आदित्य कुमार ने तो सीएम को भी पत्र भेजकर इसकी शिकायत की थी। इस गांव के शीलू कटियार, शिवम कटियार, सरोज कटियार, सर्वेश पटेल, अनिल कटियार, रामपाल शर्मा, अमरेश पटेल समेत दर्जनों किसानों का बैनामा से ज्यादा भूमि यूपीडा द्वारा अधिग्रहित करने का आरोप है। पर, इनकी शिकायतों पर ना कोई कार्रवाई होनी थी, ना हुई।
लीक किया गया था प्रोजेक्ट प्लान
सोशल साइट फेसबुक पर सूर्य प्रताप सिंह ने लिखा था कि 15000 करोड़ रुपए के आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे प्रोजेक्ट इटावा, कन्नौज के कुछ चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया है। उनका दावा है कि इस एक्सप्रेस-वे का ले-आउट प्रोजेक्ट का प्लान लीक कर दिया गया। साथ ही चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए कयी बात तारीखें बदली गयी। सिंह लिखते हैं कि सत्ता पक्ष के नेताओं, दबंगों और नौकरशाह ले-आउट और आसपास की जमीनों को किसानों से सस्ते दर पर खरीद लिया। फिर कलेक्टर से मनमाफिक सर्किल रेट बढ़वाकर इन जमीनों को चार गुना रेट पर सरकार को दे दिया गया। लखनऊ, उन्नाव, कन्नौज, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद, इटावा, मैनपुरी आदि दस जनपदों में अब तक कुल 27 हजार रजिस्ट्रियां हुई हैं, जिनमें से 15-20 हजार इन्हीं लोगों की है।
खैर, आरोप तो यहां तक लगे कि कुछ बड़े बिल्डरों को भी इस प्लान का ले-आउट लिक किया गया ताकि वे मनमाफिक जमीन खरीद सकें, जिसका बाद में महंगे दामों पर कामर्शियल इस्तेमाल किया जा सके। श्री सिंह यह भी आरोप लगाते हैं कि ग्रोथ सेंटर, मंडी, वेयर हाउस, लोगिस्टिक सेंटर एवं आवासीय योजनाओं के लिए बिल्डर्स से मिलकर आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे के आसपास की जमीन खरीदवा दी गई। मैं कई नेताओं और नौकरशाहों की ऐसी जमीन गिना दूंगा।
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