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सूखे से निपटने के लिए बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्रों में कराई जाएगी कृत्रिम वर्षा

सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया कि सूखे की समस्या का समाधान आईआईटी कानपुर ने कर दिया है। 5. 5 करोड़ रुपये में 1000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कृत्रिम बारिश कराई जा सकेगी।
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लखनऊ। योगी सरकार ने सूखा प्रभावित जिलों में कृत्रिम बारिश कराने की तैयारी कर ली है। इसकी तकनीक आईआईटी कानपुर ने विकसित की है। प्रदेश के सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया कि देश में पहली बार यूपी के बुन्देलखण्ड एवं विंध्य क्षेत्र में कृत्रिम वर्षा कराने की तैयारी की जा रही है। उन्होंने बताया कि देश में पहली बार होने जा रही कृत्रिम बारिस पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है तथा यह अन्य देशों की अपेक्षा काफी सस्ती है। सिंह ने बताया कि अभी तक अमेरिका, इजराइल, चीन, दक्षिण अफ्रीका के आसपास के क्षेत्रों एवं कुछ अरब के देशों में भी कृत्रिम बारिस करायी जाती रही है, लेकिन वहां की तकनीक काफी मंहगी है। उन्होंने बताया कि आईआईटी कानपुर द्वारा तैयार तकनीक न सिर्फ भौगोलिक एवं जरूरतों के अनुकूल है तथा काफी सस्ती भी है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर

धर्मपाल सिंह ने बताया कि विगत दिनों आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने हमारे सामने कृत्रिम बारिस का प्रस्तुतीकरण किया था। अब इसको अन्तिम रूप दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में हम यह अभिनव प्रयोग करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि बदलती हुई परिस्थित एवं मौसम में आने वाले परिवर्तन के कारण यह अतयन्त आवश्यक हो गया है। प्रयोग सफल रहने पर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भी जरूरत पड़ने पर इसे अपनाया जायेगा। प्रदेश सरकार किसानों के हितों के लिए सर्तक है तथा उनके हित के लिए जो भी आवश्यक होगा सरकार हर-सम्भव उपाय करेगी।

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धर्मपाल ने बताया कि इस बड़ी समस्या का समाधान आईआईटी कानपुर ने कर दिया है। 5. 5 करोड़ रुपये में 1000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कृत्रिम बारिश कराई जा सकेगी। दरअसल, आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ सरकार के सामने क्लाउड-सीडिंग (कृत्रिम बारिश) तकनीक का प्रजेंटेशन दे चुके हैं। क्लाउड-सीडिंग में प्राकृतिक गैसों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए आईआईटी कानपुर ने हेलिकॉप्टर समेत तमाम उपकरणों की खरीद भी कर ली है। कृत्रिम वर्षा करने के लिए हेलिकॉप्टर की मदद ली जाएगी।  इसमें सिल्वर आयोडाइड और कुछ दूसरी गैसों का घोल उच्च दाब पर भरा होता है। घोल को जिस क्षेत्र में बारिश करानी होगी उसके ऊपर छिड़क दिया जाएगा। 

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