कस्तूरबा आवासीय विद्यालय की छात्राएं पढ़ायी के साथ ही बचत करना भी सीख रहीं हैं, ये छात्राएं विद्यालय में अच्छी हाजिरी पर मिलने वाले प्रतिमाह सिर्फ 100 रुपए को जोड़ रही हैं।
“हमने अपनी बहन कोमल कमल के साथ इस साल कक्षा आठ पास किया है। घर पर एक भाई और दो बड़ी बहने भी हैं। एक बहन ने यहीं से कक्षा आठ किया है जो अब कक्षा 11 में पढ़ रही है। एक और बहन कानपुर में छोटा सा जॉब करती है। पापा राजमिस्त्री हैं। आमदनी कम है और खर्चे अधिक। जब हम लोग घर पहुंचेंगे तो पापा पर खर्च का बोझ आएगा, इसलिए हम दोनों बहनें अपने तीन साल के पैसे उनको दे देंगे।’’
यह कहना है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 160 किमी दूर स्थित कन्नौज जिले के कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय मित्रसेनपुर से वर्ष 2017-18 में कक्षा आठ पास करने वाली अंजलि कमल का। भविष्य को लेकर ऐसे सपने सैकड़ों गरीब छात्राओं के हैं जो विद्यालय में अच्छी हाजिरी पर मिलने वाले प्रतिमाह सिर्फ 100 रुपए को जोड़ रही हैं।
जिला मुख्यालय कन्नौज से करीब 19 किमी दूर कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय अनौगी, जलालाबाद की वार्डेन सीमा त्रिवेदी बताती हैं, ‘‘हम लोग ही बच्चियों के खाते खुलवाते हैं। फिलहाल 100 रुपए महीना स्कूल में 90 फीसदी हाजिरी पर छात्राओं को मिलता है। सुन रहे हैं कि आगे 200 रूपए महीना मिला करेगा। तीन साल पूरा होने पर छात्राएं पैसा निकालती हैं, इससे उनका भला हो जाता है। अधिकांश छात्राओं को इसका लाभ मिल जाता है।’’
इसी आवासीय विद्यालय अनौगी में पढ़ने वाली कक्षा आठ की छात्रा काजल सिंह बताती हैं, ‘‘जब हम इस स्कूल से निकलेंगे तो हम बैंक खाते से पूरा पैसा निकालेंगे। इस पैसे से कहीं एडमीशन लेंगे। कापी-किताबें खरीदेंगे। सौ रूपए महीने मिलने वाली योजना अच्छी है। हाजिरी के हिसाब से मुझे लाभ मिल भी रहा है।’’
कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय मित्रसेनपुर की वार्डेन रष्मि मिश्रा बताती हैं कि ‘‘मैंने वर्ष 2008 में कस्तूरबा विद्यालय ज्वाइन किया था। दो साल बाद छात्राओं को 50 रूपए महीना के हिसाब से स्कीम शुरू हुई थी। पिछले दो साल से 100 रूपए मिल रहा है। विद्यालय की करीब 95 फीसदी छात्राएं इससे लाभान्वित हो जाती हैं। योजना अच्छी है, छात्राओं की जमा पूंजी हो जाती है।’’
वार्डेन आगे बताती हैं कि ‘जब गार्जियन किसी काम से अपने बच्चों को लेने आते हैं तो उनको बता दिया जाता है कि तीन दिन से अधिक न रखना, नहीं तो नुकसान हो जाएगा।’
बलारपुर निवासी ज्योति कक्षा सात की छात्रा हैं, का कहना है, ‘‘तीन साल बाद जो पैसे मिलेंगे उससे अपनी फीस, एडमीशन और साइकिल खरीदने का मन है।’’
उधर, प्राथमिक विद्यालय गंगधरापुर कन्नौज की सहायक अध्यापिका दीप्ती दुबे बताती हैं, ‘‘मेरे स्कूल में बच्चों की हाजिरी पर प्रतिमाह प्रोत्साहन धनराशि देने का कोई नियम जानकारी में नहीं है।’’
आवासीय स्कूल में प्रवेश के लिए यह हैं नियम
वार्डेन रश्मि मिश्रा बताती हैं, ‘‘10 से 15 वर्ष साल तक की बालिकाओं के प्रवेष लिए जाते हैं। अगर 16 साल की भी लड़की है और उसमें पढ़ने की ललक है तो प्राथमिकता के आधार पर विद्यालय में प्रवेश होता है। इसके लिए सर्वे भी होता है।’’
वार्डेन आगे बताती हैं, ‘‘कभी भी स्कूल न जाने वाली बालिकाएं, ड्राप आउट (कोई कक्षा पढ़ी हो बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी हो), जिनके गार्जियन न हों या नानी-दादी हों या अनाथ, एकल परिवार यानि मां या बाप में कोई एक हो को प्रवेश के लिए वरीयता दी जाती है।’’
‘‘विद्यालय में प्रवेश कक्षा छह से लिया जाता है। पहले छह महीने में ब्रिजकोर्स चलता है। इसमें तीन महीने का कक्षा एक से कक्षा तीन तक और अंतिम तीन महीने में कक्षा चार, पांच और छह का कोर्स पढ़ाया जाता है। बाद में हिन्दी, अंग्रेजी, और कला आदि विशयों की परीक्षा भी होती है।’’ वार्डेन रश्मि आगे बताती हैं कि ‘‘प्रवेष से पहले विद्यालयों में तीन दिन का मोटीवेशन कैंप भी चलता है। हमारे यहां नए शैक्षिक सत्र की शुरूआत की तैयारी पूरी है। प्रवेष चल रहे हैं। कुल 100 सीटों के लिए बालिकाओं के प्रवेष लिए जाएंगे। कक्षा छह से कक्षा आठ तक की कक्षाएं लगती हैं।’’
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योग की कक्षाएं और हेल्थ चेकअप भी
पीटीआई प्रियंका कुशवाहा बताती हैं, ‘‘बालिकाओं को स्वस्थ्य रखने के लिए योग और कसरत भी कराई जाती है। इसकी नियमित प्रैक्टिस कराई जाती है। ज्यादातर बालिकाएं गांव और गरीब होती हैं।’’ शिक्षक प्रदीप औदिच्य बताते हैं कि ‘‘समय-समय पर स्वास्थ्य विभाग की टीम के द्वारा छात्राओं का निशुल्क हेल्थ चेकअप भी होता है।’
अपर परियोजना निदेशक राजकुमारी वर्मा बताती हैं, ‘‘उत्तर प्रदेश में 746 कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय हैं। कुछ विद्यालयों में 100-100 तो कुछेक में 50-50 सीटें हैं। कुल 74 हजार बालिकाओं का प्रवेष करने की जगह है। लगभग 73 हजार बालिकाएं नामांकित हैं। एससी, एसटी व ओबीसी के लिए 75 फीसदी सीटें और 25 फीसद सीटें सामान्य वर्ग के लिए हैं। गरीब बालिकाएं, कभी भी स्कूल न जाने वाले और बीच में ही पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों को लाभ मिलता है।’’