चिंतन शिविर में आए किसानों का मोदी और योगी की नीतियों के ख़िलाफ़ फूटा ग़ुस्सा

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चिंतन शिविर में आए किसानों का मोदी और योगी की नीतियों के ख़िलाफ़ फूटा ग़ुस्साशिविर में आए किसान।

धीरज मिश्रा/ शुभम कौल

हरिद्वार। हरिद्वार में भारतीय किसान युनियन के तीन दिवसीय राष्ट्रीय चिंतन शिविर में इकट्ठा हुए किसान सरकार की कृषि नीतियों की वजह से काफ़ी गुस्से में थे। देश भर के अलग अलग राज्यों से आए किसान क्षेत्र की कृषि समस्याओं को यहाँ बता रहे थे।

बिजनौर से आए 70 वर्षीय किसान महेन्द्र सिंह बताते हैं की हमारा गन्ने का भुगतान फरवरी से ही रुका हुआ है। उन्होंने बताया कि नियम के हिसाब से 14 दिनों में भुगतान हो जाना चाहिए लेकिन पाँच महीने बीत गए हैं हमें हमारी फ़सल का अभी तक कोई भुगतान नहीं मिला है। बिजनौर से ही 54 वर्षीय किसान सत्यवीर सिंह बताते हैं की मील वाले पहले चीनी को रोक लेते हैं और जब दाम बढ़ जाता है तो वे बढ़े हुए दाम पर चीनी बेचते है और हमें पिछले साल के पर दाम पर भुगतान करते हैं।

फ़ैज़ाबाद से आए किसान काफ़ी गुस्से में थे। 51 वर्षीय आमोद मिश्रा कहते हैं की मध्यप्रदेश में हमारे आठ किसान मारे गए और सरकार के मंत्री योग कर रहे हैं। इस देश में लोग किसान के मरने के बाद उसकी मदद करते हैं। यदि किसान को अपना हक़ चाहिए तो उसे मरना पड़ता है। बाराबंकी से आए रणविजय सिंह बताते हैं की हमारे यहाँ आलू किसान की स्थिति बदतर है। पिछले साल जो आलू 1200 से 1500 रुपए में बिका था वही आलू इस साल अधिकतम 500 रुपए में बिका है। वही भारतीय किसान युनियन के मंडल अध्यक्ष हरिनाम वर्मा बताते हैं की सरकार ने आलू का न्युनतम समर्थन मूल्य 485 रुपया तय कर रखा है और 245 रुपया तो कोल्ड स्टोर में ही रखने पर ख़र्च हो जाता है।ऐसी नीति है की किसान अपनी लागत भी कैसे निकाले।

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बाराबंकी से ही किसान जगन्नाथ कहते हैं की आलू ना ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिकता है और ना ही यहाँ इसके लिए कोई ख़रीद केंद्र है। जो भी ख़रीद केंद्र है वो सिर्फ़ धान और गेहूँ के लिए है और वो भी सिर्फ़ दलालों के लिए खुलता है। अधिकतर समय ख़रीद केंद्र बंद रहता है। फ़र्रुख़ाबाद ज़िला के मोहम्मदाबाद ब्लाक से आए 40 वर्षीय सत्येन्द्र सिंह कहते हैं कि सामान्य किसान कभी भी ख़रीद केंद्र पर अपनी उपज नहीं बेच पाता है। ख़रीद केंद्र पर लोग प्रति क्विंटल के हिसाब से रिश्वत माँगते हैं। जब मै अपनी उपज ले कर केंद्र पर गया तो उन्होने एक क्विंटल गेहूँ पर 50 रुपया अधिक माँग रहे थे।

सरकार द्वारा मंडियों में बलि के लिए पशुओं की ख़रीद बिक्री बन्द करने से किसान काफ़ी परेशानी में हैं। इटावा से आए संजीव यादव कहते हैं की हमारे तरफ़ अब पशु बाज़ार लगाना बंद हो गया है। मवेशी सड़कों और गाँवों में घूम रहे हैं। खुले में घूम रहे मवेशी हमारी फ़सलों को बर्बाद कर रहे हैं। ग़रीब किसान सरकार की इस नीति की वजह से बहुत परेशान है। जो मवेशी दूध नहीं देते हैं उन्हें हम अपने घर में रख कर क्या क्या करेंगे।महँगाई इतनी ज़्यादा है की ना तो हमारी फ़सल सही से हो रही है और ना ही हमारे पास इन पशुओं को खिलाने के लिए चारा या भूसा है। बदायूँ ज़िला से आए राजपाल सिंह कहते है की पहले तो किसान इन पशुओं को बेचकर कुछ पैसे कमा लेता था अब तो उसके लिए कमाई का ये ज़रिया भी इस सरकार ने बंद कर दिया है।

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वही एटा से आए 58 वर्षीय प्रेमशंकर सिंह बताते हैं किसानों ने जिस चीज़ के लिए मुख्यमंत्री योगी को वोट दिया था, सरकार बनने के बाद वो उन सब वादों से मुकर गए हैं। पिछले साल मेरी सारी फ़सल बर्बाद हो गयी थी लेकिन एक रुपए का भी मुआवज़ा नहीं मिला। सरकार की बीमा योजना है लेकिन गाँव में कभी भी बीमा वाला दिखता नहीं है। अगर वो आता भी होगा तो प्रधान से मिल कर उसी की सारी बात लिख कर चला जाता है।

हापुड़ ज़िला से आए किसान कहते हैं की युपी में जो पैसा जमा नहीं करता है उसका तो पैसा माफ़ हो रहा है लेकिन जो भैंस बेच कर, बैल बेच कर समय पर बैंक में क़र्ज़े का पैसा वापस करता है उसका माफ़ नहीं हो रहा है। तो क्या ईमानदार होना सही नहीं है।यदि हमने ईमानदारी से समय पर क़र्ज़ वापस किया है तो हमारा क़र्ज़ क्यों माफ़ नहीं हुआ।ये झूठ बोल कर और धोखे से सरकार बनी है। मध्यप्रदेश की किसानों की तरह हम भी मर जाएँगे कम से कम जो मुआवज़ा मिलेगा उससे तो हमारे बच्चे जीवित रह सकेंगे।

        

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