हाईटेक होती पुलिसिंग के बीच जमीनी मुखबिरी तंत्र ने तोड़ा दम 

Abhishek PandeyAbhishek Pandey   5 July 2017 12:13 PM GMT

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हाईटेक होती पुलिसिंग के बीच जमीनी मुखबिरी तंत्र ने तोड़ा दम प्रतीकात्मक तस्वीर

लखनऊ। तकनीक के युग में पुलिस तो हाईटेक हो गई है, लेकिन अपने महत्वपूर्ण अंग जमीनी मुखबिरी तंत्र को पुलिस ने कहीं पीछे छोड़ दिया है। मौजूदा वक्त में जमीनी मुखबिरों का स्थान थानों पर दलाल किस्म के लोगों ने ले लिया है। बीते समय की मुखबिरी तंत्र ध्वस्त होने से प्रदेश में बढ़ते अपराधों पर रोकथाम लगा पाने में पुलिस नाकाम साबित हो रही है। इसकी मुख्य वजह है कि, जमीनी मुखबिरों की जगह थानों पर दलालों ने ले लिया है, जो अपराधियों से साठगांठ कर धनउगाही में लगे रहते हैं।

यूपी में मौजूदा वक्त में पुलिस पूरी तरह सर्विलांस ट्रैकिंग सिस्टम पर निर्भर होती जा रही है। प्रदेश के किसी भी थाने में आपराधिक वारदात घटित होते ही पुलिस सबसे पहले क्राइम ब्रांच फोन कर अपराध की सूचना देती है। क्योंकि उसे पता है कि सर्विलांस के जरिए आसानी से अपराधियों से संबंधित जानकारी हासिल की जा सकती है, जबकि कई वर्षों पहले यह काम थाना स्तर पर पुलिस द्वारा आम जनता के बीच से खड़ा किया हुआ जमीनी मुखबिर करता था, जो अपराधियों के ही बीच में बैठ कर उनकी अपराधिक साजिश की सूचना पुलिस को दिया करता था और वक्त रहते पुलिस उन अपराधियों की धर-पकड़ करने में कामयाब रहती थी, लेकिन मौजूदा वक्त में थाना स्तर पर कोई भी कोतवाल केवल क्षेत्र में दलाल किस्म के लोगों को क्षेत्र में धनउगाही के लिए सक्रिय करके रखता है।

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आज के समय में जब हर इंसान के पास मोबाइल फोन मौजूद है तो उसके सिग्नल भी प्रत्येक जगह मिल ही जाते हैं। ऐसे में सर्विलांस ट्रैकिंग सिस्टम के जरिए पुलिस अपराधियों तक आसानी से पहुंच जाती है। तकनीकी पक्ष से पुलिस मजबूत हो तो पुलिसिंग भी बेहतर हो सकेगी, लेकिन इसका नुकसान यह है कि सिर्फ तकनीकी पक्ष से सर्विलांस के जरिए ही अगर पुलिसिंग की जाएगी तो हर प्रकार के अपराधी तक पुलिस की पहुंच मुमकिन नहीं हो सकेगी।

खुद पर कार्रवाई के डर से भी नहीं बन रहे मुखबिर

एक पुरानी कहावत है कि पुलिस से न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी। इस बात को ही ध्यान में रखकर ही पिछले कई वर्षों से पुलिस का मुखबिर तंत्र बुरी तरह विलुप्त हो गया है। इसकी वजह साफ है कि पुलिस अगर किसी अपराध को खोल पाने में नाकाम होती है तो इसका ठीकरा थाने के मुखबिर पर फोड़ कर उसे ही जेल भेज देती है। इसकी पुष्टि पूर्व डीजी सुब्रत त्रिपाठी ने भी की है कि, वह जब प्रदेश के जिलों में एसएसपी थे तो कुछ थानेदारों ने ऐसी हरकत की थी, जिसकी शिकायत मिलने के बाद आरोपी दरोगा पर विभागीय कार्रवाई के आदेश देने के साथ-साथ उसे निलंबित करने का भी काम किया है।

कैसे बनते थे जमीनी मुखबिर

पुरानी पुलिसिंग के दौर में तेजतर्रार लोगों को अक्सर थाने चौकी में चाय-पानी पिलाई जाती थी। साथ ही कंधे पर हाथ रख कर कहते थे कि, तुम हमारे अपने हो और क्षेत्र की शांति व्यवस्था में अपना सहयोग दो। कहीं भी कोई वांछित या असमाजिक तत्व दिखाई दे तो तत्काल पुलिस को सूचना दो। इसके बदले थानेदार मुखबिरों को थोड़ा बहुत अपने स्तर से मेहनताना दिया करता था। ताकि मुखबिर पुलिस के लिए काम करते रहें और उनके परिवार का गुजारा होता रहे। हालांकि यह सभी चीजें पुराने वक्त की बात हो गई है, अब के मुखबिर तो थानेदारों को ही क्षेत्र से रुपए वसूल कर देते हैं। इसके लिए उन्हें थानेदार भी खुली छूट देता है।

‘पहले थानों पर मुखबिर रखना जरूरी होता था’

इस संबंध में राजधानी के एसएसपी दीपक कुमार ने बताया कि थानों में दलाल किस्म के लोगों की सक्रियता रोकने के लिए थानेदारों को निर्देश दिया गया है कि, वह अपने क्षेत्रों में हर मुखबिर का डिटेल एसएसपी कैम्प ऑफिस भेजें। इसका वेरीफीकेशन करवाने के बाद ही उन्हें पुलिस के लिए मुखबिर करने की इजाजत दी जाएगी। डीजीपी सुलखान सिंह ने प्रदेश में कानून-व्यवस्था सुधारने के लिए जमीनी मुखबिरी तंत्र को थाना स्तर पर मजबूत करने के निर्देश दिए हैं। पूर्व डीजी सुब्रत त्रिपाठी ने बताया, “पहले थानों पर मुखबिर रखना जरूरी होता था, इससे क्षेत्र में अपराध होने के बाद अपराधियों को पकड़ने में मदद मिलती थी, पर मौजूदा समय में थानों पर थानेदार रुपए देकर आता है, जिसके चलते अपने दिए रुपए जल्दी वसूलने के लिए थानेदार थानों पर दलाल किस्म के मुखबिर एक्टिव कर रुपए कमाने में जुट जाता है।”

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डीजीपी सुलखान सिंह ने बताया कि जमीनी मुखबिरी तंत्र को मजबूत करने से अपराध करने से पहले ही अपराधियों को पकड़ने में आसानी होगी। साथ ही बढ़ते अपराधों पर भी लगाम लग पाएगा।

लखनऊ एसएसपी दीपक कुमार ने बताया इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि सर्विलांस के जरिए पुलिस वारदात के बाद अपराधियों तक पहुंच सकती है, लेकिन जमीनी स्तर मुखबिर के जरिए पुलिस अपराधियों तक अपराधिक वारदात होने से पहले ही पहुंच सकती है।

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