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हजारों शिक्षामित्रों ने लखनऊ में भरी हुंकार, सरकार को दिया 24 घंटे का अल्टीमेटम

शिक्षामित्रों में मानदेय को लेकर बीजेपी सरकार के खिलाफ दिखा आक्रोश, शिक्षामित्रों का कहना, जब तक सरकार हमारा सम्मान वापस नहीं दिलाएगी हम अपने घर नहीं जाएंगे
#shiksha mitra

लखनऊ। प्रदेश भर के हजारों शिक्षामित्र सहायक अध्यापक पद पर बहाली और समान कार्य समान वेतन की मांग को लेकर राजधानी के ईको गार्डेन में प्रदर्शन कर रहे हैं। शिक्षामित्रों ने ऐलान किया कि यूपी के पौने दो लाख शिक्षा मित्रों के समस्या का समाधान होने तक आंदोलन जारी रहेगा। शिक्षामित्रों का कहना है कि, सरकार हमारे साथ वादा खिलाफी कर रही है। प्रदर्शनकारियों ने सरकार को 24 घण्टे का अल्टीमेटम दिया है।

आम शिक्षक/शिक्षामित्र एसोसिएशन की अध्यक्ष उमा देवी ने कहा, ” शिक्षामित्र उत्तर प्रदेश सरकार से खुद को पीड़ित और ठगा महसूस कर रहे हैं। सरकार की नाइंसाफी के चलते उनकी स्थिति दयनीय हो गई है और उन्हें परिवार का पालन-पोषण करने में भी मुश्किलें आ रही हैं। डेढ़ साल में कइयों की मौत हो चुकी है, लेकिन सरकार हमारे बारे में नहीं सोच रही। इसके चलते ही लखनऊ में धरना प्रदर्शन रखा गया है। जब सरकार हमारा सम्मान वापस नहीं दिलाएगी हम अपने घर नहीं जाएंगे।”

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बिजनौर से पहुंचे शिक्षामित्र जहीर आलम ने बताया, ” हमें राजनीति की बली बनाया जा रहा है। वर्ष 2014 में लोक सभा चुनाव के समय मोदी जी ने हमसे कहा था कि हमारी सरकार बनने के बाद आप लोगों को परमानेंट कर देंगे। इस सरकार ने 25 जुलाई 2017 हो हमारा समायोजन रद कर दिया गया। हमारी सेलरी को दस हजार रुपए कर दिए गए हैं। समायोजन रद होने के सदमें से हमारे करीब 1000 साथियों की मौत हो चुकी है। “

वहीं अमेठी से पहुंचे शिक्षामित्र राम प्रकाश का कहना है, ” हमको अनुसुची नौ में शामिल किया और परमानेंट किया जाए। यह सरकार सिर्फ आश्वासन देने वाली है। हम लोग जब तक जान है तब तक हम लोग अपने हक की लड़ाई लड़ते रहेंगे। यह सरकार अगर हमारी मांगे नहीं मानती है तो हम लोग इस सरकार को सबक जरूर सिखाएंगे। सरकार देश को डिजिटल बनाने में लगी, दूसरी तरफ शिक्षामित्रों की अर्थी भी उठा रही है।”

शिक्षामित्रों का आरोप है कि पिछले दिनों प्रदर्शन के दौरान उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने शिक्षामित्रों को बुलाकर बातचीत की थी। इसके बाद उन्हें आश्वासन दिया था कि अनुसूची-9 की मांग को स्वीकार कर लिया जाएगा। उन्होंने शिक्षामित्रों से दीपावली तक का वक्त मांगा था। लेकिन उनका दिया गया आश्वासन गलत निकला।

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जानिए शिक्षामित्र मामले में कब-कब क्या हुआ

– 26 मई 1999 – उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी प्राइमरी स्कूलों में 11 महीने की संविदा पर बारहवीं पास दो शिक्षामित्रों की नियुक्ति का शासनादेश जारी किया।

– 2001- 2250 रुपए हर महीने के मानदेय पर शिक्षामित्रों की नियुक्ति शुरू हुई

-2005 में – मानदेय 2400 रुपए, 2007- में 3000 रुपए, 2010 में – 3500 रुपए कर दिया गया

– 4 अगस्त 2009 – शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुआ। इसके अनुसार कक्षा एक से आठ से अप्रशिक्षित शिक्षक स्कूलों में नहीं पढ़ा सकते

– 2 जून 2010 – यूपी में शिक्षामित्रों पर कोर्ट द्वारा नियुक्ति पर रोक लगाई गई

प्रदर्शन में शामिल सैकड़ों शिक्षामित्र अपने परिवार के साथ लखनऊ पहुंचे हुए हैं। फोटो- अरविंद शुक्लाप्रदर्शन में शामिल सैकड़ों शिक्षामित्र अपने परिवार के साथ लखनऊ पहुंचे हुए हैं। फोटो- अरविंद शुक्ला

– 11 जुलाई 2011- तत्कालीन बसपा सरकार ने पौने दो लाख शिक्षामित्रों को बीटीसी का दो वर्षीय प्रशिक्षण देने का फैसला किया

-19 जून 2014 – तत्कालीन सपा सरकार ने नियमों की अनदेखी करके पहले चरण में प्रशिक्षित 58 हजार शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन करके वेतन 30 हजार से ज्यादा किया।

-8 अप्रैल 2015- सपा सरकार ने दूसरे चरण में प्रशिक्षित लगभग 90 हजार शिक्षामित्रों का समायोजन कराया

-12 सितम्बर 2015- हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों के समायोजन को अवैध ठहराया और इसे रद्द कर दिया गया

-7 दिसम्बर 2015 – सुप्रीम कोर्ट ने बचे हुए शिक्षामित्रों के समायोजन पर भी रोक लगाई

-25 जुलाई 2017 – सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द किया। साथ ही कोर्ट ने राहत देते हुए शिक्षामित्रों को तत्काल न हटाने का फैसला किया। कोर्ट के कहा, शिक्षामित्रों को शिक्षक भर्ती की औपचारिक परीक्षा (टीईटी) में बैठना होगा और उन्हें लगातार दो प्रयासों में यह परीक्षा पास करनी होगी  

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