एक रात का मसीहा- वो तीन सवाल जो डॉ. कफील को कठघरे में खड़ा करते हैं ?

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एक रात का मसीहा- वो तीन सवाल जो डॉ. कफील को कठघरे में खड़ा करते हैं ?डॉ. कफील खान। मुख्यमंत्री ने नौ अगस्त को अस्पताल का दौरा किया था

अरविंद शुक्ला/ आशुतोष ओझा

गोरखपुर/लखनऊ। गोरखपुर हादसे में डॉ. कफील खान का नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा है। वो हादसे वाली रात से ही मीडिया में छाए हुए थे। पहले वो फरिश्ते बताए गए और अब उन पर सवाल उठ रहे हैं।

डॉ. कफील खान गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बाल रोग विभाग के इंसेफेलाइटिस वार्ड के चीफ नोडल अधिकारी थे, जो तीन साल चार महीने से तैनात थे। बच्चों की मौत के बाद अस्पताल के दौरे पर पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें पद से हटा दिया। उन पर कई गंभीर आरोप हैं।

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पहला आरोप- सीएम को क्यों नहीं बताया गई गैस की किल्लत

यूपी के मुख्यमंत्री और गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ 9 अगस्त को बीआरडी अस्पताल के दौरे पर गए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उस दौरान उन्होंने प्रिंसिपल, डिपार्टमेंट हेड, डॉक्टरों से पूछा था कि कुछ दिक्कत तो नहीं, तो जवाब सब सही में मिला था। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में हादसे के बाद कहा कि जब वो दौरे पर गए थे उन्हें ऐसी किसी किल्लत या परेशानी के बारे में नहीं बताया गया और जब 13 अगस्त को दोबारा सीएम इस अस्पताल पहुंचे तो उन्होंने समीक्षा के दौरान कई लोगों को लताड़ लगाई। बताया जा रहा है सीएम ने डिपार्टमेंट हेड से पूछा कि एक दिन में कितने ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत होती है तो बताया गया कि 21 सिलेंडर जबकि अस्पताल में उस दौरान 52 सिलेंडर होने की बात कही जा रही है। समीक्षा के दौरान सीएम ने डॉ. कफील खान को कहा कि सिर्फ तीन सिलेंडर के लिए फिर क्यों हीरो बनने चले थे।

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बीआरडी अस्पताल के बच्चा वार्ड में तैनात एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर गांव कनेक्शऩ को बताया, “इस पूरे वाक्ये के लिए प्रिंसिपल साहब और इंसेफेलाइटिस डिपार्टमेंट के हेड जिम्मेदार हैं। इऩ लोगों ने बहुत नुकसान पहुंचाया है। 9 अगस्त को जब मुख्यमंत्री जी आए थे, इऩ्होंने पूरी बात छिपाई, तब सब बढ़िया- सब बढ़िया बोल रहे थे। सरकार को चाहिए इऩ दोनों की जांच कराए, बड़ा घपला निकलेगा।”

साभार : सोशल मीडिया

दूसरा आरोप- अस्पताल की प्रॉपर्टी का दुरुपयोग

16 साल तक बीआरडी में बाल रोग विभाग के मुखिया रहे डॉ. वाईडी सिंह इस अस्पताल की नस-नस से वाकिफ हैं। गांव कनेक्शन से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि डॉ. कफील के रात में सिलेंडर लेकर आने की बात पर संदेह होता है। ये भी सकता है कि वो सिलेंडर अस्पताल के हों और उन्हें मामला बढ़ने पर वापस अस्पताल लाया जा रहा हो। डॉ. सिंह डॉ. कफील के बार-बार मीडिया से बातचीत करने और रात में 3 बजे मीडिया के पहुंचने पर भी सवाल उठाते हैं। डॉ. वाईडी सिंह कहते हैं, ‘जब अस्पताल में 10 अगस्त को 52 सिलेंडर अस्पताल में मौजूद थे तो तीन के लिए इतनी भागदौड़ करने की क्या जरूरत थी, आप डिपार्टमेंट के हेड थे आपको चाहिए था कि जूनियर डॉक्टरों को उस दौरान गाइड करते।

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डॉ. कफील उस समिति के सदस्य भी हैं जो अस्पताल के लिए जरूरी सामान की खरीद-फरोख्त करती है। यानि डॉ. कफील को जानकारी जरूर रही होगी कि गैस की किल्लत होने वाली है और कंपनी के पैसे बाकी हैं। खुद एक ऑक्सीजन ऑपरेटर ने तीन अगस्त को ही लेटर लिखा था, जिसमें डॉ. कफील को भी लिया गया था। अस्पताल से जुड़े कई कर्मचारियों, स्थानीय पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस मामले की गहराई से जांच की मांग की है।

भगवान की कसम खाई कि प्राइवेट पैक्टिस नहीं करूंगा फिर रंगे हाथ पकड़े गए

सर्विस रूल्स के मुताबिक डॉक्टर निजी प्रैक्टिस नहीं कर सकते लेकिन यूपी के ज्यादातर डॉक्टर ऐसा करते हैं। खुद मुख्यमंत्री योगी कई बार ऐसा न करने की हिदायत दे चुके हैं लेकिन डॉक्टर नहीं मानते। 10 जनवरी 2017 को एक आरटीआई के तहत बीआरडी के सभी डॉक्टरों से सूचना और शपथपत्र मांगा गया था कि वो निजी प्रैक्टिस नहीं करते। 5 फरवरी, 2017 को गोरखपुर से प्रकाशित आईनेक्ट अखबार ने स्टिंग किया, जिसमें डॉ. कफील समेत कई डॉक्टर रंगे हाथ निजी प्रैक्टिस करते पकड़े गए।

कफील के अलावा जो दैनिक अखबार आईनेक्स्ट की ख़बर में डॉ. माहिम मित्तल जो मेडिसिन डिपार्टमेंट के हेड थे वो सरकारी आवास में मोटी फीस लेकर मरीज देखते पकड़े गए थे जबकि एक और डॉक्टर की ख़बर प्रकाशित हुई थी वो मस्तिष्क बुखार के विशेषज्ञ डॉ. एके ठक्कर थे के बारे में थी, उनकी तैनाती लखनऊ में थी लेकिन गोरखपुर के सरकारी आवास में हर रविवार को मरीज देखने जरूर पहुंचते थे। डॉ. कफील पर आरोप है कि वो अस्पताल से छुट्टी लेकर निजी प्रैक्टिस करते थे। इंसेफ्लाइटिस विभाग में तैनात एक कर्मचारी ने फोन पर बताया, “सब डॉक्टर घर पर मरीज देखते हैं, आप ऐसे समझिए कि दो बार मरीज अस्पताल में देखा तो तीसरी बार उसका घर या क्लीनिक पर पहुंचना तय है।”

मीडिया में जो चर्चा है...

डॉ. कफील 50 बेड वाला अस्पताल चलाते हैं, जिसकी मालिक उनकी पत्नी और डेंटिस्ट डॉ. शबिस्ता खान हैं। आरोप है कि वो लगातार छुट्टियां लेकर निजी प्रैक्टिस करते थे। डॉ. शबिस्ता खान के अस्पताल का नाम मेडिस्पिंग चिल्ड्रेन हॉस्पिटल है जो, रुस्तम नगर में नहर रोड पर है। फिलहाल इस अस्पताल पर ताला लगा हुआ है। रुस्तमपुर में उनका काफी जलवा है। कई लोगों उनके समर्थन में बोले, वहीं पर दुकान चलाने वाले जमशेद ने कहा कि वो 2015 के बाद से अस्पताल नहीं आते थे, उन्हें राजनीतिक कारणों से फंसाया गया लेकिन अमरेंद्र कुमार, जो रुस्मतपुर निवासी हैं, डॉ. कफील पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘एक सरकारी डॉक्टर इतने पैसे कमा सकता है भला, उनका बहुत बड़ा व्यापार हो गया है, अस्पताल के सारे मरीज (बीआरडी) के यहां ले आते हैं। उन्होंने अस्पताल का बहुत फायदा उठाया है।’

Inext अख़बार ने फरवरी महीने में किया था स्टिंग- साभार सोशल मीडिया

डॉ. कफील पर रेप का आरोप और उनके ट्वीटर और सियासी रिश्तों को अगर कर दूर दिया गया जो तो भी जो ऊपर तीन आरोप हैं वो सवाल खोज रहे हैं। गांव कनेक्शन ने कई बार कफील से बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।

          

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